नाबालिग बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए, समाज ‘मां का लाडला’ वाली मानसिकता से ऊपर उठे

Friday, Feb 02, 2018 - 03:42 AM (IST)

एक बार फिर पूरा देश हरियाणा में हो रही हत्याओं, सामूहिक दुष्कर्मों और बलात्कार की घटनाओं से सदमे में है। एक माह में ही हरियाणा में ऐसे मामलों में इतनी अधिक वृद्धि हुई है कि पूरे देश को इससे झटका लगा है। 

हो सकता है कि ये ऐसे मामले हों जिनकी मीडिया में खबरें आ गईं। लेकिन मैं निश्चय से कह सकती हूं कि बलात्कार पूरे देश में हो रहे हैं। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म करने वाले तथा दुष्कर्म के बाद उनके गुप्तांगों में हर तरह की चीजें घुसेडऩे वाले इन अपराधियों की कहानियां भयावह तो हैं लेकिन ये केवल शारीरिक कामोत्तेजना की संतुष्टि मात्र की प्रतीक नहीं बल्कि विकृत यौन मानसिकता की ओर संकेत करती हैं। कहा जा रहा है कि विपक्ष इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री खट्टर से इस्तीफा मांगने की योजना बना रहा है। यह तो स्पष्ट ही है कि जिस राज्य में ऐसी घटनाएं होती हैं उसके मुखिया को अनेक सवालों के उत्तर देने होंगे। लेकिन जिस समाज में हम जी रहे हैं उसे भी निद्रा से जागने की जरूरत है। 

पुलिस भी दोषारोपण से बच नहीं सकती क्योंकि यह गश्त लगाने तथा महिलाओं की सुरक्षा की व्यवस्था चाक-चौबंद बनाने में विफल रही है। मुझे समझ नहीं आ रही कि जब गांव, कस्बों और शहरों में हर जगह सड़कों और गलियों पर बड़ी मात्रा में ऐसी घटनाएं हो रही हैं तो भी पुलिस की नजर इस ओर क्यों नहीं जाती? पुलिस की ओर से भी लोगों को आपात स्थितियों में फोन कॉल करके यह बताया जाना जरूरी है कि वे आस-पड़ोस में एक-दूसरे के बच्चों के प्रति जिम्मेदारी की भावना दिखाएं। पूरे समाज को इस काम के लिए उठ खड़ा होना होगा और जहां भी उन्हें किसी भयावह अपराध की संभावना दिखाई दे वहां उन्हें अपनी आंखें खुली रखते हुए बहुत सावधानीपूर्वक निगरानी करनी होगी। 

मैंने तो कभी सपने में भी यह नहीं सोचा था कि 5 लड़के मिलकर एक अवयस्क लड़की के साथ पहले दुष्कर्म करेंगे और फिर उसके गुप्तांगों में हर प्रकार की चीजें घुसेड़ देंगे और उसे मरने के लिए छोड़कर भाग जाएंगे। ऐसा भी एक समाचार आया था जब लाश के साथ बलात्कार किया गया था। ऐसे समाज का अंग होने पर मुझे बहुत कोफ्त होती है। यदि इस तरह के लोग समाज में विचर रहे हैं और सलाखों के पीछे बंद नहीं हैं तो उनके रिश्तेदारों और परिजनों को आगे आना चाहिए और उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया जाना चाहिए। बाद में पुलिस को ऐसे लोगों को तत्काल मृत्यु दंड की सजा दिलाने के प्रयास करने चाहिएं। ऐसे लोगों को सार्वजनिक रूप में पीटा और दंडित किया जाना चाहिए तथा इनका बंध्याकरण किया जाना चाहिए। 

आखिर हम अपनी कितनी महिलाओं, कितने बच्चों और कितने अवयस्कों की जिंदगियां ऐसे अपराधों की भेंट चढ़ाएंगे? आखिर इन पीड़ितों का कसूर क्या है? मैं तो कहूंगी कि केवल लड़कियों ही नहीं बल्कि लड़कों को भी दुष्कर्म का शिकार बनाया जाता है। स्कूलों, दफ्तरों में हम कितने ही अवयस्क लड़कों की ऐसी कहानियां सुनते हैं। ये लड़के खास तौर पर गरीब वर्ग से संबंधित होते हैं और अपनी जरूरतों के कारण ही दुष्कर्मियों के चंगुल में फंस जाते हैं। छोटे-छोटे अहसानों का वायदा करके इनकी इज्जत से खिलवाड़ किया जाता है। घरेलू नौकरों के रूप में तो लड़कियां और लड़कों दोनों को ही उत्पीडऩ झेलना पड़ता है। आखिर इंसान इतना क्रूर कैसे हो जाता है? ऐसी पाश्विक प्रवृत्ति वाले लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। 

मैं यह तो नहीं कह सकती कि वेश्यावृत्ति को वैध करार दिए जाने से कोई समाधान निकलेगा या नहीं, फिर भी मैं सुनती हूं कि अनेक राज्य इस दिशा में चिंतन-मनन कर रहे हैं। बलात्कारी चाहे वयस्क हो या अवयस्क, उसके लिए मृत्युदंड वर्तमान में एक जरूरत बन चुका है। हमारी अबोध बच्चियों को बचाने के लिए हमें ‘मां का लाडला’ वाली मानसिकता से ऊपर उठना होगा और लड़कों के मन में नैतिकता के साथ-साथ दूसरों का सम्मान करने की भावना जगानी होगी और उनके मन में यह डर भी पैदा करना होगा कि किसी लड़की के साथ दुव्र्यवहार के नतीजे बहुत खतरनाक हो सकते हैं। घर में बच्चा जैसी शिक्षा व संस्कार लेता है वही उसके जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। वैसे वर्तमान दुनिया में लड़कों की तुलना में लड़कियां अधिक परिपक्व और करियर को समर्पित हैं तथा वे अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल के मामले में भी अधिक जिम्मेदारी दिखाती हैं। 

आज भी हम महिलाओं को यातनाएं झेलते देखते हैं। समाज एक बच्ची के साथ मानवीय व्यवहार क्यों नहीं कर पाता। आज के पुरुषवादी समाज में फलने-फूलने का प्रयास कर रही बच्ची को इतनी शारीरिक और मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ती हैं कि वह अक्सर टूट जाती है। सती से लेकर दहेज हत्या और भ्रूण हत्या तक हमारी महिलाओं को वह सब कुछ आज भी झेलना पड़ता है जो वे सदियों से झेलती आई हैं। एन.आर.आई. हमारी लड़कियों के साथ शादी करके फिर पता नहीं कहां गायब हो जाते हैं। 

ऐसी शादियों ने न जाने कितनी युवतियों के सपने चूर-चूर किए हैं और उनके जीवन सदा के लिए बर्बाद कर दिए हैं। फिर भी लड़कियों की हिम्मत की दाद देने को दिल चाहता है कि वे घर और कार्यस्थल में दोनों ही जगह यातनाएं झेलने के बावजूद बहुत धैर्यपूर्वक ढंग से सिर झुकाए काम करती हैं और अपने परिवारों के लिए सहारा बनी हुई हैं। उनके दिमाग में केवल एक ही बात छाई होती है कि उनके परिवार के पुरुषों को समाज में उनके कारण अपमान न झेलना पड़े। इस तरह हमारी लड़कियां समाज के लिए सबसे बड़ा बलिदान कर रही हैं। हमारे कानूनदानों को भी हिम्मत दिखाने और यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि कानून की कमजोरियों और चोर रास्तों का लाभ उठाकर बलात्कारी और अत्याचारी बचकर न निकल पाएं और स्वतंत्र न घूमें।-देवी चेरियन

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