समाजवाद का अपमान कर रहे ‘कथित समाजवादी’

punjabkesari.in Tuesday, Oct 25, 2016 - 01:04 AM (IST)

(मंगत राम पासला): श्रमिकों के लिए पवित्र तथा शहद जैसी मिठास देने वाले शब्द ‘समाजवाद’  का निरादर जिस प्रकार कथित समाजवादी नेताओं मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार तथा नई पीढ़ी के नेता व यू.पी. के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।

समाजवाद का अर्थ है अमीरी और गरीबी के बीच की खाई से मुक्ति, समानता तथा मानवीय स्वतंत्रताओं पर आधारित राजनीतिक व आर्थिक ढांचा। ऐसा ढांचा जहां सकल सामाजिक उत्पाद का स्वामित्व पूरे समाज के हाथों में हो।

ऐसी सामाजिक व्यवस्था को साकार करने के लिए वैज्ञानिक आधार पर चलने वाली अनुशासित एवं सिद्धांतप्रिय पार्टी का होना जरूरी है, जिसके नेता और सदस्य पूरी तरह जन कल्याण के लिए समॢपत रहते हुए हर प्रकार की कुर्बानी करने को तत्पर रहें। इस पार्टी पर देश के करोड़ों मजदूरों-किसानों और श्रमजीवियों को पूर्ण विश्वास हो। इसके नेता और कार्यकत्र्ता भ्रष्टाचार, अहंकार तथा अवसरवादी राजनीति से पूरी तरह मुक्त हों। ऐसी राजनीतिक पार्टी का संचालन करने वालों की एक समिति हो जो योग्यता एवं क्रांतिकारी सिद्धांतों पर आधारित हो तथा लोकतांत्रिक ढंग से फैसले लेते हुए तय लक्ष्य को हासिल करने हेतु जन समूहों के संघर्षों का नेतृत्व करने में सक्षम हो- यह आज के दौर की बहुत बड़ी जरूरत है। इस प्रकार की पार्टी स्पष्ट तौर पर साम्प्रदायिकवाद, उग्रवादी प्रवृत्तियों, जातिवादी राजनीति तथा अन्य किसी भी संकीर्ण विचारधारा से मुक्त हो।

यदि उपरोक्त शर्तों की कसौटी पर मुलायम सिंह यादव एंड कम्पनी कथित ‘समाजवादियों’ की नीतियों, व्यवहार एवं संस्कृति को परखा जाए तो शायद शर्मिन्दगी के अलावा कुछ और हाथ नहीं लगेगा। इन भद्र पुरुषों का न तो कोई तय सिद्धांत है और न ही जनकल्याण की किसी अवधारणा के लिए प्रतिबद्धता। इनकी जीवनशैली भी समाजवाद के सिद्धांतों से कोसों दूर है। इनकी समूची पार्टी समिति में इनका खुद का परिवार, रिश्तेदार एवं धन बटौरने वाले दलाल शामिल हैं जो  बिना किसी गहन विचार-चर्चा के कोई भी फैसला करने का अधिकार अपने ‘सुप्रीमो’ को सौंप देते हैं। 

समाजवाद मूल रूप में जिन साम्राज्यवादियों, कार्पोरेट घरानों तथा जागीरदारों का दुश्मन है, वे ही इन कथित समाजवादियों का पोषण करते हैं। जिन सरकारों का ये नेता लोग विरोध करते हैं, पता नहीं कब कुछ ‘खैरात’ हासिल होने पर ये उन्हीं के पक्ष में खड़े हो जाएं। सत्ता की प्राप्ति ही इनके लिए परम धर्म है, ऐसी सत्ता बेशक साम्प्रदायिक तत्वों, राष्ट्रद्रोहियों और जात-पात आधारित गठजोड़़ों के माध्यम से ही हासिल क्यों न होती हो? इन लोगों के लिए भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार बन चुका है।

इन समाजवादियों के सत्ता पर विराजमान होते ही हर स्तर पर भ्रष्टाचार, गुंडाराज, बाहुबलियों का बोलबाला तथा उपद्रवियों का बोलबाला होता है। गरीबों, दलितों, महिलाओं, मजदूरों, किसानों पर कोई भी अत्याचार देखकर इनकी आंखें नम नहीं होतीं बल्कि हर दुर्भाग्यपूर्ण घटना में से ये लोग वोट बटोरने के लिए घात लगाकर बैठे रहते हैं। इन्हें अपनी भाषा बदलने में लेशमात्र भी डर या लज्जा महसूस नहीं होती। सत्ता से बाहर रहते हुए साम्प्रदायिक पाॢटयों एवं संगठनों को पानी पी-पी कर कोसने वाले सत्ता का चोग हासिल होते ही उन्हीं का यशोगान शुरू कर देते हैं। 

उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार का गुंडा और माफिया राज, दलितों और महिलाओं पर अत्याचार तथा संघर्षशील लोगों के विरुद्ध दमन चक्र अखिलेश यादव (और उनसे पहले मुलायम यादव) की सरकार द्वारा चलता रहा है, उसे देखकर तो हर व्यक्ति को ‘यादव शाही समाजवाद’ से घृणा हो सकती है। 

देश के वामपंथी तथा क्रांतिकारी दलों को यह मांग करनी चाहिए कि इन कथित समाजवादियों को ‘समाजवाद’  का पवित्र शब्द प्रयुक्त करने से रोका जाए अथवा इन कृत्रिम समाजवादियों को हम जनता की कचहरी में बेपर्द करें ताकि समाजवाद के प्रति जनता का लगाव यथावत बना रहे। वास्तव में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) घोर गिरावट भरी पूंजीवादी पार्टी है, जिसमें धन्ना सेठों, कालाबाजारियों एवं बाहुबलियों का बोलबाला है। 


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