सोशल मीडिया महारथी हैं मोदी, फिर देशव्यापी दलित आंदोलन कैसे भड़का
Tuesday, Apr 24, 2018 - 02:57 AM (IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब से ही उनकी राजनीतिक लड़ाई का एक बहुत ही कारगर हथियार सोशल मीडिया है। गुजरात के एक आई.टी. विशेषज्ञ का कहना है कि जब मोदी जी मुख्यमंत्री थे, तभी उन्होंने अहमदाबाद से सटे सानंद में एक भवन में लगभग 350 से अधिक लड़कों की साइबर टीम इसके लिए लगा रखी थी। अब तो वह देश के प्रधानमंत्री हैं।
दिल्ली में भाजपा मुख्यालय के अलावा राज्यों के पार्टी कार्यालयों में भी आई.टी. टीमें रात-दिन काम करने लगी हैं। उनके आदेशानुसार पार्टी के सभी सांसदों व विधायकों, पार्षदों से लेकर पार्टी के ऊपर से नीचे तक के पदाधिकारियों, कार्यकत्र्ताओं तक को अपना फेसबुक, व्हाट्सएप अकाऊंट व ग्रुप बनाना पड़ा है। रोज गुड मॉॄनग से लेकर गुड नाइट तक कहना पड़ रहा है। निर्देशानुसार लाइक्स बढ़ाने पड़ रहे हैं।
उ.प्र. विधानसभा चुनाव के बाद अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए भी प्रत्याशियों के चयन का एक पैमाना उनकी सोशल मीडिया में सक्रियता का भी रखा गया है। मोदी द्वारा सोशल मीडिया को चुनावी व राजनीतिक लड़ाई का एक प्रमुख हथियार बना देने का ही नतीजा है कि इस पर (सोशल मीडिया) वह (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) विश्व के दूसरे सबसे लोकप्रिय नेता हो गए हैं। उनको उनके ट्विटर पर 4 करोड़ 21 लाख लोग फॉलो कर रहे हैं, लगभग 4 करोड़ 50 लाख लोग फेसबुक पर फॉलो कर रहे हैं, लगभग डेढ़ करोड़ लोग इंस्टाग्राम पर फॉलो कर रहे हैं। इन 3 के अलावा उनके पास नमो एप और माई गांव की वैबसाइट भी है। उनके अति विश्वासपात्र भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को सोशल मीडिया में लगभग 2 करोड़ लोग फॉलो कर रहे हैं। इससे इन्हें अपने सोच-विचार प्रचारित करने में तो मदद मिलती ही है, फीडबैक भी मिलते हैं।
बावजूद इसके सर्वोच्च न्यायालय में एस.सी./एस.टी. एक्ट मामले में तथाकथित संशोधन के मुद्दे पर दलित आंदोलन एक झटके में पूरे देश में कैसे फैल गया और बिना किसी नेता की अपील के ही पूरे देश में, बड़े शहरों, नगरों, कस्बों में इतनी अधिक संख्या में दलित युवक कैसे सड़कों पर आ गए? यह केंद्र सरकार के मालिकान से लेकर खुफिया एजैंसियों तक के लिए गहन मनन का विषय बन गया है।
कहा जाता है कि यूरोप व अमरीका में रहने वाले, बड़ी आई.टी. कम्पनियों में काम करने वाले कुछ दलित युवकों ने कुछ वर्ष पहले अंदर ही अंदर, बिना किसी शोर-शराबे के अपना दलित नैटवर्क बनाना शुरू किया। जो अब लगभग 300 एन.आर.आई. दलित का मजबूत समूह हो गया है। उनके लिंक भारत में पढ़ रहे मेधावी दलितों छात्रों से बन गए हैं। इन छात्रों के आईकन विदेश में रहने वाले वे 300 आई.टी. अभियंता, प्रबंधक होते जा रहे हैं। उनके ही एक संदेश पर महज 24 से 48 घंटों में देशभर में इतना बड़ा देशव्यापी प्रदर्शन हुआ। सो, अब यह कहा जाने लगा है कि क्या मोदी व शाह को उनके फॉलोअर्स देश के हालातों का कुछ फीडबैक नहीं देते? क्या फॉलोअर्स वही फीडबैक दे रहे हैं जो उनके नेताओं को पसंद है?-कृष्णमोहन सिंह