तो सवाल यही होगा कि वादेे कैसे होंगे पूरे?

punjabkesari.in Sunday, Nov 02, 2025 - 04:40 AM (IST)

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और विपक्ष के महागठबंधन (‘इंडिया’) ने अपने-अपने घोषणापत्र जारी कर दिए हैं। दोनों ने जनता से बड़े-बड़े वादे किए हैं पर सवाल यह है कि क्या इन वादों पर अमल संभव है। एन.डी.ए. ने शुक्रवार को पटना के पांच सितारा होटल  में अपने ‘संकल्प पत्र’ में एक करोड़ नौकरियों, 7 एक्सप्रैस-वे, 4 मैट्रो, किसान सम्मान निधि, महिलाओं को रोजगार के लिए 2 लाख सालाना, 125 यूनिट मुफ्त बिजली, मुफ्त राशन, मैगा स्किलिंग सैंटर और 1 लाख करोड़ रुपए के औद्योगिक निवेश जैसे कई लोक-लुभावन वायदे किए हैं।

वहीं, महागठबंधन के ‘तेजस्वी प्रण’ पत्र ने हर परिवार को नौकरी, पुरानी पैंशन बहाली, संविदाकर्मियों को स्थायी करने, 200 यूनिट मुफ्त बिजली, महिलाओं को 2,500 रुपए मासिक सहायता और 25 लाख रुपए तक मुफ्त इलाज का वादा किया। दोनों घोषणाओं का लहजा आकर्षक है  लेकिन बिहार की मौजूदा आर्थिक स्थिति के लिहाज से कई सवाल भी खड़े करता है। बीते हफ्ते जब महागठबंधन ने संकल्प पत्र, जिसे ‘तेजस्वी संकल्प’ का नाम दिया था, जारी किया गया था। तब हर परिवार में एक को सरकारी नौकरी देने के फायदे पर सवाल उठाया गया था कि यह कैसे संभव होगा? अब लगभग उसी तरीके का मिलता-जुलता वायदा कर भारतीय जनता पार्टी से भी चुनाव के चरम दिनों में सवाल उठाए जाने के पूरे आसार हैं।

राज्य के बजट आंकड़े बताते हैं कि बिहार का सकल ऋण पहले ही जी.एस.डी.पी. के लगभग 38 प्रतिशत तक पहुंच चुका है और राजकोषीय घाटा तय सीमा के आसपास है। राज्य की कुल आय का बड़ा हिस्सा केंद्र के कर-हिस्से और उधार पर निर्भर है। ऐसे में दोनों गठबंधनों के वादों को पूरा करने के लिए 1 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त वार्षिक बोझ आने का अनुमान है। यदि महागठबंधन की सभी योजनाएं लागू की जाएं जैसे महिलाओं को नकद सहायता, मुफ्त बिजली और हर परिवार को एक सरकारी नौकरी तो अकेले इन पर ही लगभग 80,000 से 1 लाख करोड़ रुपए प्रति वर्ष खर्च होगा। पुरानी पैंशन योजना बहाल करने से हर वर्ष 12,000-15,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार बढ़ेगा। वहीं, एन.डी.ए. की रोजगार और इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाएं शुरूआती वर्षों में 70,000 करोड़ रुपए से अधिक की पूंजीगत आवश्यकता रखती हैं।

इसी तरह, स्वास्थ्य बीमा, के.जी. से पी.जी. तक मुफ्त शिक्षा और नकद सहायता योजनाएं प्रारंभ में राहत देंगी लेकिन उनके लिए दीर्घकालिक राजस्व स्रोत तय नहीं हैं। सीमित संसाधन और कमजोर औद्योगिक आधार का फोटो नहीं सवाल है तो है, प्रश्न यह है कि क्या राज्य के पास इतने संसाधन हैं? कर संग्रह अब भी सीमित है। राज्य की अपनी आय का हिस्सा कुल राजस्व का केवल 25 प्रतिशत है। उद्योग आधार कमजोर है और नए निवेश को आकर्षित करने के लिए भूमि, बिजली और परिवहन जैसी बुनियादी चुनौतियां बरकरार हैं। ऐसे में एन.डी.ए. के औद्योगिक वादे तभी संभव लगते हैं जब केंद्र से भारी सहायता और निजी निवेश की बड़ी भागीदारी मिले। वहीं, महागठबंधन की नकद सहायता और मुफ्त योजनाएं अल्पकाल में लोकप्रिय हो सकती हैं लेकिन दीर्घकाल में राजकोषीय संतुलन को बिगाड़ सकती हैं। 

रोजगार का गणित, योजना से ज्यादा कल्पना: रोजगार के मोर्चे पर दोनों पक्षों के दावे जमीनी यथार्थ से कोसों दूर हैं। एन.डी.ए. का ‘एक करोड़ रोजगार’ लक्ष्य तभी व्यावहारिक है जब निजी क्षेत्र तेजी से विस्तार करे जबकि महागठबंधन का ‘हर परिवार को सरकारी नौकरी’ का वादा प्रशासनिक दृष्टि से लगभग असंभव है क्योंकि राज्य सरकार में कुल स्थाई पद लगभग 8 लाख ही हैं। इतनी बड़ी संख्या में सरकारी नौकरियां सृजित करना न तो व्यावहारिक है न ही वित्तीय रूप से टिकाऊ। 

बिजली बोर्ड पहले ही 12000 करोड़ के घाटे में है : ऊर्जा क्षेत्र में मुफ्त बिजली देने का असर बिजली बोर्ड की वित्तीय स्थिति पर पड़ेगा। बिहार राज्य विद्युत वितरण कंपनी पहले से 12,000 करोड़ रुपए से अधिक के घाटे में है। यदि महागठबंधन की 200 यूनिट मुफ्त बिजली योजना लागू होती है तो वार्षिक सबसिडी का बोझ 6,000-8,000 करोड़ रुपए बढ़ सकता है। वहीं, अगर एन.डी.ए. की 125 यूनिट मुफ्त बिजली योजना लागू होती है तो भी लगभग 4000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

इन सबके बीच सबसे अहम प्रश्न प्रशासनिक क्षमता का है। बिहार में योजनाओं के क्रियान्वयन की दक्षता सीमित है। कई परियोजनाएं वर्षों तक अटकी रहती हैं। यदि यही स्थिति बनी रही तो चाहे एन.डी.ए. का ‘संकल्प’ हो या महागठबंधन का ‘प्रण’,वादों का क्या होगा? समझना मुश्किल न होगा। कुल मिलाकर, एन.डी.ए. का घोषणा पत्र आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत निवेश-उन्मुख दिखता है जबकि महागठबंधन का तात्कालिक राहत और कल्याण पर आधारित है। लेकिन दोनों के वादे तभी विश्वसनीय माने जा सकते हैं जब उनके पीछे ठोस वित्तीय योजना, केंद्र-राज्य सांझेदारी और जवाबदेही की व्यवस्था हो।-अकु श्रीवास्तव
 


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