सिख, सिख पंथ तथा संस्थाएं हुईं ‘बदनाम’

punjabkesari.in Tuesday, Sep 01, 2020 - 03:09 AM (IST)

श्री अकाल तख्त साहिब के कार्यकारी जत्थेदार भाई हरप्रीत सिंह की ओर से पंथक जत्थेबंदियां तथा समस्त मीडिया की ओर से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी तथा सिख संस्थाओं के कुप्रबंधों, भ्रष्टाचार, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पावन स्वरूपों की जांच संबंधी गठित डाक्टर ईशर सिंह एडवोकेट (तेलंगाना) कमीशन की सीलबंद रिपोर्ट पर कार्रवाई तथा विचार-विमर्श हेतु शिरोमणि कमेटी की अंतरिंग कमेटी की जो बैठक गत दिनों बुलाई गई, उसमें कुछ खामियां सामने आई हैं। इन्होंने पूरे विश्व में सिख, सिख पंथ तथा संस्थाओं को बदनाम करके रख दिया है। 

विश्व का पूरा सिख जगत यह महसूस कर रहा है कि पूर्व तीन लाख वेतन लेने वाले मुख्य सचिव, तीन सह-सचिव सहित जो करीब 15 अधिकारियों तथा कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई हुई है, वह तो उस बिल्ली की बात की तरह है जब आग से उसके पैर जलने लगे तब उसने अपने बचाव हेतु अपने ही बच्चे पैरों के नीचे ले लिए। शिरोमणि कमेटी पर काबिज सर्वोच्च नेतृत्व के विशेष व्यक्ति, मैस. एस.एस. कोहली एंड एसोसिएट्स की कमेटी तथा संबंधित सिख संस्थाओं के आडिट संबंधी न केवल सेवाएं समाप्त करने बल्कि उनसे प्राप्त किए हर तरह के धन का 75 प्रतिशत रिकवर किया जाए। (यह फर्म वाॢषक गुरु रामदास जी के खजाने में से करोड़ों रुपए तथा उन पर बनता आयकर वसूलती थी)। 

पूर्व तीन लाख वेतन वाले मुख्य सचिव के विरुद्ध बेनामा नोटिस ले आने के बावजूद मिलीभगत कर कानूनी कार्रवाई न करना। इसके अलावा कुछ अन्य कर्मचारी जो सर्वोच्च नेतृत्व के करीब होने के कारण धक्केशाही से धांधलियां करते हैं उनके खिलाफ भी कार्रवाई करने का फैसला किया। इस संबंधी सब कुछ सार्वजनिक तब हुआ, जब अंतरिंग कमेटी ने चंडीगढ़ स्थित शिअद (ब) की कोर कमेटी की बैठक के बाद आकाओं के आदेशों पर ये फैसले लिए। ये फैसले हजारों पन्नों वाले कमीशन के केवल कुछ पहले पृष्ठों पर आधारित हैं। अभी बहुत बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार, बेनामी तथा अनियमितताओं का पिटारा खुलना बाकी है। 

शिरोमणि कमेटी धर्म प्रचार करने के तौर पर भी अच्छी कारगुजारी नहीं दिखा सकी। जबकि विदेश में विशेषकर अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन के भीतर कुछ सिख संस्थाओं ने गुरमति कैम्पों तथा सिखी के प्रचार द्वारा करीब साढ़े सात लाख गोरे लोगों को सिखी के साथ जोड़ा है। वे लोग सिंह-सिंहनियां नहीं सजे बल्कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी एवं पंथ के साथ जुड़ कर अपने आपको भाग्यशाली समझ रहे हैं। 

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बड़ी कुर्बानियों तथा संघर्ष के बाद अंग्रेजी हुकूमत के समय सिख गुरुद्वारों की आजादी, धार्मिक प्रचार, सिख धर्म, सिखी और सिख संस्थाओं की रक्षा हेतु सिख गुरुद्वारा एक्ट के द्वारा 28 जुलाई 1925 को अस्तित्व में आई थी जिसका एक अद्भुत इतिहास है। यह संस्था जिसे एक स्वायत्त राज्य स्थापित करने वाली संस्था ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सिखों की पाॢलयामैंट के तौर पर सम्मान दिया जाता है, आज एक परिवार की दासी बन कर रह गई है तथा अपनी सांसें गिन रही है। यदि शिरोमणि कमेटी से अलग हो पाकिस्तान गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी तथा हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियां अस्तित्व में आई हैं तो इसके लिए भी इस संस्था का कथित घटिया, भेदभावपूर्ण व्यवहार जिम्मेदार है। 

शिरोमणि कमेटी के प्रबंधन के बारे में जानकारी सिख संगतों तथा पंथ के सामने न आती, यदि भाई रणजीत सिंह ‘पंथक अकाली लहर’ द्वारा निरंतर सिख संगतों को हमलावर शैली के द्वारा उन्हें जागृत न करते। शिरोमणि कमेटी को वर्तमान प्रबंधकों से आजाद करवाने के लिए उन्होंने गांव-गांव प्रचार किया। 

सबसे प्रभावशाली तथा तत्काल कारण शिरोमणि अकाली दल (डैमोक्रेटिक) का सरदार सुखदेव सिंह ढींडसा के नेतृत्व में गठन तथा उनकी ओर से सबसे प्रमुख पहला लक्ष्य शिरोमणि कमेटी को शिरोमणि अकाली दल (ब) तथा शिरोमणि कमेटी पर कब्जा जमाए एक परिवार से आजाद करवाना था। उनके दल में निष्पक्ष समझदार तथा शिअद (ब) से नाराज नेता शामिल हुए। शिरोमणि कमेटी के भ्रष्टाचारों, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी, सिख संस्थाओं की बर्बादी के मुद्दों को तेजी से उजागर करने से शिअद (ब) हिल गया है। इसके लिए उन्होंने कड़वा घूंट पीने की रणनीति बनाई है। 

यदि शिरोमणि कमेटी के मुख्य सचिव डा. रूप सिंह ने समस्त प्रबंधों संबंधी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपना इस्तीफा दे दिया तो सबसे पहले तथा प्रमुख जिम्मेदार अध्यक्ष भाई गोबिन्द सिंह लौंगोवाल को सबसे पहले तथा उसके बाद पूरी अंतरिंग कमेटी को दूसरे नम्बर पर इस्तीफा देना बनता था। 

शिरोमणि कमेटी के चुनावों तक इसका प्रबंधन किसी निष्पक्ष सिख प्रसिद्ध प्रबंधक या जनरल (सेवानिवृत्त) को सौंप देना चाहिए। ऐसे सैंकड़ों व्यक्ति हैं जो निष्पक्ष होकर यह सेवा निभाने के लिए तैयार हैं। इसके लिए वे नि:शुल्क सेवा देने के लिए भी तैयार हैं। जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब को अपने हुक्मनामों या आदेशों की पालना समयबद्ध तरीके से करवानी चाहिए। उन्हें किसी दबाव में नहीं आना चाहिए। शिरोमणि कमेटी अध्यक्ष तथा अंतरिंग कमेटी को डाक्टर ईशर सिंह कमीशन की रिपोर्ट के अंतर्गत इस्तीफा देने का आदेश जारी करना चाहिए।-दरबारा सिंह काहलों


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