सिख सियासत : पांच तख्तों के जत्थेदार और सिख मुद्दे
punjabkesari.in Friday, Oct 06, 2023 - 04:42 AM (IST)

सिख समाज के राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे, फिर चाहे वह धार्मिक हों या सामाजिक या फिर राजनीतिक हों, सभी मुद्दों के समाधान के लिए सिख पांच तख्तों के जत्थेदारों विशेषकर श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार की ओर देखते हैं। सिख उम्मीद करते हैं कि पांच तख्तों के पांच जत्थेदार साहिब जिनको सिंह साहिब के नाम से जाना जाता है, सिख समुदाय को सही रास्ता दिखाएंगे। सिख धर्म के अस्तित्व में आने के बाद बने पांच तख्तों में सबसे पहले तख्त श्री अकाल तख्त साहिब के निर्माण का कार्य छठे गुरु श्री गुरु हरगोङ्क्षबद साहिब जी ने भाई गुरदास और बाबा बुड्ढा जी की मदद से 15 जून 1606 को अपने हाथों से पूरा करवाया।
दूसरा तख्त श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर साहिब है जिसका निर्माण 1689 में श्री गुरु गोङ्क्षबद सिंह जी महाराज की ओर से करवाया गया तथा यहीं से 1699 में बैसाखी वाले दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों को अमृत छका कर सिंह सजाया। तीसरा तख्त श्री दमदमा साहिब तलवंडी साबो में स्थापित हुआ और इसी स्थान को तख्त के तौर पर मान्यता 18 नवम्बर 1966 को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से पास किए गए प्रस्ताव के द्वारा दी गई। इस स्थान पर श्री गुरु गोङ्क्षबद सिंह जी ने आदि ग्रंथ साहिब में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की बाणी को दर्ज करवाया।
इस बीड़ को दमदमी बीड़ के नाम से जाना जाता है। गुरु साहिब ने इस बीड़ को भाई मनी सिंह से लिखवाया और इसे तैयार करने में कागज, कलम और स्याही के प्रबंध की जिम्मेवारी बाबा दीप सिंह ने निभाई। इस स्थान की महत्ता को देखते हुए इसे तख्त के तौर पर मान्यता दी गई। चौथे तख्त को तख्त श्री हरिमंदिर साहिब पटना साहिब के तौर पर जाना जाता है। यहां पर श्री गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 1666 में हुआ था। पांचवां तख्त सचखंड श्री हजूर साहिब है। इस स्थान पर श्री गुरु गोङ्क्षबद सिंह ने एक वर्ष का समय बिताया और यहीं पर ज्योति ज्योति समाए। यहीं से श्री गुरु गोङ्क्षबद सिंह जी ने आदि ग्रंथ साहिब को गुरु मानने का आदेश दिया।
गुरु साहिबान के समय के बाद सरबत खालसा और बाद में सिख समाज की तरक्की और मर्यादा कायम करने के लिए तख्तों के जत्थेदार सिख समाज को निर्देश देने वाले प्रमुख ओहदेदार माने जाते हैं। जब कभी भी सिख परम्पराओं को ठेस लगती है या कोई मुश्किल दरपेश आती है तो तख्तों के जत्थेदार मिल-बैठकर उनका समाधान निकालते हैं। सिखों के लिए आदेश जारी किया जाता है और विशेष हालातों में हुक्मनामे जारी किए जाते हैं। सबसे पहला हुक्मनामा श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी की ओर से पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी को जहांगीर की ओर से शहीद किए जाने के बाद 30 जून 1606 को जारी किया गया। जिसमें सिखों को यह आदेश दिया गया कि वह नकद राशि के स्थान पर घोड़े और सशस्त्र भेंट करें ताकि मुगल साम्राज्य का सामना किया जा सके।
पुरातन समय में बहुत से हुक्मनामे जारी किए गए जिनमें दो हुक्मनामे श्री गुरु हरगोङ्क्षबद साहिब, एक श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब, 22 श्री गुरु तेग बहादुर साहिब, 34 श्री गुरु गोङ्क्षबद सिंह जी, 2 बाबा बंदा सिंह बहादुर तथा 2 श्री अकाल तख्त साहिब से जारी हुए। इसके बाद सरबत खालसा के द्वारा भी हुक्मनामे जारी होते रहे। 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों की ओर से गुरुद्वारों पर अपना नियंत्रण करने के लिए अपने विशेष लोगों को तख्तों के प्रबंधक बना दिया। उस समय कई कार्रवाइयां और हुक्मनामे ऐसे भी जारी हुए जो सिख मर्यादाओं से मेल नहीं खाते थे। जिनमें विशेषकर अकाल तख्त से गदरी कारकूनों के खिलाफ हुक्मनामा और जत्थेदार अरुड़ सिंह की ओर से जनरल डायर को सिरोपा देना शामिल है।
इसके बाद अनेकों हुक्मनामे जारी हुए जिन पर कई बार सिख समुदाय ने पूर्ण भरोसा जताया। तख्त श्री दमदमा साहिब को तख्त का दर्जा मिलने के बाद पांच तख्तों के जत्थेदार सिख समुदाय के मुद्दों पर मिल-बैठकर चर्चा कर फैसले करते रहे। जैसा कि 1998 में हुक्मनामा जारी किया गया कि कोई भी व्यक्ति श्री गुरु ग्रंथ साहिब को होटल या होटल जैसे किसी भी स्थान पर आनंद कारज के लिए ले जा नहीं सकता।
इस फैसले पर पांच तख्तों के जत्थेदारों के हस्ताक्षर हैं। मगर धीरे-धीरे पांच तख्तों के जत्थेदारों का मिल-बैठकर फैसले सुनाने का रुझान खत्म होता जा रहा है। मुद्दा हुक्मनामे जारी करने तक का नहीं है बल्कि मुद्दा जत्थेदार साहिबान का जो रुतबा सिख समुदाय में है और जो बड़ा सम्मान उनका है वह उनकी जिम्मेदारी को भी बहुत बड़ा कर देता है और सवाल उठाता है कि उसके अनुसार जत्थेदार साहिबान की ओर से सिख कौम की दिल से सेवा की जा रही है या नहीं।
श्री अकाल तख्त साहिब पर 5 जत्थेदारों की अंतिम बैठक 6 दिसम्बर 2022 को हुई थी जिसमें केवल प्रबंधकीय मुद्दों पर विचार किया गया। इस बैठक में सिख समाज से जुड़े मुद्दों पर कोई विचार नहीं किया गया। इस बैठक में केवल 3 तख्तों के जत्थेदार ही शामिल हुए तथा 2 जत्थेदारों के स्थान पर दरबार साहिब के 2 ग्रंथी शामिल हुए थे। हालांकि इस मर्यादा के अनुसार कुछ भी गलत नहीं है। मगर सोचने वाली बात तो यह है कि पांच तख्तों के जत्थेदार साहिबान के पास सिख धर्म के मुद्दों पर विचार या चर्चा करने का वक्त ही नहीं है। आज जबकि सिख समुदाय बहुत-सी दुविधाओं में फंसा हुआ है और नेतृत्व विहीन है ऐसे में जत्थेदार साहिब की जिम्मेदारी सिख समाज को सही दिशा दिखाने की बनती है। -इकबाल सिंह चन्नी (भाजपा प्रवक्ता पंजाब)