सिख नेतृत्व वाले प्रदर्शनों से जुड़े हैं ‘ट्रैक्टर और टैंक’

punjabkesari.in Sunday, Feb 07, 2021 - 02:58 AM (IST)

किसान आंदोलन ने ट्रैक्टरों को प्रदर्शन के वाहनों के रूप में बदल दिया है। यह सब फ्रांस तथा नीदरलैंड्स में भी हो चुका है, जहां पर ट्रैक्टर प्रदर्शनों ने सड़कें जाम कर दी थीं। यहां तक कि 1978-79 में प्रदर्शनकारी अमरीकी किसान ट्रैक्टरों को वाशिंगटन डी.सी. तक ले गए।वर्तमान आंदोलन में ट्रैक्टरों का इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण घटना थी। खासकर गणतंत्र दिवस पर जब आधिकारिक परेड में भारतीय सेना के टैंक दिखाई देते हैं। ट्रैक्टरों की तुलना टैंकों से की गई। टैंक तथा ट्रैक्टर कभी भी आपस में नहीं भिड़े मगर यह याद करने वाली बात है कि किस तरह उनका इतिहास आपस में जुड़ा है। 

यह एक इतिहास है जो सिखों के नेतृत्व वाले प्रदर्शनों के वैश्विक इतिहास के साथ जुड़ा है। कैलिफोॢनया में स्टाकटन नामक शहर जोकि उपजाऊ सैंट्रल वैली के मुहाने पर स्थित है और यहां पर सैन जोक्विन और सैक्रामैंटो रिवर कई जलमार्गों के माध्यम से आपस में मिलते हैं, पर इतिहास इकट्ठा होता है। बैंजामिन हॉल्ट 1880 में यहां पहुंचे और एक पहिया बनाने की कम्पनी स्थापित की। इसी ने ही कम्बाइन हार्वेस्टर्ज और ट्रैक्टरों का पहला रूप तैयार किया जिन्हें खेतों में कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था। शुरूआती दौर में इन्हें घोड़ों से चलाया जाता था मगर उसके बाद भाप से चलने वाले इंजनों का इस्तेमाल हुआ, फिर कोयले तथा तेल वाले इंजन शुरू हुए। 

मगर इन सब में एक समस्या आम थी। उनके पहिए गीली डैल्टा मिट्टी में फंस जाते थे। हॉल्ट ने महसूस किया कि क्यों न ट्रैक का इस्तेमाल किया जाए ताकि मिट्टी में वजन के कारण पहियों का धंसना बंद हो जाए। वास्तव में ट्रैकों ने मशीनों के लिए एक भूमि तैयार की। यहां तक कि खुरदरी जमीन या फिर कीचड़ वाली भूमि पर भी इन्हें लगाया गया। यह अस्पष्ट है कि हॉल्ट ने यह समाधान खुद निकाला या फिर उसे किसी दूसरे ने यह विचार दिया। मगर इतना तो है कि ट्रैक पर चलने वाली मशीन एक व्यापारिक सफलता बन गई और उनकी कम्पनी को ‘कैटरपिल्लर’ कहा जाने लगा। उन्होंने 1910 में इसका ट्रेडमार्क किया और 1925 में कम्पनी को नया नाम ‘कैटरपिल्लर ट्रैक्ट्र्र्ज’ दिया। आज यह विशाल और अग्रणी कम्पनी है। 

‘एग्रीकल्चरल हिस्ट्री’ नामक मैगजीन में इतिहासकार रेनॉल्ड एम. विक ने यह नोट किया कि लियो स्टेनर नामक एक हंगेरियन इंजीनियर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कैटरपिल्लर ट्रैक्टरों की युद्ध के मैदानों वाली क्षमता देखी। उन्होंने आस्ट्रो-हंगेरियन सेना को दिखाने की कोशिश की कि किस तरह कैटरपिल्लर ट्रैक्टर तोपों को खींच सकते हैं मगर सेना ने उनकी बात को नकार दिया जो बाद में एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक भूल साबित हुई। यहां तक कि अमरीकी सेना ने भी हॉल्ट में दिलचस्पी नहीं दिखाई जब उन्होंने सेना से इसकी बात की। सेना ने कहा कि यह काम तो खच्चर तथा घोड़े भी कर सकते हैं। फिर सफलता ब्रिटिश के हाथ लगी। 1915 में प्रथम विश्व युद्ध के पहले वर्षों में बड़ी क्षति को झेलने के बाद  ब्रिटिश उत्सुकता से तोपों को खींचने का रास्ता तलाश रहे थे जो युद्ध के मैदान के कीचड़ में फंस जाती थी। खच्चर तथा घोड़े भी आसानी से मर जाते थे और यहां तक कि वाहनों में बैठे लोग गोलियों का निशाना बन जाते थे। 

जुलाई 1914 में एक ब्रिटिश अधिकारी कर्नल ई.डी. सिं्वटन जिनका जन्म बेंगलूर में हुआ था, ने अपने दोस्त से एक पत्र प्राप्त किया जिसमें कैटरपिल्लर ट्रैक्टरों का उल्लेख था। सिं्वटन ने महसूस किया कि यह हथियारबंद वाहन का आधार हो सकता है जो खुरदरी धरातल पर चल सकता है और एक बड़ी तोप को भी ले जा सकता है। आगे के युद्धों में ब्रिटिश सेना के लिए पहले टैंकों का आधार यही कैटरपिल्लर ट्रैक्टर बने। ब्रिटिश आर्मी को हॉल्ट की कम्पनी ने 2100 ट्रैक पर चलने वाले ट्रैक्टर उपलब्ध करवाए तथा 1918 में स्विंटन ने स्टॉकटन की यात्रा की और अपना आभार प्रकट किया। उन्होंने कैटरपिल्लर के कर्मचारियों को बताया कि उनके ट्रैक्टर युद्ध को जीतने के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे। बाद के समय में उनका इस्तेमाल बुल्डोजर के लिए किया जाएगा जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अति महत्वपूर्ण बने। विक लिखते हैं,‘‘एडमिरल विलियम एफ. हाल्से ने 1945 में कहा कि प्रशांत महासागर में 4 मशीनों ने युद्ध को जीता जो सबमरीन, विमान, राडार तथा ट्रैक्टर बुल्डोजर थे।’’ 

स्टॉकटन भी वहीं से आते हैं जहां से सिख आए। 1899 तथा 1914 के मध्य में अनुमानित 6800 दक्षिण एशियाई अमेरिकन वैस्ट में पहुंचे जोकि ज्यादातर पंजाब के सिख किसान ही थे। उन्हेें भारत से बाहर खेतों के आकारों के घटने तथा कर्ज के बढऩे के कारण धकेला गया। जैसा कि आज का किसान झेल रहा है। उन्होंने कैलिफोर्निया की उपजाऊ धरती के बारे में सुना जहां पर उनके हुनर का इस्तेमाल किया जा सकता था। ये लोग सैंट्रल वैली स्टॉकटन के आसपास स्थापित होने के लिए आ गए जहां पर उन्होंने अमरीका का पहला गुरुद्वारा निर्मित किया जिसे 1912 में श्रद्धालुओं के लिए खोला गया। 

इन सिख किसानों ने निश्चित तौर पर हॉल्ट के ट्रैक्टरों का इस्तेमाल किया है मगर उनकी रुचि कृषि तक सीमित नहीं थी। ज्वाला सिंह जो एक सफल आलू किसान बने तथा गुरुद्वारा साहिब स्टॉकटन के संस्थापकों में से एक थे, गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक बने। गदर पार्टी ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ प्रवासी भारतीयों का आंदोलन चलाया और क्रांति के लिए बलिदान दिया। पंजाबियों के नेतृत्व वाले राजनीतिक प्रदर्शन की पहली आधुनिक मिसाल गदर ही थी जो यही बताता है कि किस तरह सिख  किसानों, ट्रैक्टरों तथा टैंकों के बीच कितना गहरा संबंध है।-विक्रम डाक्टर


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