शिवसेना ‘टाइगर’ एक बार फिर दहाडऩे को तैयार

Saturday, Nov 23, 2019 - 02:03 AM (IST)

शिवसेना को भाजपा से अलगाव के बाद ‘टुथलैस टाइगर’ कहा जा रहा है। गत कुछ सप्ताह में जिस तरह से घटनाक्रम घटे हैं इस टाइगर ने फिर से दहाडऩा शुरू कर दिया है। यह टाइगर ऐसे किसी भी हमले के लिए तैयार है जो उसे धमकाना चाहेगा। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (59) के पास वैसा करिश्मा नहीं जैसा कि उनके पिता बाल ठाकरे के पास था।  मगर उनके पास लडऩे की क्षमता अपने पिता जैसी है।

उद्धव पार्टी को फिर से एक ऊंचे स्तर पर लेकर आए हैं और उन्होंने अपने बेटे आदित्य के लिए एक अच्छी भूमिका और राजनीतिक जमीन तैयार कर ली है। महाराष्ट्र के चुनावों के दौरान आदित्य ने कहा था कि पार्टी में अब हिंसा की कोई जगह नहीं है। चुनाव लडऩे वाले आदित्य ठाकरे परिवार के पहले सदस्य हैं और ऐसा करके उन्होंने परिवार की परम्परा को भी तोड़ा है। इस समय वह वर्ली से विधायक हैं। 

अपने रवैये में नरमी लाई शिवसेना
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत न मिलनेे के कारण  शिवसेना अब कांग्रेस तथा राकांपा से गठजोड़ कर पाई है। इस तरह अपने रवैये में शिवसेना नरमी लाई है। ऐसा करने से उद्धव ने अपने  पूरे राजनीतिक करियर के साथ एक बड़ा खेल खेला है। यदि यह कार्य कर पाया तो राष्ट्रीय स्तर पर नई हलचल देखी जा सकेगी। भारत एक बार फिर गठबंधन की राजनीति पर निर्भर होता दिखाई दे रहा है। यदि यह गठबंधन असफल रहा तो शिवसेना के वर्चस्व पर सवालिया निशान लग जाएगा। 

उद्धव का नरम रवैया 2015 में दिखाई पड़ा जब शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के एक सम्पादकीय में पार्टी ने मुस्लिमों के लिए वोटिंग अधिकारों का खंडन किया। उद्धव ने केवल इसे चुनौती ही नहीं दी बल्कि मुसलमानों के पक्ष में भी आवाज उठाई। यह बाला साहेब ठाकरे के बिल्कुल विपरीत बात थी। बाला साहेब युग के बाद अब नए और पुराने में अंतर दिखाई देने लगा है। उद्धव के तरकश में ‘सामना’ जैसे हथियार महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। शिवसेना में बदलाव चल रहा है। ‘सामना’ के द्वारा ही विपक्षियों पर शब्दों के बाण छोड़े जाते हैं। 

हिन्दुत्व लाइन से हटी पार्टी
शिवसेना के लिए सख्त हिन्दुत्व लाइन से हट कर नरम रवैया अपनाना कोई आसान काम नहीं है। शिवसेना में बदलाव भविष्य को देख कर हो रहा है। शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन के टूटने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पार्टी में बदलाव का मतलब यह नहीं कि शिवसेना अपनी मूल भावना को बदल दे। इतना तो स्पष्ट है कि आगे की राह भाजपा के बगैर नापी जाएगी। हमें एक बड़ी लड़ाई लडऩी होगी। इसी कारण पार्टी एक स्पष्ट और आक्रामक लाइन पर चल रही है। भाजपा के साथ 50-50 के फार्मूले की बात को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तथा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने सार्वजनिक रूप से नकारा है। शिवसेना नेताओं का मानना है कि भाजपा ने पार्टी को शर्मसार किया है। अब समय आ गया है कि पार्टी अपने आप को मजबूत करे और नए दोस्त तलाश करे। 

1966 में अपने गठन से लेकर 1985 तक शिवसेना विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं पर कार्य करती रही। राजनीतिक विशेष परिमल माया सुधाकर जो सरकारी एम.आई.टी. स्कूल की प्रमुख भी हैं, का मानना है कि शिवसेना ने उस समय कांग्रेस से दोस्ती की तथा एमरजैंसी का समर्थन किया। पार्टी ने प्रजा समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिलाया तथा मुस्लिम लीग के साथ मंच सांझा किया। अटल बिहारी वाजपेयी के समय ठाकरे की हिन्दुत्व विचारधारा को आक्रामक समझा गया। मगर मोदी तथा शाह के हिन्दुत्व रुख को देखते हुए सेना  का इस प्रति एजैंडा अब थोड़ा-थोड़ा गर्म दिखाई देता है। 

पूर्व के ‘अवतारों’ से मोदी-शाह की भाजपा है भिन्न
शिवसेना के लिए राजनीतिक बदलाव निश्चित लग रहा है। पुराने भाजपा नेता जहां एक ओर शिवसेना का समर्थन करते आए हैं, वहीं नई भाजपा सत्ता को बांटने के प्रति इसके विरोध में खड़ी हुई है। भाजपा के  पूर्व के ‘अवतारों’ से मोदी-शाह की भाजपा भिन्न है। उसकी सामाजिक बनावट अलग है। आज दोनों पार्टियां शहरी क्षेत्र में एक-दूसरे की प्रतिस्पर्धा में हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्र में राकांपा तथा कांग्रेस का दायरा और चौड़ा हुआ है। इसी कारण शिवसेना का नया गठजोड़ राकांपा तथा कांग्रेस के साथ अपने नए गुणों के कारण संभव हुआ है। बीते कुछ दिनों में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी शिवसेना के साथ गठबंधन के लिए अड़ी हुई थीं। 

मगर वास्तविकता यह है कि दोनों पार्टियों का लम्बे समय तक ‘लव-हेट’ का रिश्ता रहा है। 1970 में बाला साहेब ठाकरे ने खुले तौर पर दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तारीफ की थी तथा एमरजैंसी का समर्थन किया था। पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री बसंत राव नाइक तथा कांग्रेस के राज्याध्यक्ष बसंत दादा पाटिल के साथ गुप्त रिश्ते थे। तब पार्टी को बसंत सेना के नाम से भी पुकारा जाता रहा है। शिवसेना ने राष्ट्रपति के पद के लिए नामांकित हुई प्रतिभा देवी पाटिल को 2007 में तथा प्रणव मुखर्जी को 2012 में समर्थन दिया। जमीनी स्तर पर भी शिवसेना कार्यकत्र्ता यही कहते हैं कि उद्धव के निर्णयों में उनका पूरा भरोसा है। पार्टी कार्यकत्र्ताओं का कहना है कि शिवसेना के भाजपा से अलगाव के बाद ‘मराठी मानुष’ की विचारधारा को बल मिलेगा।

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