‘उलझनों’ में नजर आता शिरोमणि अकाली दल

punjabkesari.in Friday, Jan 31, 2020 - 04:37 AM (IST)

कुछ समय से अकाली दल कई उलझनों में नजर आ रहा है। भारत में कांग्रेस पार्टी के बाद सबसे लंबी उम्र का अकाली दल ही है। अगले वर्ष यह अपना 100वां जन्मदिन मनाएगा। इस दल का इतिहास बहुत ही शानदार है। आजादी की जंग में पूरा हिस्सा लिया। कुर्बानियों में अपना योगदान दिया। बाबा खड़क सिंह जो प्रधान थे, ने लंबी जेल काटी व मुसीबत सही थी। दल के प्रधान बाबू लाभ सिंह ने शहीदी प्राप्त की। भारत में पहला चुनाव 1936 में हुआ था। उस समय अकाली लाहौर असैम्बली में जीतकर पहुंचे थे। फिर अकाली मंत्री भी बने थे तथा अकाली नेता स. बलदेव सिंह भारत के प्रथम रक्षा मंत्री बने थे। भारत के लिए सबसे बड़ी सेवा अकाली दल की 1947 में थी जब मास्टर तारा सिंह ने पंजाब का विभाजन करवाकर आधा पंजाब भारत को लेकर दिया था। उस समय के अकाली नेताओं का सम्मान पूरा देश करता था। ऐसे नेता थे ज्ञानी करतार सिंह, ऊधम सिंह नागोके, स. बलदेव सिंह, स्वर्ण सिंह, उज्जल सिंह, बावा हरकिशन सिंह तथा अजीत सिंह सरहदी इत्यादि। 

आजादी मिलने के उपरांत अकाली दल को एक लंबी लड़ाई लडऩी पड़ी। हजारों की तादाद में लोग जेल गए। पहले दलित सिखों को उनके हक दिलवाए, फिर पंजाबी सूबा 1966 में बनवा लिया। इसी कारण अकाली दल को कई बार शासन करने का मौका भी मिला। 1966 में नया पंजाब बन गया और हरियाणा तथा हिमाचल अलग-अलग राज्य बन गए। कई अकाली मुख्यमंत्री जैसे जज गुरनाम सिंह, लक्ष्मण सिंह गिल, स. प्रकाश सिंह बादल, स. सुरजीत सिंह बरनाला बने हैं। 

आज कई संकटों को झेल रहा है शिअद
आज अकाली दल कई संकट झेल रहा है। विधानसभा में इतने कम एम.एल.ए. पहली बार आए। संसद में भी मात्र 2 ही सीटें जीतीं। फिर बड़े नेता एकजुट होकर हाईकमान के खिलाफ खड़े हो गए। अकाली दल की एक कमजोरी है या फिर कहें कि इनकी अनदेखी है कि यह कभी भी अपना पोस्टमार्टम नहीं करता। इतनी बड़ी-बड़ी घटनाएं हुईं जिससे पंजाब बर्बाद हो गया। चुनाव कैसे हारे? इस बारे कोई चर्चा नहीं करता। 

अकाली नेताओं ने एक नई नीति बना ली कि पंजाब से बाहर दूसरे राज्यों में चुनाव लड़े जाएं। पहले उत्तर प्रदेश में रैलियां आरंभ कर दीं, वहां पर अपने नेता भेजे गए। घोषणा की कि इतनी सीटों पर लड़ेंगे और भाजपा संग मिलकर लड़ेंगे। भाजपा से सीटें ली जाएंगी। सिख नेता इसी उम्मीद में रहे तथा किसी अन्य पार्टी की तरफ नहीं झांका। आखिर भाजपा ने न कर दी। ये खाली हाथ वापस आ गए। इसके बाद अकाली राजस्थान पहुंच गए। वहां पर भी वही हुआ जैसा कि उत्तर प्रदेश में हुआ था। राजस्थान में कांग्रेस के टिकट पर हमेशा 2-3 सिख होते थे। भाजपा ने भी सिख मंत्री बनाए पर कभी भी अकाली नहीं बने। 

अब दिल्ली में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। पिछली दो बार अकाली दल को 4 सीटों पर हिस्सा मिलता रहा है पर भाजपा अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ती थी। इस बार भाजपा ने कोई भी सीट अकाली दल को नहीं दी पर अपनी टिकट पर 4 सिख खड़े किए थे। अकाली दल ने घोषणा कर रखी है कि वह चुनाव नहीं लड़ेगा क्योंकि अपने बल पर सीट जीतना बेहद मुश्किल है।

आखिर क्यों पंजाब से बाहर अपना राजनीतिक प्रभुत्व पाने की कोशिश की जाती है
उपरोक्त हालातों को मुख्य रखते हुए अकाली दल को सोचने की जरूरत है कि आखिर क्यों पंजाब से बाहर अपना राजनीतिक प्रभुत्व पाने की कोशिश करता है। अपने बल पर कोई एक सीट भी अकाली वोट बैंक न होने के कारण जीत नहीं सकता। ऐसे में सिखों को क्यों गलत उम्मीद पर बिठा देता है? वे कहीं और नहीं जाते जब आप उनको उम्मीद बंधा देते हो। आपकी इस कार्रवाई से उनका नुक्सान हुआ है। इससे आपकी राजनीतिक छवि भी धुंधली हुई है। मास्टर तारा सिंह ने हमेशा पंजाब से बाहर सिखों को आजादी दिलाई थी। दिल्ली में सबसे ज्यादा सिख पाकिस्तान से आकर बस गए थे मगर कभी भी अकाली खड़ा नहीं किया। दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री गुरमुख निहाल सिंह कांग्रेस का ही था। बावा बचित्र सिंह मेयर बना था। स. अमर सिंह सहगल मध्य भारत से कांग्रेस का सांसद बनकर आया था। हर राज्य में सिख एम.एल.ए. किसी न किसी पार्टी से जीतकर आते थे। यू.पी., भोपाल,  राजस्थान व बंगाल में सिख मंत्री थे। महाराष्ट्र में तारा सिंह 3 बार एम.एल.ए. रहे। 

सिख भारत में अपना मान-सम्मान प्राप्त करे 
हमारा उद्देश्य यह हो कि सिख भारत में अपना मान-सम्मान प्राप्त करे। उसे राजनीतिक सम्मान मिले। उसे हर पार्टी आगे लेकर आए। अकाली दल इसको खुशी का निमंत्रण समझे। मैं ऐसा महसूस करता हूं कि दिल्ली में चुनाव चिन्ह की जिद्द ने बात बिगाड़ी है। पार्टी के 2 नेता मनजिंद्र सिंह सिरसा तथा हरमीत सिंह कालका जीतकर सिखों की सेवा करते हैं। उन्होंने पहले भी हर तरह से अपना वर्चस्व कायम रखा है। फिर ऐसे में चुनाव चिन्ह से क्या फर्क पड़ता है? इससे भावना नहीं बदलती। गठजोड़ में यह तल्खी महंगी पड़ेगी। 

शिरोमणि अकाली दल को पंजाब में खुद को मजबूत करना चाहिए। उसे इस संकट को हल करना चाहिए। मैं तो यह समझता हूं कि प्रकाश सिंह बादल इस नजाकत को समझें और अपना जोर एक बार फिर इस कार्य हेतु लगाएं। उन्होंने तो बड़े से बड़े मसले हल किए हैं। क्षेत्रीय पार्टियां हर राज्य में शक्ति के साथ आगे की ओर अग्रसर हैं। पंजाब को शिअद की सख्त जरूरत है। इसके द्वारा की गई सेवा को कोई भुला नहीं सकता। इसकी 100वीं वर्षगांठ को सही रूप में मनाने के लिए प्रकाश सिंह बादल प्रयास करें।-तरलोचन सिंह (पूर्व सांसद)
 


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