क्या हम ‘जी.एस.टी.’ के लिए एक शोक गीत लिखेंगे

Sunday, Jun 20, 2021 - 05:51 AM (IST)

जी.एस.टी. एक अनोखा जानवर नहीं है। संघीय और एकात्मक राष्ट्र-राज्यों में यह एक बल की तरह है। यहां पर अलग-अलग रूप हैं। मगर उनका मूल सिद्धांत एक ही है। यहां पर कर के ऊपर कर नहीं होना चाहिए।

उत्पाद शुल्क तथा सेवा कर के प्रभाव को कम करने के लिए मॉडवेट तथा उसके बाद सैंट्रल वैट शुरू किया गया था। इसने बहुत अच्छी तरह से कार्य किया था। राज्यों को एक प्रयास के माध्यम से आगे बढ़ाया गया ताकि वह वैल्यू एडिड टैक्स (वैट) को अपना सके। इसको सेवा  कर के स्थान पर बदला गया। सैनवैट केंद्र सरकार द्वारा और राज्य सरकारों का वैट अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से संचालित थे। 

हालांकि अंतर्राज्यीय बिक्री तथा अंतर्राज्यीय सेवाओं में यहां पर कुछ अनसुलझे मुद्दे थे। यहां पर ऐसे भी मुद्दे थे जब आपूॢत की चेन में एक ‘सेवा’ एक हालत पर प्रस्तुत की गई तथा एक ‘बिक्री’ एक अन्य हालत पर की गई। इसका जवाब जी.एस.टी. था जो सभी बिक्रियों तथा सेवाओं पर लागू होना था। 

एक कार्य जो पूरा हुआ
एक ही मंच पर केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों को साथ लाना एक कठिन कार्य था। इन मुद्दों में कुछ ऐसे थे जिन्हें समझा जाना था :
-स प्रभुता की पहचान करों को लगाने की शक्ति थी।
-भारतीय संविधान अपनी प्रकृति में संघीय था तथा टैक्स लगाने की शक्ति तथा राज्यों के बीच बांटी गई थी।
-राज्यों को अपनी विशेष करों की शक्ति को छोडऩा अपेक्षित था।  जैसे वस्तुओं की बिक्री जो राजस्व का उनका मु य स्रोत था।
-बड़े राज्यों तथा छोटे राज्यों के मध्य फर्क असंगत था।
-राज्यों को राजस्व के खो जाने का डर था जिसे मुआवजे के आश्वासन तथा लागू करने योग्य तंत्र के माध्यम से दूर हटाया जाना था।
-बांटी गई स प्रभुता को आपसी विश्वास तथा स मान के ऊपर आधारित होना था।
-वोटिंग पर एक नियम जबकि जरूरी था तो ज्यादा महत्वपूर्ण अलिखित नियम यह होने थे कि सभी निर्णय सहमति के आधार पर लिए जाएं और इन्हें पार्टी की रेखाओं के आधार पर न लिया जाए। 

यशवंत सिन्हा, दिवंगत प्रणब मुखर्जी तथा मैंने उपरोक्त सिद्धांतों की पालना का प्रयास किया। ऐसा ही दिवंगत अरुण जेतली ने किया। हालांकि जेतली शुरूआती टैक्स दरों पर फिसल गए। जब तक अरुण जेतली मौजूद रहे जी.एस.टी. के लिए तैयार की गई वित्त मंत्रियों के ग्रुप की बैठक तथा जी.एस.टी. कौंसिल की बैठकें उचित ढंग तथा अविवादित रूप से चलती रहीं और जी.एस.टी. प्रक्रिया को रुक-रुक कर आगे बढ़ाया गया।  मगर फिर भी इसे आगे नहीं खिसकाया गया। 

टूट-फूट
इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का प्रवेश हुआ। कौंसिल की प्रत्येक निरंतर बैठक में और ज्यादा झगड़े, विवाद तथा अब लगभग आपसी विश्वास और स मान पूरी तरह से टूट गया। संवैधानिक प्रावधान स्पष्ट है। अंतर्राज्यीय व्यापार और वाणिज्य के मामले को छोड़ कर आॢटकल 246-ए संसद तथा राज्य विधायिका को जी.एस.टी. लगाने की शक्ति प्रदान करता है। अंतर्राज्यीय लेन-देन पर आर्टिकल 269-ए प्रतिज्ञा करता है कि जी.एस.टी. भारत सरकार द्वारा लगाया जाएगा और ऐसे कर केंद्र तथा राज्य सरकारों के मध्य गुड्स एंड सॢवस टैक्स कौंसिल की सिफारिशों पर विभाजित किए जाएंगे। आर्टिकल 279-ए जी.एस.टी. कौंसिल के गठन के द्वारा एक चक्कर को पूरा करता है। यह केंद्रीय वित्त मंत्री को बतौर चेयरपर्सन नियुक्त करता है और एक वाइस चेयरपर्सन के चुनाव को अपेक्षित करता है। 

करों, उपकरों तथा अधिशेष जोकि लगाने हैं, इन सबके साथ जी.एस.टी. से संबंधित प्रत्येक मामले पर कौंसिल को सिफारिशें करने के लिए बाध्य करता है। ऐसा माना गया कि केंद्र राज्यों पर हुकूमत नहीं जताएगा। जी.एस.टी. कौंसिल का प्रत्येक महत्वपूर्ण पहलू टूट चुका है। कोई भी वाइस चेयरपर्सन 2016 में इसके आरंभ से चुना नहीं गया है। अक्तूबर 2020 से लेकर अप्रैल 2021 के मध्य 6 माह के लिए जी.एस.टी. कौंसिल की बैठक नहीं हो पाई है। अधिकारियों की एक जी.एस.टी. लागू करने वाली कमेटी जिसकी सिफारिशों को केंद्र सरकार द्वारा नियमों में बदल दिया जाता है, के गठन को छिपकर दर-किनार कर दिया गया। 

जी.एस.टी. को हथियार बनाना
जी.एस.टी. कौंसिल की 43वीं बैठक से पहले पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने उपरोक्त मुद्दों को उठाया तथा 2 महत्वपूर्ण मुद्दों पर जोर दिया। इनमें से एक कोविड के उपचार तथा प्रबंधन के लिए सहायता हेतु जी.एस.टी. दरों को कम करना तथा दूसरा जी.एस.टी. लागू करने वाली कमेटी के शिष्टमंडल का दायरा बढ़ाना है। बैठक के बाद केंद्रीय वित्त मंत्री ने कोविड से संबंधित जी.एस.टी. दरों की समीक्षा हेतु 8 मंत्रियों की कमेटी का गठन किया। वित्त मंत्री ने 3 कांग्रेस शासित प्रदेशों तथा अन्य राज्यों को बाहर रखा जिन्होंने दरों को कम करने का बलपूर्वक तर्क दिया था। 

सीतारमण को पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री डा. अमित मित्रा द्वारा 4 जून 2021 को लिखे गए पत्र के अनुसार राज्यों का जी.एस.टी. मुआवजा जनवरी 2021 से 63000 करोड़ रुपए था। पंजाब, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ ने अपने भुगतान का दावा किया। यह 1 जून तक 8393 करोड़, 4635 करोड़ तथा 3069 करोड़ क्रमश: बकाया था। 15 जून को एक टी.वी. साक्षात्कार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साक्षात्कार लेने वालों का गुस्से से खंडन करते हुए कहा कि,‘‘कौन-सा बकाया? मैंने तो सभी राज्यों को जी.एस.टी. बकाया पूरा कर दिया है।’’ मोदी सरकार ने राज्यों को धमकाने के लिए जी.एस.टी. को हथियार के रूप में प्रयुक्त किया है। जी.एस.टी. कौंसिल को एक बात करने वाली दुकान तक सीमित कर दिया गया है। 

जी.एस.टी. लागू करने वाली कमेटी तथा केंद्र सरकार द्वारा प्रभावी वैधानिक शक्ति हड़प ली गई है। मुआवजों को या तो रोक लिया गया है या उनमें देरी कर दी गई है। राज्य सरकारें अनुदान के लिए केंद्र सरकार से भीख मांग रही हैं। मोदी सरकार जी.एस.टी. के लिए एक शोक गीत लिखने का मार्ग प्रशस्त कर रही है।-पी.चिदंबरम

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