शालिग्राम शिला तराशी नहीं जाती

punjabkesari.in Monday, Feb 06, 2023 - 03:36 AM (IST)

अगर आस्था और श्रद्धा के बिना सत्ता पाने के उद्देश्य से व वोट बटोरने के लिए धर्म में राजनीति का प्रवेश हो तो यह कितना घातक हो सकता है इसके उदाहरण पिछले कुछ वर्षों से निरंतर देखने को मिल रहे हैं। जिससे संत और भक्त समाज बहुत व्यथित हैं। पर सत्ता के अहंकार में सत्ताधीश किसी की भावना और आस्था की कोई परवाह नहीं करते। फिर वो चाहे किसी भी धर्म के झंडाबरदार होने का दावा क्यों न करें। ताजा विवाद अयोध्या के श्री राम मंदिर के लिए प्रभु श्री राम और सीता माता की मूर्ति निर्माण के लिए नेपाल से लाई गईं विशाल शिलाओं के कारण पैदा हुआ है। वैदिक शास्त्रों को न मानने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भाजपा का नेतृत्व हिंदू भावनाओं का नकदीकरण करने के लिए अपने मनोधर्म से नई-नई नौटंकियां करते रहते हैं। 

जिन शिलाओं को इतने ताम-झाम, ढोल-ताशे और मीडिया प्रचार के साथ नेपाल से अयोध्या लाया गया है उन शिलाओं को शालिग्राम बता कर उनका सारे रास्ते पूजन करवाया गया। पर अयोध्या पहुंचने पर अयोध्या का संत समाज इसके विरुद्ध खड़ा हो गया है। संत आहत हैं और आक्रोशित हैं। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार शालिग्राम की शिला साक्षात विष्णु जी का स्वरूप मानी गई है। देवी भागवत पुराण, शिव पुराण व ब्रह्यवैवर्त आदि पुराणों में शालिग्राम शिला की विधिवत सेवा व पूजा का विवरण आता है। इसलिए शालिग्राम शिला पर कभी भी छैनी-हथौड़ी नहीं चलाई जा सकती। यह घोर अपराध है। इसलिए अयोध्या के संतों ने घोषणा कर दी है कि वे इन शिलाओं पर छैनी-हथौड़ी नहीं चलने देंगे। 

दूसरी ओर एक विवाद यह है कि ये शिलाएं शालिग्राम की हैं ही नहीं। क्योंकि शालिग्राम की शिलाओं का आकार प्राय: काफी छोटा होता है। जिन्हें हथेली पर धारण किया जा सकता है। वैसे बड़ी शिलाएं भी होती हैं। इन शिलाओं पर भगवान विष्णु से संबंधित अनेक चिन्ह अंकित होते हैं। जैसे शंख, चक्र, गदा व पद्म आदि। इसके अलावा इन शिलाओं के रूप, रंग और आकार-प्रकार के अनुरूप इनके विविध नाम भी होते हैं। जैसे दशावतार के नामों पर आधारित दस तरह की शालिग्राम शिलाएं नेपाल की काली गंडकी नदी के तल में पाई जाती हैं। 

इसके अलावा इन शिलाओं के अन्य नाम व प्रकार भी होते हैं जैसे : केशव, हैयग्रीव, हिरण्यगर्भ, चतुर्भुज, गदाधर, नारायण, लक्ष्मीनारायण, रूपनारायण, माधव, गोविंद, विष्णु, मधुसूदन, त्रिविक्रम, श्रीधर, पद्मनाभ, दामोदर, सुदर्शन व वासुदेव आदि। अब जिन विशाल शिलाओं को शालिग्राम बता कर नेपाल से अयोध्या लाया गया है वे शास्त्रों के अनुसार किस श्रेणी के अंतर्गत आती हैं यह बताने का दायित्व भी श्रीराम मंदिर निर्माण समिति के सदस्यों का है। 

अगर ये शिलाएं शालिग्राम की नहीं हैं केवल गंडकी नदी के किनारे उपलब्ध पत्थर मात्र ही हैं तो इन्हें शालिग्राम बता कर हिंदुओं को क्यों मूर्ख बनाया जा रहा है? अगर ये शालिग्राम हैं तो फिर इन्हें तराश कर मूर्ति बनाना घोर पाप कर्म होगा। गोवर्धन की तलहटी में पौराणिक संकर्षण कुंड पर संकर्षण भगवान के 34 फुट ऊंचे काले ग्रेनाइट के विशाल विग्रह के निर्माण का निर्णय 2016 में जब द ब्रज फाऊंडेशन ने लिया तो उसके वरिष्ठ अधिकारी आंध्र प्रदेश में स्थित तिरूपति देवस्थान गए। वहां शास्त्रानुसार प्रशिक्षित 22 योग्य शिल्प-शास्त्रियों के नेतृत्व में तिरुमाला की पहाडिय़ों पर विष्णुतत्व की 50 टन की एक विशाल शिला को खोज कर बड़ी-बड़ी क्रेनों की मदद से उसे पहाड़ों से नीचे लाए। वहां तिरुपति में उन योग्य शिल्प शास्त्रियों ने संकर्षण भगवान या बलराम जी के दिव्य विग्रह का एक वर्ष तक निर्माण किया। जिन्हें फिर ट्रेलर पर लाद कर तिरुपति से गोवर्धन (मथुरा) लाया गया। 

यहां ये उल्लेख इसलिए आवश्यक है क्योंकि तिरुमाला की पहाड़ियों पर लक्ष्मी तत्व और विष्णु तत्व की विशाल शिलाएं पाई जाती हैं। उन्हीं को तराश कर लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम या राधा-कृष्ण के विग्रहों का निर्माण किया जाता है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्यों को शायद इस तथ्य की जानकारी नहीं थी। अगर होती तो नाहक यह विवाद न खड़ा होता। क्योंकि तब सही शिलाएं तिरुपति से आ जातीं। 

वृंदावन के 500 वर्ष पुराने सुप्रसिद्ध श्री राधारमण मंदिर में भगवान राधा-रमण जी का जो छोटा-सा सुंदर विग्रह है वो श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य गोपाल भट्ट गोस्वामी जी की अॢचत शालिग्राम शिला से स्वप्रकट विग्रह है। उसे छैनी-हथौड़ी से तराशा नहीं गया है। मंदिर के सेवायत गोस्वामीगण बताते हैं कि शालिग्राम जी की शिला पर अगर छैनी-हथौड़ी चले तो वह फौरन टूट कर बिखर जाती है। अगर यह बात सही है तो फिर नेपाल से आई उन विशाल शिलाओं पर जब छैनी-हथौड़ी चलेगी तो वे टूट कर बिखर जाएंगी। 

संघ और भाजपा ने धर्म का ऐसा राजनीतिकरण किया है कि न तो उन्हें प्राण प्रतिष्ठित देव विग्रहों पर अयोध्या और काशी में बुल्डोजर चलाने में कोई संकोच होता है और न ही गोवर्धन (मथुरा) संकर्षण भगवान के प्राण प्रतिष्ठित विग्रह को पांच वर्षों से मल-मूत्र से घिरे जलाशय में उपेक्षित खड़ा रखने में। फिर भी दावा यह कि ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं’।-विनीत नारायण
 


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