आम किन्नर से विधायक बनीं शबनम मौसी
punjabkesari.in Sunday, Nov 05, 2023 - 05:51 AM (IST)

भारत की राजनीति में ऐसे भी किरदार हैं जो धार्मिक ग्रंथों और किंवदंतियों से हू-ब-हू मेल खाते हैं। मध्य प्रदेश के शहडोल जिले से ऐसा ही एक नाम एकाएक उभरा और जिसने न केवल इतिहास में खुद को दर्ज किया बल्कि राजनीति में वह खलबली मचाई कि क्या भाजपा क्या कांग्रेस सबके सामने बड़ी चुनौती बन गईं। 1998 के विधानसभा चुनाव में सोहागपुर से जीते दिग्गज कांग्रेसी व गुजरात के पूर्व राज्यपाल कृष्णपाल सिंह का सितंबर 1999 में आकस्मिक निधन हो गया। फरवरी 2000 में उप-चुनाव हुए। तब किसी ने नहीं सोचा था कि मध्य प्रदेश की राजनीति में पहले से अहम सोहागपुर सीट पूरे देश-दुनिया में एकाएक सुर्खियों में छा जाएगी।
दरअसल उपचुनाव में तब अविभाजित शहडोल के अनूपपुर (अब जिला) में रहने वाली किन्नर शबनम मौसी ने सोहागपुर से चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया। पहले तो राजनीतिक पाॢटयों ने बहुत हल्के से लिया लेकिन जिस तरह से उनके दौरों और जनसमर्थन से हफ्ते भर में तूफान मचा तो कहीं शक की गुंजाइश ही नहीं बची कि शबनम ही विधायक होंगी बल्कि भारत की पहली किन्नर विधायक बनेंगी। 25 फरवरी 2000 को जब मतपेटियां खुलीं तो पहले राऊंड से ही शबनम ने भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों पर दोगुने से ज्यादा की बढ़त बना ली। करीबी भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह को 17 हजार से अधिक मत से हराया जबकि कांग्रेस को तीसरे स्थान की ठौर मिली। बाकी बचे 6 प्रत्याशी जमानत नहीं बचा सके।
इस तरह भारत के इतिहास में पहले किन्नर विधायक के रूप में शबनम पर लोगों ने वो प्यार लुटाया कि वह सबकी मौसी बन गईं। उन्हें 39 हजार से अधिक मत मिले जो मतों का 40 प्रतिशत से ज्यादा था। एक मजेदार तथ्य यह भी कि 1994 में ही ट्रांसजैंडरों को मताधिकार का अधिकार मिला और इसके 6 साल के भीतर ही इतिहास में पहली किन्नर विधायक शबनम मौसी बन गईं। देश की राजनीति में शहडोल जिले के सोहागपुर से दर्ज यह अमिट रिकॉर्ड राजनीतिज्ञों के लिए नसीहत से कम नहीं है। मैंने पहली बार देखा जो दोबारा अब तक नहीं दिखा कि वह लोगों से वोट नहीं मांगतीं बल्कि दुआएं देतीं और बदले में लोग पास में जो भी छोटी-मोटी रकम होती उन्हें प्रेम से खुशी-खुशी से देते थे। इसे देख उस समय की सारी की सारी पार्टियों और दूसरे प्रत्याशियों की सांसें अटक जातीं। उनकी जीत को लेकर संशय तो था ही नहीं। नतीजा भी वही आया।
मुंबई में ब्राह्मण परिवार में जन्मी शबनम के पिता आई.पी.एस. अधिकारी थे। विडंबना देखिए प्रतिष्ठा की खातिर किसी किन्नर को उन्हें दे दिया गया। बाद में आदिवासियों ने पाला। वह आज भी और बार-बार कहती हैं कि अगले जन्म में वही आदिवासी माता-पिता बनें। वह अनूपपुर कैसे आईं यह भी रहस्य जैसा है। पूछने पर बताती हैं कि मैं अपने माता-पिता के बारे में कुछ नहीं जानती, जब उन्होंने मुझे प्यार ही नहीं दिया तो हम उनके बारे में क्या सोचें और क्या जानें! उनके जीतने के बाद ट्रांसजैंडर समाज ने इसको बाखूबी समझा और देश में कई जगह तब से इन्हें सम्मान के साथ जनप्रतिनिधि और दूसरे ओहदों में बिठाया जाने लगा। थोड़े ही अंतराल के बाद मध्य प्रदेश के कटनी से कमला जान और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से आशा देवी मेयर पद के लिए चुनी गईं।
उनका विधानसभा का छोटा-सा कार्यकाल अंदाजे जुदा रहा। राष्ट्रीय स्तर पर कई सामाजिक काम भी किए तो संयुक्त राष्ट्र संघ के एड्स विरोधी अभियान के विज्ञापन में वह अकेली भारतीय रहीं जिन्हें मॉडल बनाया गया। उन पर फिल्म ‘शबनम मौसी’ भी बनी जिसमें आशुतोष राणा ने उनका किरदार निभाया। इसका एक डायलॉग आज भी खूब कहा-सुना जाता है कि ‘‘जब लोगों ने आपको जिताया तब तो अच्छे-खासे मर्द थे, लेकिन विधानसभा जाकर कैसे हिजड़ा बन गए। मैं विधानसभा पहुंचकर भी वही रहूंगी, जो हूं.....हिजड़ा। उन्होंने कई फिल्मों में दिग्गजों संग काम भी किया। 2008 के विधानसभा चुनाव में राजद की टिकट पर कोतमा (अनूपपुर) से चुनाव लड़ा और केवल 650 मतों पर सिमट गई। बाद में लालू यादव पर वादा खिलाफी, असहयोग का आरोप लगाते हुए उन्हें कथित श्राप भी दिया जो खूब चर्चाओं में रहा।
14 भाषाओं को जानने वाली शबनम आज खामोशी से अनूपपुर में रह रही हैं। लेकिन राजनीतिक इच्छाएं बलवती हैं। भारतीय राजनीति में कभी शोध का विषय बनीं शबनम असल में भ्रष्टाचार विरोधियों, सकारात्मक उम्मीदों, नए प्रयोगों की जीत थी। 2003 में मध्य प्रदेश विधानसभा में 108 किन्नरों के साथ शबनम दोबारा मैदान में थीं। ऐसा लगने लगा कि वह भारतीय लोक कथा का सच होता वह मिथ तो नहीं जिसमें कहा गया कि इस युग की समाप्ति पर वो समय आएगा, जब किन्नर शासन संभालेंगे? लेकिन यह अंतत: मिथक ही साबित हुआ। शबनम सहित सभी किन्नर हार गए। जिस शबनम ने जीत का रिकॉर्ड बनाया वही अपने महज 3 वर्ष के कार्यकाल में कई तरह के विवादों में घिरती रहीं।-ऋतुपर्ण दवे