यौन अपराध पीड़ित लड़के-लड़कियों के बीच लैंगिक भेदभाव

Thursday, Jul 26, 2018 - 04:18 AM (IST)

कानून मंत्रालय ने पोक्सो में लड़कों के खिलाफ होने वाली यौन हिंसा के संशोधन को पास किया है। अब इसे कैबिनेट को भेजा जाएगा। इसे महिला बाल विकास मंत्रालय ने भेजा था। महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी बहुत दिनों से पोक्सो के अंतर्गत होने वाले लैंगिक भेदभाव के खिलाफ  आवाज उठा रही थीं। उनका कहना था कि किसी भी बच्चे के प्रति अपराध हुआ हो, चाहे वह लड़का हो या लड़की, उसे कानून के जरिए न्याय पाने का पूरा अधिकार है। 

उन्होंने राज्य सरकारों को भी इस बारे में लिखा था कि लड़कों के खिलाफ  होने वाली यौन हिंसा को भी रोका जाना चाहिए और इस तरह के अपराधों के खिलाफ लड़कों को भी लड़कियों की तरह न्याय मिलना चाहिए। छोटे लड़कों के प्रति इस तरह के अपराध करने वालों के लिए भी पोक्सो के अंतर्गत फांसी का प्रावधान होना चाहिए जैसा कि अब 12 साल तक की लड़कियों के प्रति अपराध होने पर है। 

महिला बाल विकास मंत्रालय का मानना है कि अपराध किसी भी बच्चे के प्रति हो, सजा लैंगिक भेदभाव से परे होकर एक जैसी होनी चाहिए। अब तक पोक्सो सिर्फ लड़कियों के प्रति होने वाले अपराधों की बात करता है। लड़के इसके अंतर्गत नहीं आते जबकि 2007 में केंद्र सरकार ने एक सर्वेक्षण किया था जिसमें पाया था कि भारत में 53.2 प्रतिशत बच्चे और बच्चियां यौन हिंसा के शिकार हैं। इनमें लड़के 52.9 प्रतिशत हैं लेकिन उन्हें न्याय देने के लिए कोई कानून आगे नहीं आता। विशेषज्ञों का कहना है कि पोक्सो के अंतर्गत ट्रांसजैंडर बच्चों को भी शामिल किया जाना चाहिए। 

फिल्म निर्माता इन्सिया दारीवाला ने एक पटीशन डाला था जिसमें उन्होंने कहा था कि लड़कों के प्रति होने वाले यौन अपराध भारत में एक इग्नोर्ड रियलिटी है यानी कि इन्हें हमेशा नजरअंदाज किया जाता है। महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने इस पटीशन का समर्थन किया था। उनका मानना है कि अपराध किसी के भी प्रति हो, सजा एक जैसी होनी चाहिए। कानून सभी को न्याय देने वाला होना चाहिए। महिला बाल विकास मंत्रालय ने इसीलिए पोक्सो में किए गए संशोधनों को कानून मंत्रालय के पास भेजा था, जिसने इन संशोधनों पर मोहर लगा दी। 

दरअसल सभी बच्चों को न्याय देने में यह एक सकारात्मक कदम है। यह कैसे मान लिया गया कि इस देश में अपराध सिर्फ  लड़कियों के खिलाफ ही होते हैं। जैसा कि 2007 के केंद्र सरकार के सर्वे से भी स्पष्ट है, अपराध छोटे लड़कों के खिलाफ भी बड़ी संख्या में होते हैं, मगर उन्हें न्याय नहीं मिलता। वे  कहां शिकायत करें, किसके पास जाएं, उनके माता-पिता की कौन मदद करे, ये बातें अर्से से बहस का विषय रही हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि किसी भी कानून को लैंगिक भेदभाव से परे होना चाहिए। जब कानून की नजर में सब बराबर हैं तो उसमें बच्चियों के लिए अलग कानून, बच्चों के लिए अलग कानून, ऐसा क्यों। इस तरह का कानूनी भेदभाव अक्सर हम अपने देश में होते देखते हैं। 

महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर जो कानून अपने देश में हैं वे इतने आतताई हैं कि वे दूसरे पक्ष की बात सुनते ही नहीं। किसी पर उंगली उठते ही, किसी का नाम लगते ही, बिना किसी जांच और प्रमाण के  फौरन उसे अपराधी साबित कर दिया जाता है। आखिर यह न्याय की कैसी परिभाषा है, जिसमें एक पक्ष जो आरोप लगा रहा है उसे हमेशा सही और जिस पर आरोप लग रहा है, उसे हमेशा कानून के द्वारा गलत ही माना जाए। कानून लैंगिक भेदभाव से परे यानी कि जैंडर न्यूट्रल हों, इसमें सबका भला है। इससे सभी को न्याय मिलने की आशा भी बलवती होती है। 

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और मेनका गांधी, साथ में कानून मंत्रालय भी बधाई का पात्र है कि उन्होंने कम से कम कानून में लैंगिक भेदभाव खत्म करने की पहल तो की। उम्मीद है कि अन्य कानून, जोकि पुरुष को बिना किसी प्रमाण के अपराधी मान लेते हैं, उनमें भी बदलाव करने पर विचार होगा क्योंकि अक्सर ऐसे मामलों में मीडिया हल्ला मचाकर, बार-बार तस्वीरें दिखाकर लोगों में यह भावना बना देता है कि जिसका नाम लगा, जो आरोपी है, वही अपराधी है। पोक्सो में बदलाव की पहल दूर तलक जाएगी। इससे पहले अटार्नी जनरल ने अदालत में यह भी बताया था कि एक लाख केस पोक्सो के अंतर्गत दर्ज हैं, मगर सिर्फ  ग्यारह हजार का निपटारा हुआ है। 

अप्रैल में कठुआ और उन्नाव के साथ-साथ अन्य जगहों पर बच्चियों के प्रति होने वाले अपराधों को काफी सुर्खियां मिली थीं। इसीलिए सरकार ने पोक्सो में संशोधन करके 12 साल तक की बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वालों के लिए फांसी का प्रावधान किया था। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इसी संशोधन को देखते हुए पोक्सो में बदलाव की मांग करते हुए लड़कों के लिए भी बराबरी और न्याय की मांग की थी।-क्षमा शर्मा

Pardeep

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