‘कृषि कानूनों’ को लेकर मोदी के पीछे हटने के ‘सात कारण’

Sunday, Jan 24, 2021 - 05:20 AM (IST)

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के लिए कृषि सुधार एक उच्च बिन्दू हो सकते हैं। मगर संयम की कमी, सूझबूझ और इतिहास का तिरस्कार एक तबाही में बदल चुके हैं। कृषि कानूनों पर मोदी सरकार की भविष्यवाणी का विवरण आप चुन सकते हैं। यदि यह प्रत्यक्ष हार अथवा आत्म समर्पण नहीं तो यह सरकार के लिए नाकामयाबी है। हमारे विचार में यहां 7 मुख्य कारण हैं कि मोदी-शाह की भाजपा किसानों को समझाने में विफल रही है। 

*वे स्वीकार नहीं कर सकते हैं कि उत्तर में एक गैर-मुस्लिम राज्य है जहां पर नरेन्द्र मोदी जनता की राय के बारे में वैसा ही प्रभाव नहीं रखते जितना कि हिन्दी क्षेत्र में रखते हैं।
*क्योंकि वे इसे स्वीकार नहीं करते हैं कि उन्होंने कभी एक स्थानीय सहयोगी की आवश्यकता नहीं समझी। इसलिए उन्होंने अकालियों को इतनी नफरत से फैंक दिया। पंजाब के सिख असम के हिन्दुओं की तरह नहीं हैं जो मोदी के लिए वोट देंगे। यहां तक कि उनकी पूर्व प्रख्यात क्षेत्रीय पार्टी को हाशिए पर कर देंगे और उनके नेताओं को चुरा लेंगे।
*एक राष्ट्रीय हित में हम इससे पहले भी कह चुके हैं कि वे सिखों को समझते ही नहीं। वे उन्हें हिन्दुओं की तरह अनिवार्य समझते हैं जो संयमपूर्वक भिन्न है। लेकिन सूक्ष्मता को समझना मोदी-शाह भाजपा के मजबूत बिन्दू नहीं है। 

*उन्होंने भगत सिंह से पहले 20वीं शताब्दी की शुरूआत में पंजाब के किसानों के बीच गहरे वाम प्रभाव की सराहना नहीं की। सिख धर्म में सामुदायिक जुटाव की एक अनूठी परम्परा है। उसमें संगठनात्मक कौशल और वामपंथियों के राजनीतिक जानकारों को भी जोड़ें। यही कारण है कि नरेन्द्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल ने एक के बाद एक सत्र का सामना किया है।
*यही वजह है कि मोदी सरकार ने सुधारों के विचारों को जल्द बाजार में लाने की जहमत नहीं उठाई। आप हरित क्रांति के अधिशेष उत्पादक किसानों को यह नहीं बताते हैं कि जिस शासन के तहत दो पीढिय़ां समृद्ध हुई हैं, वह टूट गया है और उन्हें ठीक करने के लिए तीन कानून बनाए गए हैं। 

*आप सिखों के खिलाफ बल का उपयोग नहीं कर सकते। इसे अधिक अशिष्टता से कहने के लिए आप उनके साथ मुसलमानों की तरह व्यवहार नहीं कर सकते और न ही आप उनकी देशभक्ति पर सवाल उठा सकते हैं। पहले आप करो तो पूरा देश आपका विरोध करेगा। यदि आप दूसरी बात करोगे तो सिख आप पर हंसेंंगे और सारा देश पूछेगा कि आप के साथ क्या गलत है। यह संकट आपके सभी सामान्य हथियारों जैसे बल, एजैंसियां, प्रचार तथा अति राष्ट्रवाद का इंकार करता है।

*और अंत में मोदी-शाह भाजपा की पहचान है और इतिहास के लिए निन्दा है क्योंकि आप गणतंत्र के इतिहास को केवल 2014 की गर्मियों से शुरू करते हैं और इससे पहले जो कुछ हुआ वह एक आपदा थी और इससे सीखने लायक कुछ नहीं था।

सातवें कारण पर कुछ विस्तार से बात करते हैं। यदि 2014 के बाद के भाजपा नेता सत्ता और आंदोलन के चक्कर में फंसे नहीं होते तो वे किसी को भारत के कुछ पहले के अनुभवों को भरने के लिए कहते। जवाहर लाल नेहरू के सभी कथित विचारों के अलावा उन्हें संघ में पढ़ाया जाता था। तब जानते होंगे कि एक सर्वोच्च शक्तिशाली नेता अपनी लोकप्रियता के चरम पर गलत हो सकता है और पीछे हटने के लिए मजबूर हो सकता है। क्योंकि तब नरेन्द्र मोदी ने यह जाना होगा कि 1973 में स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के सभी अनाज व्यापार का राष्ट्रीयकरण कर कैसे गलती की। यह उनका समाजवादी शिखर था। तब वह बंगलादेश के बाद दुर्गा रूपी शिखर पर थीं और कुछ भी गलत नहीं कर सकती थीं। यह वह समय था जब अर्थव्यवस्था युद्ध के कहर से उबर रही थी। मुद्रास्फीति 33 प्रतिशत पहुंच गई थी और तेल की कीमत झटके से उभर रही थी। 

यह वह समय था जब इंदिरा गांधी की सम्पूर्ण दुनिया की शुरूआत हुई थी। एक सोवियत शैली का समाजवादी आदर्श लोक था जिसमें कारों सहित सभी कीमतें तय की गई थीं। बिजनैस स्टैंडर्ड के सम्पादकीय अध्यक्ष टी.एन. निनन ने 2014 के इस लेख में इस अवधि का जिक्र किया है और अनाज व्यापार राष्ट्रीयकरण को श्रीमती इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी मूर्खता कहा है। कहानी का संक्षिप्त रूप यह है कि उनके प्रमुख महासचिव तथा योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन डी.पी. धर द्वारा इंदिरा गांधी को समझाया गया था कि कीमतों को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका यह था कि राष्ट्रीयकरण करके बाजारों को अनाज व्यापार से बाहर निकाला जाए। बेशक कोई सार्वजनिक राय नहीं बनाई गई थी। एक मजबूत तथा सर्वोच्च लोकप्रिय नेता होने का मतलब क्या है यदि आप अभी भी वही थकाऊ चीजों को करना जारी रखते हैं। 

इंदिरा गांधी के सिस्टम में एक व्यक्ति और था जिसने भयावह आपदा को देखा और उन्हें सावधानी बरतने के लिए कहा। वे एक प्रख्यात अर्थशास्त्री तथा एक पंजाबी थे। उनका नाम था बगीचा सिंह मिन्हास जोकि खालसा कॉलेज अमृतसर से स्नातक थे उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से शिक्षा ग्रहण भी की तथा स्टैनफोर्ड से पी.एचडी. भी की। मिन्हास खेती के व्यवसाय तथा किसानों के मनों को जानते थे मगर उन्हें भी खारिज कर दिया गया। 
यह एक बड़ा निर्णय था जिसे इंदिरा गांधी को वापस लेने के लिए मजबूर किया गया था जब उनके पास कोई राजनीतिक चुनौती नहीं थी। एक बार इंदिरा गांधी ने जब झपकी ली तो इस बात ने विरोधियों को प्रेरणा दी और जयप्रकाश नारायण के नवनिर्माण आंदोलन ने गति पकड़ी। 

हम दो स्थितियों में विरोधाभासों को स्वीकार करते हैं श्रीमती गांधी ने निजी बाजारों को किसानों से दूर ले जाने की कोशिश की और हार गई। वहीं मोदी किसानों के लिए अधिक बाजार ला रहे हैं और वे उन्हें नहीं चाहते हैं। राजनीति में यदि आपका उद्देश्य चुनाव जीतना ही है तो आपको चाणक्य नीति तथा रामराज्य (दूसरों को सुनना और देना और लेना) दोनों की आवश्यकता है। आप किसानों को न तो झुका सकते हैं न ही उन्हें खालिस्तानियों के तौर पर दर्शा सकते हैं। हम इन सवालों के जवाब नहीं दे सकते मगर एक बात स्पष्ट है कि जमीनी कार्य यहां से गायब जरूर है।-शेखर गुप्ता
    

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