सैनिकों की सेवाओं का इस्तेमाल अत्यधिक आवश्यक कार्यों में किया जाए

Monday, Aug 21, 2017 - 12:18 AM (IST)

हमारी राष्ट्रीय विमान सेवा एयर इंडिया ने एक सद्भावना के तौर पर हमारे सैनिकों को सम्मान देने का निर्णय किया है। अब सशस्त्र बलों के कर्मचारियों को अन्य यात्रियों से पहले विमान में सवार होने को कहा जाएगा। इस उपक्रम में वे खुद को विशेष महसूस करेंगे और इसका मकसद उनकी सेवाओं का सम्मान करना है जो, उनकी उपलब्धि चाहे कुछ भी हो, अन्य भारतीयों के मुकाबले अधिक अर्थपूर्ण है। हमें यहां एयर इंडिया की कल्पना पर प्रश्र करने के लिए कुछ पल रुकना चाहिए।

क्यों एक भारतीय अध्यापक, डाक कर्मी तथा गैस सिलैंडर डिलीवर करने वाले की सेवा कम महत्वपूर्ण है? हम तर्क दे सकते हैं कि सैनिक एक ऐसा काम करते हैं, जो खतरनाक है। मगर फिर बिजली के लाइनमैन का काम है। आंकड़े दर्शाते हैं कि युद्ध में सैनिकों के मरने के मुकाबले हमारे सीवरों तथा सैप्टिक टैंकों की सफाई करते समय अधिक भारतीयों की मौत होती है। उन कर्मचारियों को कोई मैडल, सम्मान अथवा पुरस्कार नहीं मिलता। यहां तक कि उन्हें तो अपनी ही मेहनत का बकाया नहीं मिल पाता।

यद्यपि मैं आज इस विषय पर तर्क नहीं करना चाहता। चलिए मान लेते हैं कि सैनिक गणतंत्र का अपना सबसे महत्वपूर्ण काम करते हैं इसलिए वे एक ऐसे सम्मान के पात्र हैं जिसका पात्र अन्य कोई नहीं। क्या सरकारी एयरलाइन का बोॄडग प्रोटोकॉल सैनिकों को सम्मानित करने का सही तरीका है? मैं कहूंगा नहीं, यह वास्तव में एक तरह से फर्जी तथा सैनिकों के खिलाफ है। मैं इसे स्पष्ट करता हूं।

ऐसे कई तरीके हैं जिनसे हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारी सेना को उनका वांछित हक मिल सके। पहला, पर्याप्त वेतन तथा रहन-सहन की स्थितियों के रूप में। हाल ही में जिन जवानों ने खाने तथा रहन-सहन की स्थितियों के बारे में शिकायत की, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई दर्शाती है कि हम इस मामले को लेकर गम्भीर नहीं हैं। एयर इंडिया हमारे सैनिकों का बेहतर तरीके से सम्मान करती यदि यह अपनी केटरिंग शक्ति का इस्तेमाल उनके भोजन में सुधार में मदद देने पर सहमत होती।

दूसरा, हमें यह अवश्य सुनिश्चित करना होगा कि हमारे सैनिक शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ हों। हमारे जवानों द्वारा तनाव में आकर अपने अधिकारियों तथा सहकर्मियों की हत्याओं की लगातार होने वाली घटनाएं संकेत करती हैं कि ऐसा नहीं है। हमारे पूर्व सैनिकों की यूनियनें तथा संगठन इस तथ्य की पुष्टि करेंगे कि हमारे योद्धाओं में से बहुत से मानसिक रूप से ठीक नहीं हैं। उन्हें उपचार के लिए बिल्कुल समर्थन नहीं मिल रहा।

तीसरा, हमारे सैनिकों को सेवाकाल के दौरान तथा सेवानिवृत्ति के पश्चात पैंशन तथा नौकरियों व शिक्षा के अवसर उपलब्ध करना। अमरीका यह बहुत अच्छी तरह से कर रहा है विशेषकर शिक्षा के मामले में-पूर्व सैनिकों को कालेज स्कालरशिप्स उपलब्ध करवा कर। हम ऐसा नहीं करते, जहां तक पैंशन तथा नौकरियों के अवसर की बात है, मैंने इस विषय पर कुछ शोध किया है और आपको बता सकता हूं कि हमारा सीमित स्रोतों के साथ एक गरीब राष्ट्र है, फिर भी हमारे सैनिकों को सरकारी कर्मचारियों के किसी भी अन्य वर्ग के मुकाबले सरकार से अधिक मिलता है।

चौथा, सेवारत सैनिक, जो अच्छी कारगुजारी दिखाते हैं उन्हें अवश्य मैडल्स आदि जैसे पुरस्कारों के साथ सम्मानित करना चाहिए। एक हालिया रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि ऐसा नहीं होता। एक सैनिक को यह कह दिया जाता है कि उसे एक मैडल अवार्ड किया गया है, मगर उसे वास्तविक मैडल नहीं दिया जाता। वह सेना की कैंटीन से उसकी प्रतिकृति खरीद कर पहन लेता है। मेरे लिए यह शर्मनाक है।

पांचवां  और  अंतिम  तरीका, जिससे हमारे योद्धाओं को अर्थपूर्ण तरीके से सम्मानित किया जा सकता है, सबसे महत्वपूर्ण है।

हमें संघर्ष के उस क्षेत्र में कमी लानी चाहिए जहां हमने अपने बहादुर सैनिकों को तैनात किया है। क्यों वे सियाचिन पर काबिज हैं, जो एक बंजर भूमि है, जहां प्रतिवर्ष वे दर्जनों की संख्या में मारे जाते हैं। सेना की फायरिंग से नहीं बल्कि मौसम के कारण। क्या हम पाकिस्तान सरकार से बात करने का कुछ प्रयास नहीं  कर  सकते और सियाचिन, सालतोरो क्षेत्र के दोनों ओर सैनिकों  की उपस्थिति में कमी नहीं ला सकते? हम कर सकते हैं मगर यदि पाकिस्तान से बात करें। फिलहाल हमने उनके साथ ‘कट्टी’ जारी रखने को ही चुना है जिसका अर्थ यह हुआ कि हमें अपने सैनिकों के मरते रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

आंतरिक तौर पर हमारी सेना तथा अर्धसैनिक बल उत्तर-पूर्व, आदिवासी पट्टी तथा जम्मू-कश्मीर में लगातार तैनाती का सामना करते हैं।

ये वे मुद्दे हैं जिनका सैन्य नहीं, राजनीतिक समाधान ही जरूरी है। सशस्त्र बलों को इन स्थानों पर 70 वर्षों से परखा जा रहा है, मगर अभी तक कोई अनुकूल परिणाम नहीं मिला। यदि हम इस बात पर जोर देते हैं कि सशस्त्र बल एकमात्र विकल्प है तो उस कड़ाई की कीमत जवान तथा भारतीय नागरिकों को चुकानी होगी जिनके खिलाफ वह लड़ रहा है।

भारतीय सैनिक को जहां भी लडऩे के लिए कहा जाएगा वह लड़ेगा और उससे ऐसा हमेशा कहा जाता है। एक लोकतांत्रिक समाज होने के नाते हमने यह देखा है कि उसकी सेवाओं का इस्तेमाल अत्यधिक आवश्यक कार्यों में किया जाए। जरूरी नहीं कि हम उसे अपने लिए मरने को कहें। यह एकमात्र महत्वपूर्ण तरीका हो सकता है जिससे हम उसे सम्मानित कर सकते हैं। दुर्भाग्य से हम ऐसा होते नहीं देखते। जब तक वह मरना जारी रखता है हम उसे खुशी-खुशी सम्मानित करते हैं, आम तौर पर बिना जरूरत के।

मेरा अनुमान यह है कि एयर इंडिया मिलिट्रि’म, जिसे मोदी सरकार ने निर्मित किया है, के इस माहौल में राष्ट्रवादियों की चमचागिरी कर रही है। यह पहले ही कहा जा चुका है कि यह लोकल फ्लाइट्स में केवल शाकाहारी भोजन सर्व करेगी और यह सम्भवत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बहुत खुशी प्रदान करेगा। मुझे चमचागिरी से कोई समस्या नहीं है और मेरा मानना है कि हर कोई ऐसा करता है।

मगर इस तरह की लापरवाहीपूर्ण चेष्टाएं सैन्य बलिदानों के असल अर्थ को कम कर देती हैं और यहां तक कि यदि यह सरकार को खुश करता है तो असल मुद्दा टल जाता है।

Advertising