सेंगोल का अर्थ सत्ता नहीं बल्कि ‘धर्मी शासन’

punjabkesari.in Sunday, Jun 04, 2023 - 04:10 AM (IST)

तिरुवल्लुवर, एलंगो अडिगल, अव्वय्यर और संगम कवि अगर माननीय प्रधानमंत्री, विकृतियों और भाजपा के ‘स्पिन डॉक्टरों’ द्वारा सेंगोल की चौंकाने वाली व्याख्या के बारे में सुनेंगे तो वे अपनी कब्र में पलट जाएंगे। उनकी व्याख्या में, सेंगोल लौकिक शक्ति का प्रतीक बन गया है। एक पुजारी या एक पूर्व शासक द्वारा सेंगोल को नए शासक को सौंपने की कल्पना को सत्ता के हस्तांतरण के रूप में चित्रित किया गया है। 

कैसे इतिहास और एक नैतिक सिद्धांत को बेशर्मी से तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है, इसका प्रदर्शन 28 मई, 2023 को हुआ। यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि शैव अदीनम (मठ) के स्वयंभू प्रमुखों को ऐसे ममारोह में धार्मिकता की एक बड़ी खुराक इंजैक्ट करने के लिए बुलाया गया था, जिसे एक धर्मनिरपेक्ष घटना होना चाहिए था। जब लोगों ने अपनी टैलीविजन स्क्रीन पर देखा होगा, उन्होंने निश्चित रूप से 25 जुलाई, 2022 को राष्ट्रपति मुर्मू के सादे शपथ ग्रहण समारोह के साथ इस अनुष्ठान की तुलना की होगी। विशेषकर कर्नाटक के लोगों को हैरानी हुई होगी कि ‘कौन किसके लिए सत्ता हस्तांतरण कर रहा है?’ 

कवियों ने सेंगोल को परिभाषित किया : 31 ईसा पूर्व में, एक तमिल कवि और दार्शनिक, तिरुवल्लुवर ने अपने अमर छंद लिखे जो प्रसिद्ध तिरुक्कुरल में निहित हैं। वैल्थ नामक भाग में, उन्होंने सेंगोनमाई (धर्मी राजदंड) और कोडुंगोनमाई (क्रूर राजदंड) नामक दो अध्यायों को शामिल किया। दोहा 546 कहता है-

‘वेलांद्रि वेंद्री तरुवथु मन्नावन
कोल अदुऊम कोडथु एनिन’
कोल राजदंड है। पद्य का अर्थ है कि ‘शासक की विजय भाला नहीं, वह कोल (राजदंड) है’, लेकिन कवि के अंतिम तीन शब्दों पर ध्यान दें- कोल जो झुकेगा नहीं। राजदंड खड़ा होना चाहिए। उसे इस ओर या उस ओर नहीं झुकना चाहिए। प्रधानमंत्री द्वारा ली जाने वाली शपथ में भी यही विचार मौजूद हैं ‘... मैं बिना किसी भय या पक्षपात, स्नेह या दुर्भावना के संविधान और कानूनों के अनुसार सभी प्रकार के लोगों के लिए सही काम करूंगा।’ कोल धर्मी शासन का प्रतीक है, न अधिक न कम। यह एक सेंगोल होगा, यदि यह झुकता नहीं है, अगर यह झुकता है तो यह एक क्रूर नियम होगा। 

सेंगोल धर्मी शासन के लिए खड़ा है, सत्ता के लिए नहीं। राजदंड धारण करने वाला शासक सही ढंग से शासन करने का वादा करता है। तिरुवल्लुवर ने सेंगोल को शासक के 4 गुणों में से एक के रूप में रखा- ‘दान, करुणा, धर्मी शासन और कमजोर (गरीबों) की सुरक्षा एक अच्छे राजा के चार गुण हैं’ (कुरल 390)। एक अन्य अध्याय का शीर्षक कोडुंगोनमाई है, जो सेंगोनमाई के विपरीत है, और एक क्रूर या अन्यायपूर्ण नियम के रूप में वर्णित है। 

सेंगोल की प्रशंसा करने वाले गीत : एक संगम कवि ने प्रसिद्ध चोल राजा करिकालन की उनके अरानोडु पुनर्नंदा तिरनारी सेंगोल के लिए प्रशंसा की, जिसका अर्थ है कि उनका बुद्धिमान शासन नैतिकता से जुड़ा हुआ था। एक अन्य संगम कवि ने शासक को ‘एरेरकु निझंद्रा कोलिन’ के रूप में वॢणत किया, जिसका अर्थ है कि शासक ने यह सुनिश्चित किया कि भोजन का उत्पादन करने वाले किसानों को कोई परेशानी न हो। एक जैन भिक्षु एलंगो अडिगल,  जिन्होंने महाकाव्य सिलप्पाथिकरम लिखा था, कन्नगी के साथ हुए अन्याय पर शोक व्यक्त किया और राजा के कयामत की भविष्यवाणी की, जिसने सेंगोल को झुका दिया था। जन कवि अव्वय्यर ने सरल भाषा में छंदों की रचना की। एक प्रसिद्ध कविता है-
‘जब मेड़ उठेगी तो पानी ऊपर उठेगा,
पानी बढ़ेगा तो धान उगेगा,
जब धान उगेगा तो परिवार बढ़ेंगे,
जब परिवारों का उदय होगा, कोल (राजदंड) उठेगा,
और जब राजदण्ड सीधा उठेगा, तब शासक उठेगा’ 

एक राजदंड जो झुक जाएगा वह एक अन्यायपूर्ण या कू्रर शासन का प्रतीक है। किसी एक वर्ग के प्रति पक्षपात या दूसरे के प्रति पूर्वाग्रह नहीं हो सकता। किसी भी समुदाय या धर्म या भाषा के प्रति दुर्भावना के लिए कोई स्थान नहीं है। समकालीन उदाहरण देने के लिए- नफरत फैलाने वाले भाषणों या अतिसतर्कता या लव जिहाद या बुलडोजर न्याय के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सी.ए.ए.) के लिए कोई जगह नहीं हो सकती, जो किसी भी पड़ोसी देश के मुसलमानों, नेपाल के ईसाइयों और बौद्धों और श्रीलंका के तमिलों के साथ भेदभाव करता है।

किसानों को व्यापारियों और एकाधिकारियों की दया पर रखने वाले ‘कृषि कानूनों के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। महाराष्ट्र से प्रोजैक्ट छीनकर गुजरात ले जाने की कोई जगह नहीं हो सकती। एक धर्मी शासक की राजनीतिक पार्टी कर्नाटक में हाल ही में हुए चुनाव की तरह राज्य के चुनाव में मुस्लिम या ईसाई समुदायों के उम्मीदवार को मैदान में उतारने से इन्कार नहीं कर सकती। न ही न्याय की मांग करने वाले पदक विजेता खिलाडिय़ों के शांतिपूर्ण विरोध को एक धर्मी शासक की पुलिस बल प्रयोग से तोड़ सकती है।

सेंगोल को अपवित्र मत करो : सत्ता के साथ राजदंड की बराबरी करना सेंगोल की अवधारणा को अपवित्र करना है। लॉर्ड माऊंटबैटन और राजाजी का हवाला देना न केवल इतिहास को विकृत करना है, बल्कि एक व्यावहारिक वायसराय और एक बुद्धिमान विद्वान-राजनेता को नीचा दिखाना और उनके लिए सामान्य ज्ञान की कमी को जिम्मेदार ठहराना है। सेंगोल को सदन की कार्रवाई का मूक साक्षी बनने दें। यदि सभा में मुक्त वाद-विवाद हो तो सेंगोल सीधा खड़ा होगा-यदि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है; यदि असहमत होने और असहमत होने की स्वतंत्रता है और अगर अन्यायपूर्ण या असंवैधानिक कानूनों के खिलाफ मतदान करने की स्वतंत्रता है।-पी. चिदम्बरम


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