स्व. स्वदेश चोपड़ा जी को विनम्र श्रद्धांजलि सचमुच थीं वह दया की सागर
Sunday, Jul 08, 2018 - 04:40 AM (IST)
ममता की वह प्यारी मूरत, हर दम आती याद,
स्वर्ग लोक में सुखी रहें, दिल करे सदा फरियाद।
न जाने कितने दुखियों के दर्द को दूर भगाया,
कितने ही घर-आंगन को खुशियों से महकाया।
नहीं हिसाब कितने बच्चों में ज्ञान का दीप जलाया,
निपट निरक्षर बच्चों को पढऩा-लिखना सिखलाया।
जन सेवा की प्रबल भावना थी उनकी पहचान,
सदा बांटती रहीं स्नेह वह, संग फूलों सी मुस्कान।
जिसको देखो सब गाते हैं, उनका ही गुणगान,
सचमुच थीं वह दया की सागर, माता बड़ी महान।
दीन-दुखी का दर्द सदा ही अपने ऊपर झेला
जो भी आया द्वार पे उनके, रहा कभी न अकेला।—कुलदीप अविनाश भंडारी