महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए स्कूलों में अनिवार्य हो आत्मरक्षा प्रशिक्षण

punjabkesari.in Tuesday, Aug 27, 2024 - 06:33 AM (IST)

कोलकाता में एक युवा रैजीडैंट डाक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के बाद लोगों का गुस्सा उबल रहा है। यह पहली बार नहीं है कि देश इस तरह की वीभत्सता देख रहा है, और यह आखिरी भी नहीं होगा जब तक कि सभी सामाजिक, कानूनी और मनोवैज्ञानिक स्तरों पर कुछ कठोर न हो जाए। ऐसा नहीं है कि निर्भया से पहले महिलाओं पर यौन उत्पीडऩ की कोई भयावह घटना नहीं हुई थी। ऐसी घटनाएं हुई थीं, लेकिन निर्भया के मामले ने महिलाओं की सुरक्षा (या इसकी कमी) के मुद्दे को सामने ला दिया, और इसके परिणामस्वरूप महिलाओं को अधिक सुरक्षा और कानूनी सहायता प्रदान करने वाले कानून बनाए गए। कड़े उपाय लागू किए गए हैं, फिर भी देश भर में घटनाएं होती रहती हैं। 

ऐसा लगता है कि कोई बाहरी ताकत इस सड़ांध को रोक नहीं सकती है, और अब समय आ गया है कि महिलाएं अपनी सुरक्षा अपने हाथों में लें। उपरोक्त बातों के मद्देनजर, मैं सोच रही हूं कि हमारी लड़कियों को शुरू से ही आत्मरक्षा की रणनीति से लैस करना अधिक विवेकपूर्ण और व्यावहारिक होगा। महिलाओं के खिलाफ अपराध इतने आम हो गए हैं कि अब ध्यान इस ओर जाना चाहिए कि महिलाओं को इस तरह सशक्त बनाया जाए कि वे अपने पेशेवर और निजी जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आत्मविश्वास और सुरक्षा पा सकें। 

इन उल्लंघनों के लिए शायद पितृसत्तात्मक मानसिकता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो महिलाओं के लिए अभिशाप रही है (सिर्फ भारत में ही नहीं), लेकिन समाज या उसकी अनियमितताओं को दोष देने से हम इस तरह के गंभीर मुद्दों से लड़ नहीं सकते। यह तब और भी बुरा हो जाता है जब महिलाओं को खुद ही उन पर होने वाले अत्याचारों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। अगर समाज महिलाओं पर सुरक्षा की जिम्मेदारी डालना चाहता है, तो महिलाओं को आवश्यक हथियार मुहैया कराने के लिए एक कार्य योजना होनी चाहिए। 

सरल शब्दों में कहें तो स्कूल के पाठ्यक्रम में मार्शल आर्ट और अन्य आत्मरक्षा पाठ अनिवार्य क्यों नहीं किए जाते? अगर खेल या पी.टी. का पीरियड हो सकता है, तो मार्शल आर्ट का पीरियड भी हो सकता है। हमारी लड़कियों को उपद्रवियों से निपटने के कौशल से लैस करने का विचार ही मुझे खुश करता है और ऐसी उम्मीद देता है जो कोई कानून नहीं दे सकता। व्यापक निंदा और दंडात्मक कार्रवाई की मांग भविष्य की घटनाओं को रोक नहीं सकती। गलत काम करने वाले पुरुषों के बीच यह आम ज्ञान है कि जिस महिला को उन्होंने घेर रखा है, वह उन्हें निष्प्रभावी कर सकती है। मार्शल आर्ट शहरी परिवेश में लड़कियों के लिए एक वैकल्पिक गतिविधि रही है, लेकिन तभी जब इसे हर स्कूल में प्राथमिक कक्षाओं से पाठ्यक्रम के एक हिस्से के रूप में शामिल किया जाए और उन्हें उन खतरों से वास्तव में मुक्ति दिलाई जाए जो उनके दैनिक जीवन के हर कोने में छिपे हुए हैं। 

यह जानना उत्साहजनक है कि सरकार देश में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा देने के अपने लक्ष्य पर अड़ी हुई है, लेकिन ये कदम घटना के बाद उठाए गए हैं। इस लेख में जो सुझाव दिया गया है वह एक पूर्व-निवारक उपाय प्रदान करने की योजना है, जो महिलाओं के खिलाफ उनके बचाव द्वारा ङ्क्षहसक हमलों को रोकने का एक तरीका है। यह आवारा विचारों वाले पुरुषों के एक अच्छे बहुमत को रोक सकता है। जो माता-पिता बेहतर जानकारी रखते हैं वे अपनी बेटियों को आत्मरक्षा कार्यक्रमों में नामांकित करते हैं, लेकिन ऐसे बहुत कम हैं। असली अंतर तभी दिखेगा जब स्कूल जाने वाले हर बच्चे को शारीरिक ताकत के बल पर अपराधी को भगाने की तकनीक सिखाई जाएगी। अगर हमारी महिलाएं मुक्केबाजी और कुश्ती के मैदान में पदक जीत सकती हैं तो वे स्कू ल में दिमाग के साथ-साथ पर्याप्त ताकत भी बना सकती हैं। अगर हर पुरुष जो किसी महिला पर कामुक नजर डालता है, उसे याद रहे कि उसका संभावित शिकार कोई धोखा देने वाला नहीं है, तो बदलाव आएगा। आइए हम अपनी लड़कियों को लुटेरों को दूर रखने के लिए साहस से सशक्त बनाएं।-आशा अय्यर कुमार


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