देशद्रोह कानून ब्रिटिश राज का एक अवशेष है

punjabkesari.in Thursday, Jun 17, 2021 - 05:00 AM (IST)

इस अनुमान के लिए एक बढ़ता हुआ रुझान यह है कि सरकार की आलोचना करना ही राष्ट्र की आलोचना करना है। इसी तरह यदि देश में सरकार के विरोध में प्रदर्शन होते हैं तो ऐसा माना जाता है कि यह देश के खिलाफ ही हो रहे हैं।

सरकार के अंधे प्रशंसक या फिर वे लोग जिन्हें आम भाषा में हम भक्त कहते हैं वे सरकार के सिद्धांतों तथा कानून को लागू करने वाली एजैंसियों को विस्तार से ज्यादा उनकी व्या या तथा उनका समर्थन करते हैं। इस रुझान का प्रमाण कानून का अनियंत्रित दुरुपयोग है। विशेषकर गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यू.ए.पी.ए.) तथा कठोर कानून जोकि देशद्रोह तथा धर्म को त्यागने वालों के खिलाफ बनाए गए हैं। 

इन कानूनों के तहत लोगों पर आरोप दायर करने की तेजी से वृद्धि हुई है। कई बार ऐसे कानून प्रदर्शनों को प्रेरित करते हैं और यहां तक कि ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर इनके बारे में लिखा जाता है। देशद्रोह कानून ब्रिटिश राज का एक अवशेष है और इस कानून का दुरुपयोग नागरिकों के खिलाफ किया गया है। यूनाइटेड किंगडम ने इस कानून को स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए बनाया था। इस कानून को बनाने वाले देश ने इसे पहले ही निरस्त कर दिया है। इसके बावजूद कि अदालतें कानून के खिलाफ अनेकों केसों को नकार रही हैं, वहीं स्वतंत्र भारत में इसका दुरुपयोग होना निरंतर जारी है। विभिन्न अदालतों ने हाल ही में नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा हेतु दखलअंदाजी की है और इस कानून को धोखा तथा सरकार व उसकी एजैंसियों की ज्यादतियां बताया है। 

हाल ही में एक अदालत ने वरिष्ठ तथा जाने-माने पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ देशद्रोह का मामला रद्द किया  है। दुआ ने सरकार की कार्यशैली पर आलोचना की थी। अदालत ने कहा कि सरकार द्वारा उठाए गए उपायों की आलोचना को व्यक्त करने के लिए किए गए कठोर शब्दों का मतलब देशद्रोह नहीं है। एक नए घटनाक्रम के तहत दिल्ली हाईकोर्ट ने 3 छात्र कार्यकत्र्ताओं को जमानत देने के दौरान स्पष्ट तौर पर कहा कि मतभेद को कुचलने की उत्सुकता में सरकार ने प्रदर्शन का अधिकार तथा आतंकी गतिविधियों के बीच रेखा को धुंधला कर दिया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने जताया है कि यदि दोनों को ही एक अपराध समझा जाएगा तो देश का लोकतंत्र जोखिम पर होगा। 

तीन छात्र कार्यकत्र्ता एक वर्ष से ज्यादा सलाखों के पीछे रहे हैं। उन्हें नागरिक संशोधन एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लोगों को प्रदर्शन के लिए भड़काने के लिए गिर तार किया गया था। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से संबंधित इन छात्रों पर यू.ए.पी.ए. के तहत आरोप दायर किए थे। पीठ ने कहा कि उसने कोई स्पष्ट आरोप नहीं पाया कि आरोपियों ने हिंसा को आमंत्रित किया था जिसे कि आतंकी गतिविधियां करार दिया गया है जैसे कि यू.ए.पी.ए. के तहत समझा गया। पीठ ने टिप्पणी की कि प्रदर्शन का अधिकार गैर-कानूनी नहीं है और इसे आतंकी कृत्य की संज्ञा नहीं दी जा सकती। 

छात्र कार्यकत्र्ताओं को जमानत देना और दिल्ली हाईकोर्ट की 3 सदस्यीय पीठ द्वारा की गई टिप्पणी सरकार की कानून लागू करने वाली इसकी एजैंसियों को ऐसे कानूनों को प्रदर्शनकारियों पर लागू करने से पहले संयम बरतना चाहिए। 3 छात्रों के खिलाफ यू.ए.पी.ए. मामलों पर टिप्पणी करते हुए पीठ ने एक बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा व्यक्त किया। इसने कहा कि कानूनी प्रावधान का निरंतर इस्तेमाल उन्हें महत्वहीन कर देगा। हमारे राष्ट्र की नींव की जड़ें पक्की हैं और यह एक प्रदर्शन के द्वारा हिलाई नहीं जा सकती।किसी भी आरोप से निपटने के लिए देश में अनेकों कानून हैं। इनका इस्तेमाल दुर्लभ से भी दुर्लभ मामलों में किया जाना चाहिए और ऐसे कानूनों का दुरुपयोग करने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।-विपिन पब्बी


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News