‘रुदन करने की ऋतु आई’

Wednesday, Nov 11, 2020 - 03:34 AM (IST)

रुदन करने वाले दिन चल रहे हैं। उदासी भरी ऋतु आई है। यह ऋतु रुदन करने की तथा रुदन सुनने की है। मन में एक रोष-सा है और जोश भी है। थोड़ी-बहुत कड़वाहट भी है। मैं  सोचता हूं कि आखिर यह कैसा समय है? प्रत्येक संवेदनशील मन वाला व्यक्ति हर किसी को पूछ रहा है मगर बताने वाला कोई नहीं। कैसे दिन आ गए हैं तथा क्या यह कभी वापस मुड़ेंगे। हवा में भी यही सवाल लटक रहा है। 

देश का किसान रुदन कर रहा है। सड़कों पर पिट रहा है। रो-रो कर एक-दूसरे के आंसू पोंछ रहा है। किसान कहता है कि वह पूरे देश का पेट भरता है मगर उसका पेट कौन भरेगा? वह प्रत्येक व्यक्ति की सुनता है मगर उसकी कौन सुनेगा? 6 दशकों पहले हमारे उस्ताद यमला जट्ट जिन्होंने जो गाया था वह अब सत्य सिद्ध हो गया है। गीत के कुछ बोल आपके लिए भी पेश कर रहा हूं 

जट्टा जीवन जोगेया क्यों बन बैठा अंजान
अज्ज जट्टा वेला आ गया, तू अपना फर्ज पहचान
तेरी हल ते पंजाली हीरेया, पूरे देश दा रखया मान
तैनूं धरती दा रब्ब आखदे, तू ओ जट्टा इंसान। 

इन गीतों के बोलों में कितना सत्य है। किसान के हल तथा पंजाली ने देश का हमेशा मान रखा है तथा  वह धरती पर रहने वाला रब्ब है। पता नहीं क्यों वह अंजान जैसा बन बैठा है या फिर उसे अंजान बना दिया गया है। 
किसान की कहानी तो बेहद लम्बी है यह गमों के साथ घिरी हुई है। इस कहानी के साथ-साथ कई अन्य उदास कहानियां भी चल पड़ीं। मेरा डायरीनामा लिखते हुए मैं बेहद उदास हूं। पिछले दिनों कुछ समाचार ऐसे थे जो मुझे पढऩे को मिले जिनको पढ़ कर अच्छी तरह से पता लगता है कि इंसान दिन-ब-दिन एक हैवान के रूप में बदल रहा है। 

बेटे मां-बाप को मार रहे हैं। यह समाचार पढ़ कर दिल बैठ जाता है कि एक नशेड़ी बेटे ने मां को तलवार से काट डाला। मां के पास पैसे नहीं थे कि वह बेटे को नशे के लिए पैसे दे देती। मां तो बेचारी लोगों के घर कामकाज कर अपना पेट पालती थी। बेटा भी अपना था। अब मैं ऐसे समाचारों को पढऩा छोड़ रहा हूं क्योंकि डिप्रैशन कई-कई दिनों तक जाता नहीं। इसके लिए दवा खानी पड़ती है। मेरे प्यारे पंजाब तुमने कभी सोचा था कि तुम्हारे बेटे इतने जालिम हो सकते हैं। तेरे बेटे यह कौन सी राह पर चल पड़े हैं? कुछ  समाचार तो ऐसे थे जहां पर पूरे परिवार ने आत्महत्या कर ली। कहीं पर किसी ने पूरा परिवार ही मार कर खुद आप भी मर गए क्योंकि देर से उसके सिर पर कर्जा भारी था तथा यह निरंतर ही और भारी होता जा रहा था। 

एक टी.वी. चैनल पर एक किसान बाप रो रहा था कि उसने बेटे को कनाडा पढऩे के लिए भेजना था इसीलिए उसने 30 लाख का कर्जा उठाया था। अब बक्से में लाश आ रही है, वहां पर उसने आत्महत्या कर ली। एक ही बेटा था। बेटे का कर्ज कौन उतारेगा? हमें कौन संभालेगा? इन सवालों का किसी के पास जवाब नहीं था। सचमुच ही रुदन की ऋतु है। हर कोई अंदर से रो रहा है। चाहे कोई इसे दिखाए या न दिखाए। परमात्मा करे कि यह रुदन करने की ऋतु भी जल्द ही निकल जाए।- मेरा डायरीनामा निंदर घुगियाणवी 
 

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