संवैधानिक पदों का हो रहा भगवाकरण

punjabkesari.in Thursday, Oct 26, 2023 - 04:28 AM (IST)

2014 में केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के गठन के बाद से विभिन्न संवैधानिक पदों के भगवाकरण, कल्याणकारी योजनाओं और परियोजनाओं के नामकरण में भेदभाव और नौकरशाही यहां तक कि सशस्त्र बलों के राजनीतिकरण के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। राज्यपालों और ऐसे अन्य महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर अब योग्यता के बावजूद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भाजपा के सदस्यों या उनके करीबी लोगों का कब्जा है। यहां तक कि केंद्र नियंत्रित विश्वविद्यालयों के अधिकांश कुलपतियों और निदेशकों की पृष्ठभूमि भी इसके समान ही है। हालांकि सरकार के समर्थक कह सकते हैं कि ऐसा करना सरकार का विशेषाधिकार है और उसे विपक्षी दलों के करीबी लोगों को क्यों नियुक्त करना चाहिए लेकिन स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विभिन्न रंगों का समावेश महत्वपूर्ण है। 

इसी प्रकार विभिन्न सरकारी योजनाओं के नाम या तो प्रधानमंत्री या संस्कृति शब्दों या फिर ङ्क्षहदू धर्म के पौराणिक पात्रों के हैं। इमारतों और सड़कों का नाम बदलने के मामले में भी यही सच है। गैर-अंग्रेजी शब्दों और ङ्क्षहदी या संस्कृत शब्दों का उपयोग करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन इस प्रक्रिया में दक्षिण या पूर्व और उत्तर पूर्व में बोली जाने वाली भाषाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है। कुछ परियोजनाओं या योजनाओं का नाम तमिल या मणिपुरी में क्यों नहीं रखा जाता? जबकि भाजपा और उसके गठबंधन सहयोगियों को वोट देने वाले सभी लोगों ने इस तरह के बदलावों के लिए मतदान नहीं किया होगा जिनका घोषणा पत्र में वायदा भी नहीं किया गया था। नौकरशाहों और यहां तक कि सैनिकों का राजनीतिकरण करने का नवीनतम प्रयास सभी सीमाएं पार कर रहा है। 

हाल के एक परिपत्र के अनुसार केंद्र ने पिछले 9 वर्षों की उपलब्धियों को उजागर करने के अभियान में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप-निदेशकों को जिला ‘रथ प्रभारी’ के रूप में नियुक्त करने की योजना बनाई है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा 18 अक्तूबर को जारी एक परिपत्र में कृषि सचिव के एक पत्र का हवाला दिया गया है, जिसमें देश भर में प्रस्तावित ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ के माध्यम से 20 नवम्बर 2023 से 25 जवनरी 2024 तक ग्राम पंचायत स्तर पर सूचना के प्रसार, जागरूकता और सेवाओं के विस्तार के लिए भारत सरकार की पिछले 9 वर्षों की उपलब्धियों का प्रदर्शन उत्सव मनाया जाएगा।

देश में 2.69 लाख ग्राम पंचायतों को कवर करने वाले 765 जिलों में से प्रत्येक में जिला रथ प्रभारी (विशेष अधिकार) के रूप में तैनाती के लिए विभिन्न सेवाओं से संबंधित सरकारी अधिकारियों का नामांकन मांगा गया था और विभिन्न कार्यालयों को समन्वय के लिए दिल्ली में रथ यात्रा की तैयारियों, योजना, कार्यान्वयन और निगरानी के लिए  15 अधिकारियों को नामित करने के लिए कहा गया था। यह तथ्य कि केवल पिछले 9 वर्षों की उपलब्धियों पर विचार किया जा रहा है, इस तथ्य को उजागर करता है कि यह 5 राज्यों के चुनावों और आगामी लोकसभा चुनावों के लिए एक पारदर्शी राजनीतिक व्यवस्था है। 

कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने पी.एम. मोदी से सर्कुलर वापस लेने का आग्रह किया है और कहा है कि यह कई कारणों से गंभीर ङ्क्षचता का विषय है। यह आरोप लगाते हुए कि अधिकारियों को मौजूदा सरकार की विपणन गतिविधि के लिए प्रति नियुक्त किया जा रहा है, खरगे ने लिखा, ‘‘यह केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 का स्पष्ट उल्लंघन है जो निर्देश देता है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं लेगा। हालांकि सरकारी अधिकारियों के लिए सूचना प्रसारित करना स्वीकार्य है। उन्हें जश्न मनाना और उपलब्धियों का प्रदर्शन स्पष्ट रूप से सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं में बदल देता है। 

जबकि नौकरशाहों से योजनाओं की डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर तक पहुंचने की अपेक्षा की जाती है। समस्या उन नौकरशाहों को सौंपे गए कार्य के निर्धारण में है जो रथ प्रभारी होंगे और सरकार की उपलब्धियों को प्रदॢशत करनेऔर जश्न मनाने का दायित्व संभालेंगे। यह एक दिखावा है कि सरकारी अधिकारियों से सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन और निगरानी के लिए काम करने की बजाय सरकार का महिमामंडन करने की अपेक्षा की जाएगी। सिविल सेवकों और सरकारी कर्मचारियों को राजनीतिक रूप से तटस्थ रहना होगा। वे पाॢटयों के सदस्य नहीं बनते या उनके लिए काम नहीं करते। 

सरकार का एक और हालिया निर्णय छुट्टियों पर गए सैनिकों को सरकारी योजनाओं को ‘सैनिक राजदूत’ के रूप में प्रचारित करने में शामिल करना भी त्रुटिपूर्ण था। अधिकारी और सैनिक प्रतिकूल सीमाओं और कठिन परिस्थितियों में सेवा करने के बाद अपने परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताने के हकदार हैं। उनसे यह अपेक्षा करना कि वे समय निकाल लेंगे और अवकाश के बाद उनके द्वारा किए गए कार्यों का साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे। यह बात बहुत अन्यायपूर्ण है। सरकार को ऐसे कदमों पर पुनॢवचार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नौकरशाहों और सशस्त्र बलों के सदस्यों को इसकी प्रचार शाखा के रूप में नहीं माना जाए।-विपिन पब्बी      


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