कश्मीर घाटी में ‘केसर’ की खेती में भारी गिरावट

Tuesday, Apr 24, 2018 - 04:26 AM (IST)

केसर दुनिया का सबसे महंगा मसाला है, इसके बावजूद कश्मीर घाटी के किसानों की सांसें फूली हुई हैं। इसका कारण यह है कि घाटी में लम्बे समय से सूखे जैसी स्थिति बनी हुई है जिसके चलते केसर  के उत्पादन में 95 प्रतिशत तक गिरावट आ गई है। 

कम वर्षा के कारण प्रदेश में केसर का उत्पादन गत 50 वर्षों के न्यूनतम स्तर तक पहुंच गया है। ऐसे समाचार मिल रहे हैं कि किसान केसर की खेती छोड़ कर सेब, अखरोट और लहसुन जैसी अधिक सघन फसलों की खेती करने पर विचार कर रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष किसान एक टन से अधिक केसर के उत्पादन की उम्मीद  नहीं कर रहे हैं, जबकि केसर की औसतन पैदावार 15 से 17 टन है। 2014-15 में भी केसर का उत्पादन बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ था। तब बाढ़ के कारण केवल 8.52 टन पैदावार ही हुई थी जोकि सामान्य से लगभग आधी थी। 

केसर उत्पादक संघ के अध्यक्ष अब्दुल मजीद वानी ने बताया : ‘‘इस वर्ष केसर की पैदावार बहुत कम होने की उम्मीद है। कश्मीर में लगभग 18000 परिवार केसर की खेती से संबद्ध हैं और अब उनकी रोजी-रोटी खतरे में पड़ी हुई है।’’ केसर एक बहुत ही संवेदनशील पौधा होता है जिसे बसंत ऋतु में और मानसून के बाद दो बार बारिश की जरूरत होती है, तभी इसकी उल्लेखनीय पैदावार होती है। सरकार ने 7 वर्ष पूर्व कम वर्षा की स्थिति से निपटने के लिए ‘स्ंिप्रकलर’  सिंचाई परियोजना को लागू किया था लेकिन किसानों को शिकायत है कि यह योजना प्रभावी सिद्ध नहीं हुई। 

वानी ने बताया : ‘‘केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय केसर मिशन के अंतर्गत 2010 में  412 करोड़ रुपए मंजूर किए थे ताकि इस महंगी फसल की खेती को फिर से बहाल किया जा सके, लेकिन राज्य का कृषि विभाग इस योजना को उचित ढंग से कार्यान्वित करने में विफल रहा जिससे किसानों को भारी हानि हुई।’’ वानी का कहना है कि बहुत से स्थानीय किसान अब जिंदा रहने के लिए अन्य साधनों और संसाधनों की तलाश कर रहे हैं। यह भी हो सकता है कि वे केसर की खेती का पूरी तरह त्याग करके अन्य फसलों की खेती शुरू कर दें। 

केसर ही कश्मीर की अर्थव्यवस्था का केन्द्र बिन्दु है क्योंकि एक किलो केसर 2 से लेकर 3.5 लाख रुपए के बीच बिकता है। इसका उपयोग भोजन में मसाले के तौर पर और दवाइयों में किया जाता है और इसकी अधिकतम मात्रा दुनिया भर में निर्यात की जाती है। इसकी बिनाई का मौसम अक्तूबर-नवम्बर के बीच होता है। इसे पलवित होने में सहायता देने वाली बारिश गत वर्ष सितम्बर में पहुंची ही नहीं थी। किसान एक सीजन में 3 बार केसर के फूलों की बिनाई करते थे लेकिन जलवायु परिवर्तन से इस फसली पैटर्न में बहुत भारी बदलाव आ गया है।-अनिल रैना

Pardeep

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