अपने विस्तार की प्रक्रिया में दूसरों की पहचान मिटा रहा आर.एस.एस.

Wednesday, Jun 20, 2018 - 03:41 AM (IST)

मुझे सैकुलर विचारधारा मानने वाले भी दूसरों की तरह कट्टरपंथी दिखाई देते हैं। पिछले दिनों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मेरे घर आने को लेकर काफी गुस्सा था। टैलीफोन पर आलोचना तथा ई-मेल की भरमार थी। कुल मिलाकर उनका यही कहना था, ‘‘आपको उन्हें अपने घर आने की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी।’’ 

मैं चीजें स्पष्ट कर देना चाहता हूं। शाह के आने के कुछ दिनों पहले कुछ कार्यकत्र्ता मेरे घर आए थे। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के समय जेल में हम लोग साथ-साथ थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि शाह के मेरे घर आकर मिलने से मुझे कोई एतराज है। मैंने उनसे कहा कि कोई भी मेरे घर आ सकता है और मैं विचारधारा के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करता। मुझे लगता है धर्म को राजनीति में नहीं मिलाने की मेरी विचारधारा सबसे अच्छी है और इसे हमें अपनी बांह पर पट्टी की तरह लगाकर नहीं घूमना चाहिए। किसी को अपने विचार उन लोगों के सामने रखने से नहीं डरना चाहिए जो आपके सख्त खिलाफ हैं। वैचारिक मतभेद को बीच में नहीं आने देना चाहिए। आखिरकार, लोकतंत्र के मायने चर्चा और बहस ही तो हैं।

महात्मा गांधी ने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना से बातचीत की थी और यहां तक कि बंटवारे पर जोर नहीं देने के लिए राजी करने उनके घर भी गए। जब उन्हें लगा कि वह जिन्ना को मनाने में विफल हो गए तो उनके बीच विचार की कटुता नहीं थी। वास्तव में गांधी जी 21 दिनों के उपवास पर चले गए जिसे उन्होंने ‘शुद्धि’ कहा। इससे यही सीख मिलती है कि हमें अपने मतभेद दूर करने के लिए बैठकर बातचीत करने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि अमित शाह के बारे में मेरा विचार यही था कि वह आग उगलने और गंधक वाले स्वभाव के व्यक्ति हैं। उन्होंने अपनी शिष्टता और नम्रता, स्पष्ट विचार पद्धति तथा समझ और सबसे ज्यादा अपने मिलनसार स्वभाव से मुझे चकित कर दिया। यह जानते हुए भी कि मेरा दर्शन उनके और भाजपा के दर्शन के विपरीत है, उन्होंने मुझे समझाने की कोशिश की। 

उन्होंने मुझे बताया कि वह 6 साल के थे जब उन्होंने आर.एस.एस. की शाखा में जाना शुरू किया था। यह कहते समय उनकी आंखों में मैंने कोई अहंकार नहीं देखा। बेशक, वह नागपुर की रगड़ खा चुके हैं। शाह के लिए यह लंबी दौड़ थी लेकिन अंत में वह पार्टी के अध्यक्ष पद पर पहुंच गए। भारत एक चौराहे पर खड़ा है। हिंदुत्व को मानने वाले सत्ता को हथियाना चाहते हैं और धर्म को बीच में लाए बिना एक रहने के सिद्धांत को बाहर फैंक देना चाहते हैं। मैंने शाह के साथ बातचीत में इस विषय के कुछ हिस्से को छुआ। उन्होंने कहा कि जब भाजपा सत्ता हासिल करती है तो एक क्षेत्र का हर तरह से विकास करती है। मेरी राय थी कि इस प्रक्रिया में मस्जिद भी ढहा दिए जाते हैं इस पर वह उत्तेजित नहीं हुए और उन्होंने कहा कि क्षेत्र का विकास वहां के उपायुक्त पर निर्भर करता है। 

जिन दो बिंदुओं पर शाह ने अपने विचार रखे, वे थे-जाति और देश का विभाजन। उन्होंने कहा कि समाजवादी जातीय राजनीति करते रह गए। उन्होंने संस्थापक राममनोहर लोहिया का नाम लिया तथा कहा कि वह हर वक्त जाति की ही बात करते रहते थे। मेरी राय में, शायद यही कारण था कि शुरू के वर्षों में सिर्फ राज्यों में ही वे सत्ता हासिल कर पाए, केन्द्र में नहीं। शाह ने इस पर जोर दिया कि मौजूदा समय के नेता भी उसी राह पर चल रहे हैं। अचरज की बात है, सभी के विकास की राजनीति करने वाले जब सत्ता में आते हैं तो कुछ समूहों की बेहतरी को लेकर बंट जाते हैं। राज्य के स्तर पर तो इसे समझा जा सकता है लेकिन वह केन्द्र में सत्ता में आने पर भी विभाजन की राजनीति पर काबू नहीं रख पाते। सत्ताधारी भाजपा इसका उदाहरण है। उनके शासन में 21 राज्य हैं और पार्टी ने अलग-अलग राज्यों में सत्ता पाने के लिए अलग-अलग रणनीति तथा तरीके अपनाए हैं। 

यहां तक कि कांग्रेस भी, जो सैकुलर विचारों वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी है, अब वैसा संगठन नहीं रह गई है जैसा वह कभी हुआ करती थी। राहुल गांधी के लिए 2019 में कठिन होगा जब वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मुकाबले में रहेंगे जिन्होंने भाजपा को विंध्य के पार पहुंचाने में सफलता पाई है। कर्नाटक का उदाहरण देश के सामने है। देश के बंटवारे के बारे में अमित शाह ने कहा कि ‘अगर हम लोगों ने इंतजार किया होता’ तो भारतीय उपमहाद्वीप का बंटवारा नहीं हुआ होता। इस मुद्दे पर शाह गलत हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लार्ड क्लेमेंट एटली, जिन्होंने अपने शासन के अंत की घोषणा की थी, ने 6 जून, 1948 का दिन तय किया था जब वे भारत छोडऩे वाले थे-एक या अनेक देशों के रूप में लेकिन बंटवारा अगस्त 1947 में हुआ, लार्ड एटली द्वारा तय की तारीख से कम से कम दस महीने पहले। 

जब मैंने लार्ड माऊंटबेटन से पूछा कि बंटवारे को जून 1948 के पहले क्यों लागू कर दिया गया तो उन्होंने कहा कि मैं देश को इकट्ठा नहीं रख पाया। हालांकि उन्होंने यह कह कर इसे उचित ठहराया कि कोई दूसरा चारा नहीं था इसलिए शाह का विचार उसके विपरीत था जिस तरह घटनाएं घटीं। मैंने जब लार्ड माऊंटबेटन से कहा कि बंटवारे के दौरान हुई मौतों के लिए वह जिम्मेदार हैं तो उनका कहना था कि उन्होंने 20 लाख लोगों की जान बचाई जब उन्होंने दक्षिण एशिया में अपने सैनिकों के लिए जा रहे अनाज के जहाजों को मोड़ दिया। उन्होंने कहा कि वह भगवान के सामने कसम खाएंगे कि उन्होंने लोगों को भूख से मरने से बचाया। 

शाह की टिप्पणी में निराशा का अंश था लेकिन लगता नहीं है कि उनकी पार्टी ने सीख ली है। यह एक तरह का हिंदुत्व शासन थोपना चाहती है। इसके बावजूद कि 17 करोड़ मुसलमान उसके खिलाफ हैं जो वह करना चाहती है और एक बात, जो शाह तथा उनकी पार्टी को याद रखनी चाहिए कि भारत के पास एक सैकुलर संविधान है और जो भी देश में शासन करता है उसे इसका अक्षरश: पालन करना चाहिए। दुर्भाग्य से, ऐसा लगता नहीं है। आर.एस.एस. खुद को चारों ओर फैला रहा है और इस प्रक्रिया में दूसरों की पहचान मिटा रहा है। भाजपा को इसकी जरूरत है क्योंकि इसके पास अपना काडर नहीं है। जो भी वजह हो, आर.एस.एस. का शासन अशुभ है।-कुलदीप नैय्यर

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