कानून-व्यवस्था व नागरिक सुरक्षा बनाए रखने में होमगार्डस की भूमिका

punjabkesari.in Thursday, Nov 23, 2023 - 05:50 AM (IST)

इस संगठन की औपचारिक स्थापना वर्ष 1946 में उस समय हुई जब मुम्बई में साम्प्रदायिक दंगे भड़कने लगे थे। इससे पहले इस संस्था का नाम ‘स्थानीय रक्षा स्वयं सेवक’ (लोकल डिफैंस वालंटियर्स ) के रूप में था। वर्ष 1940 में लार्ड विंस्टन चर्चिल ने इसका नाम बदलकर होम गार्डस रखा था। उस समय दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था तथा जो लोग सेना में भर्ती न हो सके उन्हें इस संगठन में भर्ती किया गया। दुश्मनों के आक्रमण को लम्बे समय तक रोके रखने में इस संगठन की अहम भूमिका रही है। वर्ष 1946 के बाद इसे नागरिक अशान्ति सांप्रदायिक दंगों को नियंत्रण में रखने के लिए प्रयोग किया जाता रहा। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान इसका पुनर्गठन किया गया तथा स्वैच्छिक बल के रूप में इसमें भर्ती किए गए जवानों से विभिन्न प्रकार की कानून व्यवस्था व नागरिक सुरक्षा संबंधित सेवाएं ली जाने लगीं। 

वर्ष 1962 में केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों को होमगार्ड एक्ट बनाने के आदेश दिए तथा अब सभी राज्यों व केन्द्र शासित प्रांतों में इस एक्ट के अधीन इस संगठन की संरचना की गई है। प्रत्येक वर्ष 6 दिसम्बर को इसका स्थापना दिवस मनाया जाता है। प्रत्येक राज्य में एक स्वतन्त्र विभाग जिसे नागरिक सुरक्षा व होमगाडर््स का नाम दिया गया है तथा भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी के अधीन इसका कार्य संचालित  होता है। इस समय पूरे देश में लगभग छ: लाख होमगार्डस अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यह संगठन राज्यों की आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने के लिए पुलिस के सहायक के रूप में कार्य करता है। चाहे जम्मू-कश्मीर का बार्डर हो,चाहे मणिपुर-मेघालय हो, चाहे छत्तीसगढ़ जैसे राज्य जिनमें नक्सलवाद की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं, हर जगह न केवल पुलिस का कार्य बल्कि एक सच्चे सैनिक प्रहरी की तरह कार्य करता है। 

किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा जैसे आगजनी, बाढ़, मोटर वाहन दुर्घटना इत्यादि में अग्रणी रोल निभाता है। जब दुर्घटनाओं व विपदाओं में लाशों को कोई परिजन हाथ भी नहीं लगाते तब यही वो सूरमें हैं जो सबसे आगे जाकर अपना कंधा देते हैं। सर्दी या गर्मी और चाहे कितनी बर्फ गिरी हुई हो, यह जवान अपनी जान की परवाह किए बिना हम सभी को सुरक्षित रखने के लिए दिन-रात ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। कोरोना काल में इन्होंने एक मसीहे की तरह काम किया तथा लोगों के आंसुओं को पोंछने के लिए एक मरहम की तरह काम किया। पुलिस के हर कार्य में चाहे समन, वारंट की तामील हो तो चाहे ट्रैफिक नियंत्रण, चाहे रात्रि गश्त हो, अपराधियों का पीछा करना हो, चुनाव ड्यूटी करनी हो इन तमाम कामों में अपना तन मन से योगदान देते हैं। जब पुलिस के पास ड्राइवर, कुक या फिर किसी अधिकारी के घर सहायक के रूप में कार्य करना हो तो इनकी सेवाएं ही ली जाती हैं। यदि पुलिस विभाग के पास होमगार्डस न हो तो पुलिस के सभी कार्य शिथिल व ठहर कर रह जाएंगे। 

मगर इन जवानों को केवल स्वयं सेवक का दर्जा ही दिया गया है तथा वर्ष 2014 से पहले तो इनको दिया जाने वाला मानदेय भी नगन्य ही था। वर्ष 2014 में कुछ जवानों ने सर्वोच्च न्यायालय में समान कार्य व समान वेतन हेतु एक याचिका दायर की थी तथा न्यायालय ने निर्णय में कहा था कि होमगार्डस भी पुलिस सिपाही के बराबर कार्य करता है तथा समान कार्य के लिए समान वेतन ही मिलेगा। यह फैसला प्रकाश चीमा बनाम उड़ीसा सरकार के मामले में सुनाया गया था जोकि सभी राज्यों में एक समान लागू माना गया। 

कुछ राज्यों जैसा कि हिमाचल प्रदेश में इन जवानों की स्थिति कुछ बेहतर है क्योंकि यहां प्रत्येक होमगार्ड के जवान को लगभग 27,000 रु. प्रति माह मिलते हैं तथा पुलिस की भर्ती में भी इन्हें 10 प्रतिशत का आरक्षण है। मगर इस सब के बावजूद अब भी इन जवानों के साथ सौतेला व्यवहार ही किया जाता है। इन जवानों को दी जाने वाली सुविधाएं बहुत ही कम हैं। उदाहरणत: यदि हम पुलिस को मिलने वाली सुविधाओं की बात करें तो उन्हें तेरह महीने की तनख्वाह दी जाती है और साथ ही राशन भत्ता भी। इसके अतिरिक्त उन्हें मैडीकल सुविधा व हर प्रकार की छुट्टी मिलती है तथा सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें हर प्रकार के लाभ भी दिए जाते हैं। इसके अतिरिक्त सेवाकाल में मृत्यु हो जाने पर उनके आश्रितों को नौकरी भी दी जाती है। 

होमगार्डस को ऐसी कोई भी सुविधा नहीं दी जाती है। उन्हें तो बस मनरेगा की दिहाड़ीदारों की तरह रखा जाता है। होमगार्डस जवान को यह पता नहीं होता कि कब उसकी छुट्टी कर कर दी जाएगी तथा उनका भविष्य अनिश्चित होता है। आखिर हर कर्मचारी अपनी आर्थिकी के अतिरिक्त सामाजिक सम्मान भी चाहता है। इसके अतिरिक्त इनके लिए कोई भी कल्याणकारी योजना नहीं चलाई गई है। इनकी दयनीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए व उनके कल्याण के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जाते हैं : 
1) होमगार्डस एक्ट में बदलाव लाना चाहिए तथा इनका स्वयं सेवक का दर्जा बदलकर दूसरे नौकरशाहों की तरह लोक सेवक का दर्जा दिया जाना चाहिए।
2) यदि पुलिस जवानों की तरह इन्हें तृतीय श्रेणी का दर्जा न भी दिया जाए तो कम से कम चतुर्थ श्रेणी का दर्जा दिया जाना चाहिए ताकि इनका भविष्य सुरक्षित बना रहे। 
3) अन्य कर्मचारियों की तरह इन्हें भी हर प्रकार की सुविधा जैसा कि छुट्टी, मैडीकल सुविधा, पदोन्नति इत्यादि की सुविधा दी जानी चाहिए।
4) जवानों के मनोबल को बढ़ाने के लिए खेलकूद प्रतियोगिताएं व सांस्कृतिक कार्यक्रम इत्यादि का आयोजन भी समय समय पर किया जाना चाहिए।
5) चुनावों के दिनों में राजनीतिज्ञ इनके कल्याण के लिए बड़े-बड़े वायदें करते रहते हैं तथा इनकी संवेदनाओं से खिलवाड़ करते रहते हैं। उन्हें इनकी दयनीय स्थिति के संबंध में आवश्यक ध्यान देना चाहिए।-राजेन्द्र मोहन शर्मा 
डी.आई.जी. (रिटायर्ड) हि.प्र.


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