रोहित वेमुला की मौत ‘सरकारी उत्पीडऩ’ का परिणाम नहीं थी

Friday, Jun 22, 2018 - 04:13 AM (IST)

‘भारत तोड़ो गैंग’ देश को अस्थिर करने हेतु कितना सक्रिय है और किस सीमा तक जा सकता है-उसका खुलासा दिवंगत छात्र रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला के हाल ही के एक साक्षात्कार से हो जाता है। 

इस साक्षात्कार से जो भावार्थ निकल रहा है, उससे स्पष्ट होता है कि कैसे देश के स्वयंभू सैकुलरिस्टों और वामपंथियों ने रोहित वेमुला की मां राधिका के माध्यम से मोदी सरकार को कलंकित करने और हिंदू समाज को बांटने के लिए पैसों का लालच दिया-जिसका रहस्योद्घाटन धनराशि देने का वायदा पूरा नहीं होने की स्थिति में हुआ है। 

डिजीटल समाचारपत्र ‘‘द न्यूज मिनट’’ को दिए साक्षात्कार में राधिका वेमुला ने बताया, ‘‘जब रोहित की मौत हुई, तब मैं वेलिवाड़ा में रो रही थी। मुझे कुछ नहीं पता कि हमसे मिलने कौन-कौन आ रहा है। कई लोगों ने बड़े-बड़े वायदे किए। सभी लोगों ने हमारी गरीबी देखी। इस दौरान इंडियन मुस्लिम लीग पार्टी के नेता भी हमारे घर आए थे। एक महीने बाद वे लोग मुझे अपने साथ केरल ले गए। केरल में 30-40 हजार की एक बड़ी जनसभा आयोजित हुई, जहां मुझे ले जाया गया। उस जनसभा में पार्टी के नेताओं ने मुझसे बड़े-बड़े वायदे किए। उन्होंने मुझसे 20 लाख रुपए और केरल में एक घर देने का वायदा किया।’’ ‘‘द न्यूज मिनट’’ में प्रकाशित रिपोर्ट में राधिका ने बताया, ‘‘मुस्लिम लीग ने मुझे अपनी रैलियों में बतौर मुख्यातिथि बनाकर राजनीतिक बढ़त प्राप्त की। सभी राज्यों में मैंने केरल की यात्रा सबसे अधिक की। मुस्लिम लीग की केरल युवा इकाई के महासचिव सी.के. सुबैर मुझे हमेशा कहते थे कि उन रैलियों में और भी अत्याचारों से सताए हुए लोग होंगे, जिनसे बात करने के लिए मुझे ले जाया जा रहा है।’’ 

इस साक्षात्कार में राधिका वेमुला गत वर्ष दिसम्बर में आयोजित रैली का उल्लेख करते हुए बताती हैं, ‘‘वह केरल में एक रैली में शामिल होने के लिए जा रही थीं। उसी समय उन्हें समाचार मिला कि उनकी बहू को बच्चा हुआ है। मैंने लौटने के बारे में सोचा लेकिन सुबैर ने यह कहकर रोक लिया कि मुझे रैली में 15 लाख रुपए का चैक मिलने वाला है लेकिन मेरा भाषण खत्म होते ही सुबैर मंच से नीचे उतर गए और फिर उनसे सम्पर्क नहीं हो पाया।’’ राधिका के अनुसार, ‘‘जब कई महिला संगठनों ने दबाव बनाया, तब जाकर अढ़ाई लाख के दो चैक मेरे आए जिसमें से एक बाऊंस हो गया और अब बैंक के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।’’ साक्षात्कार में राधिका कहती हैं, ‘‘मुझे क्यों परेशान किया जा रहा है। चैक को इस तरह भेजने या पैसे किस्तों में भेजने से अच्छा, वे मुझे फोन करते। यदि वे मदद नहीं करना चाहते तो हमें परेशान करने के बजाय खुलकर मना कर दें।’’ 

पूरा मामला विवादों में आने के बाद भारतीय संघ मुस्लिम लीग राधिका वेमुला को जल्द से जल्द शेष राशि जारी करने का दावा कर रही है। यह राजनीतिक दल-केरल में कांग्रेस नीत यू.डी.एफ. गठबंधन में प्रमुख सहयोगी दल है जिसकी विचारधारा मुस्लिम हितों तक सीमित है। स्वतंत्रता से पूर्व पाकिस्तान आंदोलन की अगुवाई करने वाला अखिल भारतीय मुस्लिम लीग रक्तरंजित विभाजन के बाद तीन हिस्सों में बंट गया। जहां भारत में यह ‘‘भारतीय संघ मुस्लिम लीग’’ के रूप में स्थापित हुआ, वहीं पाकिस्तान में ‘‘मुस्लिम लीग’’ तो बंगलादेश में इसने ‘‘अवामी लीग’’ का रूप धारण कर लिया। भारत में इस दल का झंडा पाकिस्तानी ध्वज से काफी मिलता-जुलता है और केरल के अतिरिक्त, इसका प्रभाव तमिलनाडु में भी अच्छा-खासा है। 

यह स्थापित हो चुका है कि रोहित वेमुला दलित नहीं थे और उन्होंने 17 जनवरी, 2016 को आत्महत्या किसी सरकार, राजनीतिक दल या फिर व्यक्ति विशेष की प्रताडऩा के कारण नहीं की थी। विकृत तथ्यों की संरचना कर सैकुलरिस्टों और वामपंथियों ने पूरे मामले को ‘‘दलित बनाम सरकार’’ बनाकर रोहित की दुर्भाग्यपूर्ण मौत को भाजपा, संघ परिवार और ए.बी.वी.पी. के संयुक्त उत्पीडऩ का परिणाम बताकर प्रस्तुत कर दिया। इस घटना की सच्चाई रोहित द्वारा लिखे जिस सुसाइड नोट में थी, उसे सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा ही नहीं बनने दिया गया। उस चिट्टी में रोहित ने आत्महत्या के लिए किसी को दोषी नहीं ठहराने की बात लिखी थी। उसने लिखा था, ‘‘मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। मुझे अपने आप से ही हमेशा परेशानी रही है। मैं अपने शरीर और अपनी आत्मा के बीच बढ़ती दूरी महसूस कर रहा हूं। मैं दानव बन गया हूं।’’ रोहित की आत्महत्या से जुड़े इन महत्वपूर्ण तथ्यों की अवहेलना कर झूठ का प्रचार-प्रसार किया गया। वैसे मई 2014 के बाद इस प्रकार के विकृत विमर्श को देश के अन्य कई मामलों में भी दोहराया गया है-जिसका हालिया उदाहरण इस वर्ष हुआ कोरेगांव का जातीय संघर्ष है। 

रोहित की मौत के बाद आज जो कुछ उसकी मां राधिका वेमुला के साथ हो रहा है, वह भी उस मानसिकता की परिचायक है, जिसमें ‘‘दलित-मुस्लिम’’ गठजोड़ का मुलम्मा तैयार करके समाज को बांटने की कल्पना है। ‘‘दलित मुस्लिम’’ गठबंधन से अल्पकाल के लिए राजनीतिक हित तो साधे जा सकते हैं, किंतु इससे किसी को सामाजिक न्याय मिलेगा, यह दावा ही खोखला है। स्वतंत्रता से पूर्व दलितों के लिए काम करने वाले नेताओं में जोगेंद्रनाथ मंडल ने इस असफल गठजोड़ के दंश को झेला है। उन्होंने हर कदम पर पाकिस्तान के लिए आंदोलित मुस्लिम लीग का साथ दिया। विभाजन के बाद बनी पाकिस्तान सरकार में वह कानून और श्रम मंत्री बने। पाकिस्तान की संविधान सभा, जिसमें मोहम्मद अली जिन्ना को गवर्नर पद की शपथ दिलाई गई थी, उसकी अध्यक्षता जिन्ना के कहने पर जोगेंद्रनाथ मंडल ने की थी, किंतु जल्द ही ‘‘दलित-मुस्लिम भाई-भाई’’ नारे की असलियत उनके सामने आ गई। अपने उद्देश्यों की पूर्ति (पाकिस्तान) के बाद मुस्लिम लीग अपने दारूल-इस्लाम को काफिरों से मुक्त करने के घोषित एजैंडे पर जुट गया। हजारों दलित मुस्लिम कट्टरपंथियों के वीभत्स उत्पीडऩ का शिकार हुए। 

8 अक्तूबर, 1950 को तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली को भेजे अपने त्यागपत्र में मंडल ने लिखा, ‘‘सिलहट जिले के हबीबगढ़ में हिंदुओं, खासकर अनुसूचित जाति के लोगों के साथ पुलिस और सेना का बर्बर अत्याचार विस्तार से बताने योग्य है। स्थानीय पुलिस और मुसलमानों ने निर्दोष औरतों-मर्दों को बर्बरतापूर्वक प्रताडि़त किया, औरतों की इज्जत लूटी गई, उनके घरों में तोडफ़ोड़ की। शहर में जहां भी ङ्क्षहदू दिखे, उन्हें मार डाला गया और सब पुलिस के आला अधिकारियों की उपस्थिति में होता रहा। मैं अपनी आत्मा पर इस झूठ और छलावे का और बोझ नहीं ढो सकता इसलिए आपके मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे रहा हूं।’’ 

वर्तमान समय में, भारत में अनुसूचित जाति-जनजाति समुदाय की जनसंख्या 30 करोड़ से अधिक है। कालांतर में ङ्क्षहदू समाज के भीतर हुए सामाजिक सुधारों के बाद दलितों और पिछड़ों को समान मौलिक अधिकार सहित आरक्षण प्राप्त है, वहीं पाकिस्तान और बंगलादेश में उनकी स्थिति नारकीय है। कट्टर मुसलमान-जिनका इन दोनों मुस्लिम देशों में बोलबाला है-उनके लिए दलित भी गैर-मुस्लिम हैं और इस्लाम की मूल अवधारणा के अनुरूप ‘‘काफिर कुफ्र’’ भी हैं। 14 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन जिस चिंतन के कारण हुआ, वह आज भी भारत में सक्रिय है और स्वयंभू सैकुलरिस्टों के आशीर्वाद से भारत को फिर से तोडऩे की योजना पर काम कर रहा है। छद्म सैकुलरवाद के नाम पर देश में जो राजनीतिक दल सामाजिक अन्यायों की चर्चा कर रहे हैं, उनका एकमात्र उद्देश्य इनका परिमार्जन न करके केवल देश को बांटने और समाज में संघर्ष को अविरल बनाए रखने का रहा है। रोहित की आत्महत्या के बाद उनकी मां राधिका वेमुला की करुणा का राजनीतिक उपयोग-इसका उदाहरण है।-बलबीर पुंज

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