महानगरों में बढ़ता तापमान एकमात्र संकट नहीं
punjabkesari.in Friday, Apr 21, 2023 - 05:18 AM (IST)

अभी आगे पूरा मई और जून बकाया है। इस बार तो मनमोहक कहे जाने वाले बसंत के मौसम में ही गर्मी ने जेठ की तपन का अहसास करवा दिया। दिल्ली में अप्रैल के तीसरे हफ्ते में अधिकतम तापमान 43.2 डिग्री सैल्सियस दर्ज किया गया था। करीबी शहर फरीदाबाद और गुरुग्राम का तापमान 44.5 डिग्री सैल्सियस दर्ज किया गया जो कि औसत से 10 डिग्री ज्यादा था। गाजियाबाद भी तपने में पीछे नहीं था। ठीक यही हाल भोपाल या भुवनेश्वर का भी रहा। यह सर्वविदित है कि भारत में भीषण गर्मी पड़ती है। हालांकि बहुत कम लोगों को पता होगा कि इस प्रचंड गर्मी ने देश में पिछले 50 साल में 17,000 से ज्यादातर लोगों की जान ली है।
1971 से 2019 के बीच लू चलने की 706 घटनाएं हुई हैं लेकिन गत 5 सालों में चरम तापमान और लू की घटनाएं न केवल समय के पहले हो रही हैं बल्कि लम्बे समय तक इनकी मार रहती है। खासकर शहरीकरण ने इस मौसमी आग में ईंधन का काम किया है। शहर अब जितने दिन में तपते हैं, रात उससे भी अधिक गरम हवा वाली होती है। जान लें आबादी से उफनते महानगरों में बढ़ता तापमान अकेले संकट नहीं होता। उसके साथ बढ़ती बिजली और पानी की मांग, दूषित होता पर्यावरण भी नया संकट खड़ा करता है।
अमरीका की कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के शीर्ष वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के मुताबिक बढ़ती आबादी और गर्मी के कारण देश के 4 बड़े शहर नई दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई और चेन्नई सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। पूरी दुनिया में बंगलादेश की राजधानी ढाका इस मामले में पहले पायदान पर है। कोलकाता में बढ़ते जोखिम के पीछे 52 फीसदी गर्मी तथा 48 फीसदी आबादी जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बाहरी भीड़ को नहीं रोका गया तो तापमान तेजी से बढ़ेगा यह स्वास्थ्य के लिए नुक्सानदेह साबित होगा।
शहरों का बढ़ता तापमान न केवल पर्यावरणीय संकट है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक त्रासदी,असमानता और संकट का कारक भी बनेगा। गर्मी अकेले शरीर को नहीं प्रभावित करती। इससे इंसान की कार्यक्षमता प्रभावित होती है, पानी और बिजली की मांग बढ़ती है। उत्पादन लागत भी बढ़ती है। शिकागो विश्वविद्यालय के एक शोध से पता चला है कि वर्ष 2100 तक दुनिया में गर्मी का प्रकोप इतना ज्यादा होगा कि महामारी, बीमारी, संक्रमण से भी ज्यादा लोग भीषण गर्मी, लू और प्रदूषण से मरने लगेंगे। अगर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर जल्द ही लगाम नहीं लगाई गई तो आज से 70-80 साल बाद की दुनिया हमारे रहने लायक भी नहीं रह जाएगी।
वर्ष 2100 आते-आते दुनिया में होने वाली प्रति एक लाख व्यक्ति में से 73 लोगों की मौत गर्मी और लू की वजह से होगी। इस तरह की प्राकृतिक आपदा का असर शहरों में ही ज्यादा होगा। यह इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि यह संख्या एच.आई.वी., मलेरिया और यैलो फीवर से होने वाली संयुक्त मौतों के बराबर है। शहरों में बढ़ते तापमान के कई कारण हैं। सबसे बड़ा तो शहरों के विस्तार में हरियाली का होम होना। भले ही दिल्ली जैसे शहर दावा करें कि उनके यहां हरियाली की छतरी का विस्तार हुआ है लेकिन हकीकत यह है कि इस महानगर में लगने वाले अधिकांश पेड़ पारम्परिक ऊंचे वृक्ष की जगह जल्दी उगने वाले झाड़ हैं। जो कि धरती के बढ़ते तापमान की विभीषिका से निबटने में अक्षम हैं।
शहरी ऊष्मा द्वीप शहरों की कई विशेषताओं के कारण बनते हैं। बड़े वृक्षों के कारण वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन होता है जो कि धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करता है। वाष्पीकरण अर्थात मिट्टी, जल संसाधनों आदि से हवा में पानी का प्रवहन वाष्पोत्सर्जन अर्थात पौधों की जड़ों के रास्ते रंध्र कहलाने वाली पत्तियों में छोटे छिद्रों के माध्यम से हवा में पानी की आवाजाही। शहर के डिवाइडर पर लेगे बोगेनवेलिया या ऐसी ही हरियाली धरती के शीतलीकरण की नैसर्गिक प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं निभाते हैं।
महानगरों की गगनचुम्बी इमारतें भी इसे गरमा रही हैं। ये भवन सूर्य की तपन से गर्मी को प्रतिबिंबित और अवशोषित करते हैं। इसके अलावा एक-दूसरे के करीब कई ऊंची इमारतें भी हवा के प्रवाह में बाधा बनती हैं। इससे शीतलन अवरुद्ध होता है। शहरों की सड़कें उसका तापमान बढऩे में बड़ा कारक हैं। महानगर में सीमैंट और कंक्रीट के बढ़ते जंगल, डामर की सड़कें और ऊंचे-ऊंचे मकान बड़ी मात्रा में सूर्य की किरणों को सोख रहे हैं।-पंकज चतुर्वेदी