आश्रय का अधिकार और बुलडोजर की राजनीति

Tuesday, Feb 14, 2023 - 04:33 AM (IST)

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नए बजट में प्रधानमंत्री आवास योजना हेतु 79,590 करोड़ रुपए आबंटित किए हैं। इनमें ग्रामीण क्षेत्र के लिए 54,487 करोड़ और शहरी क्षेत्र के लिए 25,103 करोड़ रुपए हैं। पिछले बजट में 48,000 करोड़ रुपए आबंटित किए गए थे। इस तरह रियायती आवास योजना के लिए 66 प्रतिशत की वृद्धि हुई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के गरीब परिवारों को ध्यान में रखकर 2015 में पक्का मकान बनाने का कार्यक्रम शुरू किया था। कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के साथ पुरानी झोंपडिय़ां कंक्रीट की संरचना में तबदील हो रही हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में नागरिकों के गरिमामय जीवन का प्रावधान है। आश्रय का अधिकार भी इसमें निहित है। सरकार इसके प्रति समर्पित है। पिछले 7 सालों से जारी रियायती आवास योजना पर बढ़ते व्यय से यह परिलक्षित होता है। भारत के गांवों में बसने वाले लगभग तीन करोड़ परिवार इसके लाभार्थी हैं। 

प्रधानमंत्री आवास योजना में धन आबंटन लाभार्थी परिवार के प्रमुख महिला सदस्य के नाम किया जाता है। घर का मालिकाना हक उनके साथ ही तय होता है। स्वच्छ भारत मिशन से शौचालय की व्यवस्था की जाती है। पेयजल की आपूर्ति, बिजली कनैक्शन, रसोई गैस की आपूर्ति के साथ इसे जन धन खाते से जोड़ा गया है। निश्चय ही यह न केवल भारत के इतिहास में, बल्कि पूरे विश्व में सबसे बड़ी हाऊसिंग परियोजना है। लेकिन यह अपनी तरह की पहली सार्वजनिक आवास योजना नहीं है। इसका इतिहास देश की आजादी के साथ शुरू होता है। अखंड भारत के विभाजन के ठीक बाद पुनर्वास कार्यक्रम शुरू हुआ था। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से आने वाले लाखों लोगों को ध्यान में रख कर इसे लागू किया गया। उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पांच लाख शरणार्थी परिवारों को बसाने का कार्य अगले 13 साल तक जारी रहा। 

पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1957 में ग्रामीण आवास योजना शुरू की। यह आश्रय की दूसरी योजना थी। योजना आयोग दूसरी पंचवर्षीय योजना के तहत इसे शुरू करता है जो पांचवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक जारी रही। इसके तहत 67000 मकानों का निर्माण हुआ। इसके उपरांत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्तर के दशक में आवास विकास सहयोग स्कीम शुरू की। एक दशक बाद राजीव गांधी ने भी अपनी मां की याद में इंदिरा आवास योजना शुरू की। इसके तहत 1985 से अगले तीन दशकों तक रियायती आवास का निर्माण किया गया।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2005 में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन आरंभ किया और 2013 में राजीव आवास योजना भी शुरू की थी। इसमें 2022 तक भारत को मलिन बस्तियों से मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया। इन रियायती योजनाओं को कांग्रेस की विरासत माना जाता है। प्रधानमंत्री मोदी ने सभी के लिए आवास के नारे के साथ यह योजना शुरू की है। आजादी का अमृत महोत्सव के साथ इसे 2022 में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया। तमाम कोशिशों के बाद भी इसे पूरा नहीं किया जा सका। इसे 2024 तक बढ़ा दिया गया है। 

इस योजना का कार्यक्षेत्र ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में विभाजित है। ग्रामीण क्षेत्र में तीन करोड़ मकान और शहरी क्षेत्र में डेढ़ करोड़ घरों के लिए 8.3 लाख करोड़ रुपए राजस्व की खपत होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में दो करोड़ से ज्यादा मकान बनाए जा चुके हैं तथा शहरी क्षेत्रों में करीब सत्तर लाख घरों का निर्माण हुआ है। आश्रय का अधिकार के दौर में बुलडोजर की राजनीति भी शुरू हुई। कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य ने आपराधिक  मामले के अभियुक्तों के घर ध्वस्त करने के लिए इसे शुरू किया है। हालांकि बुलडोजर का इस्तेमाल अपराधियों तक ही सीमित नहीं है। शहरी इलाके की झुग्गी-झोंपडिय़ों में रहने वाले निर्दोष भी इसका शिकार हो रहे हैं। इस पर रोक नहीं लगाने की दशा में लंबे समय तक रियायती आवास योजना जारी रखने का अवसर बना रहेगा। 

आश्रय के अधिकार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय खूब सक्रिय है। इसके साथ ही अवैध निर्माण ध्वस्त करने की प्रतिबद्धता भी है। नए बजट से कुछ दिन पहले शीर्ष अदालत ने हिमालयी राज्य उत्तराखंड के हल्द्वानी में बनभूलपुरा और मोहल्ला नई बस्ती को गिराने पर रोक लगाने के लिए स्थगन आदेश पारित किया था। पिछले साल दिसंबर में नैनीताल उच्च न्यायालय ने हल्द्वानी में 29 एकड़ रेलवे भूमि पर लंबे अर्से से रहने वाले पचास हजार लोगों को बेदखल करने का निर्देश दिया। आश्रय के उनके संवैधानिक अधिकार की रक्षा के मामले में उच्चतम न्यायालय ने पीड़ितों के पुनर्वास का प्रस्ताव दिया है। इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकार 7 फरवरी को आठ हफ्ते का समय मांगती है। दिल्ली-हरियाणा सीमा पर फरीदाबाद में खोरी गांव का विध्वंस आश्रय के मौलिक अधिकार की परिधि से बाहर नहीं है। इस मामले में पीड़ितों की संख्या एक लाख है। गांववासियों ने ध्वस्तीकरण से पहले पुनर्वास के लिए बराबर प्रयास किया। यह आज भी जारी है।-कौशल किशोर

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