‘सही पोषण, देश रोशन’
punjabkesari.in Monday, Sep 05, 2022 - 06:14 AM (IST)

हाल ही में आरंभ हुआ सितम्बर माह अपने साथ एक विशेष प्रयोजन लेकर आया है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, भोजन जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। पर्याप्त मात्रा में आहार उपलब्धता जितनी आवश्यक है, उससे भी कहीं अधिक महत्वपूूर्ण है भोजन का पोषक तत्वों से भरपूर होना। शारीरिक व मानसिक विकास के लिए अनिवार्य विटामिन, खनिज आदि का संतुलित मात्रा में सम्मिलित होना ही भोजन को ‘सम्पूर्ण आहार’ बनाता है। भारत को समूचे तौर पर सुपोषित बनाने के दृष्टिगत ही केंद्र सरकार द्वारा सितम्बर मास को पोषण विशेष के रूप में मनाने का निश्चय किया गया।
30 सितम्बर तक चलने वाली ‘पोषण अभियान’ नामक इस योजना का शुभारंभ 8 मार्च, 2018 को 9046 करोड़ के 3 वर्षीय समग्र बजट सहित किया गया था। यह अभियान केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है, जिसका उद्देश्य शिशुओं, गर्भवती महिलाओं तथा दुग्धपान कराने वाली माताओं को पर्याप्त पोषण प्रदान करना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को सुपोषित बनाने हेतु ‘समग्र पोषण योजना’ की शुरूआत करने का ऐलान किया है। इसके लिए सरकार द्वारा, ‘सही पोषण, देश रोशन’ टैगलाइन निर्धारित की गई।
गौरतलब है, वर्ष 2019-21 की आपातकालीन परिस्थितियों के दौरान वैश्विक व्यवस्थाओं को भीषण मंदी का सामना करना पड़ा। खाद्यान्न उपलब्धता पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पडऩा स्वाभाविक था। यू.एन. की ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वल्र्ड, 2022’ रिपोर्ट बताती है कि 2019 के पश्चात विश्व भर में भुखमरी का आंकड़ा तीव्र गति से बढ़ा। जहां 2019 में विश्व के 61.8 करोड़ लोग भूख से संघर्षरत थे, वहीं 2021 में यह संख्या बढ़कर 76.8 करोड़ तक जा पहुंची।
यद्यपि भारत की स्थिति को बेहतर आंका जा रहा है, तथापि सर्वेक्षणानुसार, अभी भी 22 करोड़ भारतीय भरपेट भोजन से वंचित हैं। भुखमरी मिटाने की रफ्तार भले ही विकसित देशों से कम, लेकिन पड़ोसी राष्ट्रों से बेहतर रही हो, किंतु इसका सर्वाधिक चिंताजनक पहलू 2021 में भारत की कुल 22.4 करोड़ आबादी का कुपोषित पाया जाना है, जबकि 2004-06 में 24 करोड़ लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाया था अथवा प्राप्त भोजन में पौष्टिक तत्व 50 प्रतिशत से कम रहे।
एक प्रकाशित सर्वेक्षण के अनुसार, 70.5 प्रतिशत भारतीय अभी भी पोषाहार से वंचित हैं, जिनमें महिलाओं व बच्चों की संख्या अधिक है। रिपोर्ट के तहत महिलाओं में एनीमिया पीड़ित होने के मामले भी तेजी से बढ़े। 2019 में यह संख्या लगभग 17.2 करोड़ थी, जबकि 2021 में कुल 18.7 करोड़ भारतीय महिलाएं एनीमिक पाई गईं।
‘ग्लोबल हंगर इंडैक्स-2021’ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश होने के साथ दूध, चावल, मछली, सब्जी तथा गेहूं उत्पादन में अग्रिम स्थान पर है। वैश्विक स्तर पर सबसे सस्ता पौष्टिक आहार भारत में ही सुलभ है। आहार व पोषाहार संबंधी पर्याप्तता व सुलभता होने पर भी कुल जनसंख्या के एक चौथाई से अधिक लोगों का पोषाहार से वंचित रहना, निश्चय ही आश्चर्यजनक है। इसमें जहां व्यवस्थात्मक प्रबंधन की कमियां उजागर होती हैं, वहीं अन्न का दुरुपयोग तथा असंयोजन भी स्पष्ट प्रतिभासित होते हैं।
भोजन व्यर्थ गंवाना अथवा जूठा छोडऩा हमारी सांस्कृतिक परम्परानुसार वर्जित है, किंतु जूठन फैंकने का प्रचलन उन भव्य समारोहों में बहुधा देखने में आता है, जहां संपन्नता प्रदर्शन के नाम पर विविध व्यंजन परोसे जाते हैं। सभी कुछ चखने की लालसा में भोजन का एक बड़ा हिस्सा कूड़ेदान के हवाले कर दिया जाता है, बिना यह विचारे कि इस भोजन द्वारा अनेक जरूरतमंद लोगों की क्षुधापूर्ति हो सकती थी।
पोषाहार व मुफ्त अनाज आबंटन योजनाएं होने पर भी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार अथवा क्रियात्मक उदासीनता के चलते इनकी पहुंच सभी जरूरतमंद लोगों तक संभव नहीं हो पाती। अनेकों बार उपलब्धता बनाने के अनियोजित अंतराल के मध्य लाभार्थी को प्राप्त हुए अनाज, दालें आदि न खाने योग्य स्थिति में पहुंच चुके होते हैं। रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों का असीमित प्रयोग भी अन्न की प्राकृतिक गुणवत्ता को दुष्प्रभावित करता है।
संतुलित आहार, मात्रा आदि से संबंधित अपर्याप्त जानकारी रक्त ाल्पता जैसी स्वास्थ्यजनित समस्याओं में असामान्य वृद्धि का बड़ा कारण है। बढ़ती जनसंख्या भी पोषाहार की सर्वसुलभता संभव न हो पाने में एक बड़ी समस्या है। ‘जंक फूड’ का बहुप्रचलन एवं आधुनिकता का पर्याय बना ‘रैडी टू ईट’ परम्परा का अनुसरण समय व श्रम भले ही बचाता हो लेकिन इसके दूरगामी प्रभाव कुपोषण व स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ही लेकर आते हैं।
सम्पूर्ण भोजन के महत्व संबंधी पूर्ण विवरण जन-जन तक पहुंचाने से निश्चय ही कुपोषण के आंकड़ों में गिरावट आएगी, किंतु स्मरण रहे, समूचे तौर पर देश को सुपोषित व रोशन बनाना तभी संभव हो सकता है, जब अन्न के मंडीकरण, भंडारण, वितरण आदि विविध प्रबंधन के प्रति निष्ठावान होने के साथ ही स्तरीय व्यवस्थाएं निर्धनता, बेरोजगारी, महंगाई, अज्ञानता जैसी सामाजिक समस्याओं के उन्मूलन हेतु भी संकल्पबद्ध हों।-दीपिका अरोड़ा