‘रेवड़ी कल्चर’ से अर्थव्यवस्था के पतन का खतरा

punjabkesari.in Thursday, Nov 28, 2024 - 06:01 AM (IST)

महाराष्ट्र में ‘इंडिया’ गठबंधन को हराने में महायुक्ति की बात करने से पहले, विशेषकर भाजपा द्वारा किए गए प्रयासों पर चर्चा किए बिना, यह महत्वपूर्ण है कि हम महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर 2.5 करोड़ वोटों को हासिल करने के लिए 1500 से 2000 रुपए प्रति माह की नकद सहायता जैसे मुफ्त तोहफों के परिणामों का विश्लेषण करें, जिससे राज्य के वित्त पर वार्षिक 63,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पडऩे का अनुमान है, जो भविष्य में राज्य की वित्तीय स्थिति को आर्थिक संकट में डाल सकता है।

महाराष्ट्र में चुनावी वादों को लागू करने की कुल लागत 1.55 लाख करोड़ रुपए से 1.70 लाख करोड़ रुपए तक वार्षिक हो सकती है, जबकि झामुमो और कांग्रेस गठबंधन के चुनावी घोषणा पत्र के लिए 49,550 करोड़ रुपए का वार्षिक खर्चा हो सकता है। ‘मुख्यमंत्री बहन-बेटी स्वावलंबन योजना’, जिसका उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को 1,000 रुपए प्रति माह का नकद ट्रांसफर करना है, इसका वाॢषक खर्च 12,000 करोड़ रुपए हो सकता है। महायुक्ति के मामले को महाराष्ट्र में अलग-थलग नहीं देखना चाहिए, क्योंकि ‘इंडिया’ गठबंधन ने चुनाव से पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा महिलाओं और अन्य योजना लाभाॢथयों को दी गई योजनाओं का लाभ उठाया था ताकि सत्ता की पुन: स्थापना सुनिश्चित की जा सके। 

18-50 वर्ष की आयु की गरीब महिलाओं को 1,000 रुपए का ‘डायरैक्ट बैनीफिट ट्रांसफर’ चुनाव में लाभकारी साबित हुआ। इसी तरह, 40 लाख परिवारों के  3,500 करोड़ रुपए के बिजली बिल माफ किए गए और एक सार्वभौमिक पैंशन योजना के तहत 40 लाख लाभार्थियों को  1,000 रुपए प्रदान किए गए। आलोचक कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में ‘रेवड़ी कल्चर’ पर कड़ी आलोचना की थी क्योंकि इससे देश अंधकार की ओर बढ़ सकता था। लेकिन भाजपा ने महिलाओं को नकद ट्रांसफर को सशक्तिकरण का नाम दिया है, जबकि कांग्रेस शासित राज्यों द्वारा किए गए समान कल्याण उपायों के खिलाफ है। वास्तविकता यह है कि इन राज्यों की अर्थव्यवस्था संकट में है और हिमाचल सरकार कर्मचारियों को वेतन और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पैंशन देने की अनिवार्य व्यवस्था का पालन करने में भी असमर्थ है। भाजपा पर यह कहावत पूरी तरह फिट बैठती है, ‘अगर आप करो तो पाप है, मगर मैं करूं तो पुण्य है।’

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का स्पष्ट आकलन सराहनीय है, क्योंकि उन्होंने महाराष्ट्र में ‘लाडकी बहन योजना’ को वित्तीय प्रतिक्रिया की ङ्क्षचता के कारण अस्वीकृत कर दिया, जिससे अन्य सामाजिक कल्याण योजनाओं पर असर पड़ता। मध्य प्रदेश की तरह, लाडली बहन योजना महाराष्ट्र चुनावों में महायुक्ति के लिए एक गेम चेंजर साबित हुई, लेकिन इसके परिणाम राज्य की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर डालेंगे और यह हर राजनीतिक पार्टी को देशभर में आगामी विधानसभा चुनावों में ऐसे मुफ्त उपहारों की घोषणा करने के लिए प्रेरित करेगा। वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र में इन वायदों को लागू करने की कुल लागत 1.55 लाख करोड़ रुपए से 1.70 लाख करोड़  रुपए वार्षिक हो सकती है, जिसमें सड़क निर्माण और ‘विजन महाराष्ट्र 2029’ जैसी एकमुश्त आधारभूत परियोजनाओं का खर्च शामिल नहीं है। सरकार को महत्वपूर्ण वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उधारी में वृद्धि, धन का पुन: आबंटन, या नए राजस्व सृजन रणनीतियों की आवश्यकता हो सकती है। इन वायदों को वित्तीय जिम्मेदारी के साथ संतुलित करना वास्तविक चुनौती होगी।

झारखंड में स्थिति भी उतनी ही चिंताजनक है। जे.एम.एम.(झामुमो) और कांग्रेस गठबंधन के घोषणा पत्र जनता की भावनाओं को लुभाने के लिए किए गए चुनावी वायदों का प्रतीक हैं, खासकर महिलाओं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बीच। जे.एम.एम. के वायदों में व्यापक लाभ शामिल हैं, जो रोजगार सृजन से लेकर सबसिडी वाली आवश्यक वस्तुओं तक हैं, जिनके वित्तीय प्रभाव बड़े होंगे। 10 लाख नौकरियां सृजित करने का वायदा किया गया है, जिसमें 5 लाख सरकारी पद शामिल हैं, जिनका औसत वेतन 25,000 रुपए प्रति माह होगा, और यह 15,000 करोड़ रुपए वार्षिक की लागत लाएगा। इसके अतिरिक्त, 5 लाख निजी क्षेत्र की नौकरियां प्रशिक्षण, सबसिडी और आधारभूत ढांचा के माध्यम से सृजित की जाएंगी, इसके लिए 5,000 करोड़  रुपए और खर्च होंगे, जिससे कुल रोजगार लागत 20,000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष हो जाएगी।

सबसिडी वाले एल.पी.जी. सिलैंडर प्रमुख रूप से प्रदर्शित होते हैं, जिसमें 1 करोड़ परिवारों को प्रति सिलैंडर  650 रुपए की सबसिडी दी जाएगी और प्रत्येक परिवार को 12 सिलैंडर प्रति वर्ष मिलेंगे, जिससे राज्य के वित्तीय बोझ में 7,800 करोड़ रुपए का इजाफा होगा। एक और महत्वाकांक्षी वायदा है, लड़कियों के लिए फ्री शिक्षा, जो पी.एच.डी. स्तर तक होगी, जिसमें 15 लाख पात्र लाभार्थियों को 25,000 रुपए प्रति छात्र के हिसाब से सहायता दी जाएगी, जिससे 3,750 करोड़ रुपए वार्षिक खर्च आएगा। कांग्रेस के घोषणापत्र में भी उच्च लागत वाले वादों का अपना हिस्सा है। अंतिम मूल्यांकन में, कोई भी यह नकार नहीं सकता कि चुनाव जीतने की हवस, ललक और क्रेज अब सभी राजनीतिक पार्टियों का प्रतीक बन गए हैं, बिना इसके बारे में चिंता किए कि इसका परिणाम क्या होगा, जो अंतत: राज्यों और केंद्र को वित्तीय संकट में डाल सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह शॉर्ट-टर्म लाभ है जो लोगों की कीमत पर प्राप्त किया जा रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था के पतन का खतरा है, और मतदाता इन झूठे वायदों के शिकार हो रहे हैं।-के.एस. तोमर
 


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