हिंदी पट्टी में कांग्रेस का पुनरुत्थान

punjabkesari.in Thursday, Jun 06, 2024 - 05:48 AM (IST)

2024 का संसदीय चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए वरदान साबित हुआ है क्योंकि यह उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा आदि में पुनरुत्थान के एक नए युग की शुरूआत करता है, जिसका श्रेय भाजपा के प्रचार अभियान की विभाजनकारी प्रकृति और हिंदुत्व पर ध्यान केंद्रित करने को दिया जा रहा है। किसानों, ग्रामीण संकट, आम लोगों की परेशानियां, बेरोजगार युवाओं की समस्या, आसमान छूती कीमतें आदि की अनदेखी की जाती रही है। पंजाब और पश्चिम बंगाल में अकेले चुनाव लडऩे के कांग्रेस पार्टी के फैसले का उसे भरपूर लाभ मिला क्योंकि आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने सीधे तौर पर भगवा पार्टी के प्रदर्शन को प्रभावित किया। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 6 सीटें जीतीं और इसका पुनरुत्थान पार्टी कार्यकत्र्ताओं को फिर से जीवंत कर देगा, जो सबसे पुरानी पार्टी के प्रदर्शन में लगातार गिरावट देख रहे हैं। 

अखिलेश यादव यू.पी. में गठबंधन के पूरे गेम प्लान के ‘सुपर हीरो’ हैं क्योंकि उन्होंने गैर यादव उम्मीदवारों को प्राथमिकता देकर बगावत करते हुए सोशल इंजीनियरिंग की और 17 टिकट दलितों को और 5 टिकट केवल यादवों को आबंटित किए। 
यह भाजपा के ‘चाणक्य’ अमित शाह का डोमेन था, जिसे समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश ने पूरी तरह से क्रियान्वित किया जिससे कांग्रेस को भी मदद मिली। अखिलेश-राहुल की ‘जोड़ी’ विजयी हुई। हालांकि भाजपा ने हमेशा इनके पहले के असफल प्रवास का हवाला देते हुए इन दोनों का मजाक उड़ाया था। योगी का ‘बुल्डोजर राज’ मुसलमानों को अलग-थलग करने के लिए जिम्मेदार है और मोदी के ‘करिश्मे’ पर आलाकमान का अति-विश्वास वांछित परिणाम देने में विफल रहा।

मोदी को गठबंधन सहयोगियों को एकजुट करने के लिए अपने राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा क्योंकि चंद्र बाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलगू देशम पार्टी (तेदेपा) और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ‘किंग मेकर’ के रूप में उभरे हैं भाजपा से सत्ता छीन सकते हैं। दूसरा, भाजपा ने अपने 10 साल के कार्यकाल के दौरान कभी भी अपने सहयोगियों को महत्व नहीं दिया और यहां तक कि चुनाव भी मोदी ब्रांड की गारंटी पर केंद्रित रहा। 

अब नव-निर्वाचित सांसदों के शपथ लेने के बाद संसद में टकराव अलग होगा क्योंकि भाजपा की चिल्लाने वाली ब्रिगेड का मुकाबला करने के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन  के पास 234 की मजबूत ताकत होगी। राजग का 10 वर्षों के दौरान प्रचंड बहुमत के साथ बोलबाला था। सत्तारूढ़ दल को लोकसभा को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक रणनीति बनानी होगी, जिसकी आवश्यकता तब नहीं थी जब भाजपा और उसके सहयोगी दलों का शासन था। तीसरा, विपक्ष ने ‘अग्निवीर’ योजना का भरपूर फायदा उठाया, जिसकी समीक्षा की आवश्यकता हो सकती है, खासकर तब जब कई सेवानिवृत्त जनरलों ने सेना में अपनी दीर्घकालिक उपयोगिता के बारे में अपनी आशंकाओं का अनुभव किया है। नई सरकार को अपने मापदंडों में संशोधन करने के लिए विपक्ष और सेवानिवृत्त सेना जनरलों के साथ इस पर चर्चा करनी चाहिए। चौथा, इन चुनावों में बड़े झटके को देखते हुए, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मोदी सरकार अधिक मुफ्त सुविधाओं पर विचार कर सकती है जो अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर सकती है। ऐसे प्रलोभन से बचने की जरूरत है। 

पांचवां, नई सरकार बातचीत के बेहद संवेदनशील मुद्दे पर समझौता करेगी, जिसमें भारत द्वारा ईरान के चाबहार बंदरगाह समझौते से पीछे नहीं हटने पर अमरीका द्वारा प्रतिबंध लगाने की धमकी दी गई है। ईरान पर अमरीकी प्रतिबंध किसी भी मित्र राष्ट्र को ऐसे राष्ट्र के साथ कोई भी आर्थिक संबंध रखने से रोकता है। इन प्रतिबंधों के कारण अमरीका ने भारत को ईरान से कच्चे तेल का आयात बंद करने के लिए मजबूर कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप हर साल भारी वित्तीय नुकसान हुआ था। ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ या समान नागरिक संहिता (यू.सी.सी.) के काल्पनिक विचारों को आगे बढ़ाना एक कठिन काम होगा क्योंकि विपक्ष के पास इसे रोकने की ताकत होगी। 

मोदी सरकार की विदेश नीति ने मालदीव, नेपाल आदि जैसे पड़ोसियों को अलग-थलग कर दिया है इसलिए इस पर ‘पुनॢवचार’ की आवश्यकता है क्योंकि वे चीन की ओर चले गए हैं जो क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए उनका उपयोग कर रहा है। पाकिस्तान के संबंध में भारत को राजनीतिक मुद्दों को किनारे रखकर व्यापार संबंध बनाने की उसकी पहल पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए। नवाज शरीफ ब्रदर्स को इससे कोई आपत्ति नहीं होगी। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि ‘400 पार’ नारे के दोहरे उद्देश्य थे जिसका सकारात्मक परिणाम नहीं मिल सका। वाराणसी से हैट्रिक हासिल करने का श्रेय मोदी को जाता है, लेकिन यह एक कड़वा उपहार था क्योंकि वोट शेयर में कमी आई है। 

अंतिम मूल्यांकन में मोदी अपनी पार्टी और नेतृत्व की कमजोर स्थिति के साथ अगले 5 वर्षों तक देश पर शासन करेंगे, लेकिन उन्होंने भारत को विश्व शक्ति बनाने के लिए आॢथक सुधारों को आगे बढ़ाने का संकल्प दिखाया है। इस पृष्ठभूमि में विपक्ष को एक रचनात्मक भूमिका निभाने की उम्मीद है जो लोगों के हित में होगी।-के.एस. तोमर


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