सुरक्षा कर्मियों का सम्मान ‘राष्ट्र की शान’

punjabkesari.in Thursday, May 30, 2019 - 04:10 AM (IST)

आचार्य चाणक्य ने कहा था कि देश की सरहदों की रक्षा करनी हो तो सुरक्षा कर्मियों के परिजनों की भलाई सोचें लेकिन यहां स्थिति उलट है। राष्ट्र के प्रहरी भारत माता के सच्चे सपूत और दुश्मन के लिए कहर बन बरसने वाले अपने ही देश में असुरक्षित हैं। यहां आतंकवादियों, पत्थरबाजों के लिए मानवाधिकार एकजुट हो जाते हैं। राजनेता उन्हीं से सुरक्षा की गुहार लगाते हैं। उन्हीं पर छींटाकशी करते हैं। क्या सुरक्षा कर्मी का मानवाधिकार नहीं है? 

ऐसी राजनीतिक हस्तियों पर देशद्रोह की कार्रवाई क्यों न हो लेकिन उलटे उन्हें सुरक्षा दी जाती है। आर.टी.आई. की एक खबर के अनुसार मात्र जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों की सुरक्षा पर वार्षिक 10 करोड़ से भी अधिक सरकारी खर्चा हो रहा है। ऐसा भी नहीं है कि वे ऐसे खर्च वहन न कर सकते हों। उनके पास अरबों की अकूत सम्पदा है। महंगी गाडिय़ों में घूमते हैं, हर ऐशो-आराम के साधन हैं। यहां तक कि इन सबके बच्चे देश-विदेशों में महंगी से महंगी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। 

आज देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गई है और बाहरी सुरक्षा पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। इस अवस्था के लिए मुख्य रूप से राष्ट्र में अंदरूनी बढ़ती हुई साम्प्रदायिक व जातीय हिंसा, जेहादी उग्रवाद, उत्तर पूर्वी राज्यों में बढ़ती हुई अलगाववाद की भावना, माओवाद, राष्ट्रीय भावना का अभाव, न्यायिक अव्यवस्था, बढ़ती हुई बेरोजगारी, भ्रष्टाचार,आर्थिक असमानता, नेताओं की दलगत वोट की राजनीति व लाल सलाम उत्तरदायी है। 

इससे भी बढ़कर देश की बाहरी सीमाओं में पड़ोसी राज्यों -पाकिस्तान, बंगलादेश, चीन, नेपाल, श्रीलंका आदि से हो रही लगातार अनगिनत असामाजिक व जेहादी तत्वों की अवैध घुसपैठ, बेहतर संबंधों के नाम पर चीन द्वारा किया जा रहा भीतरघात, भारतीय समुद्री मार्ग तट व इसके आसपास के इलाकों से हो रही अवैध घुसपैठ व तस्करी से भी राष्ट्र की बाहरी सुरक्षा के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की स्थिति बिगड़ती जा रही है। हमारे राजनेता रोहिंग्या मुस्लिमों को तो आश्रय दे रहे हैं जो उनके देश में भी अस्थिरता कायम करने के प्रयास की वजह से निर्वस्त्र हुए हैं लेकिन हमारे देश में वे क्या करेंगे इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं है। करीब 36 वर्ष पूर्व बंगाल के एक गांव से शुरू हुआ नक्सलवाद का तांडव आज राष्ट्र के 25 राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों मेंं फैल चुका है। 

अब बात केवल बंगाल तक ही सीमित नहीं रही, आंध्रप्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी 150 से अधिक जिलों में अपने पांव जमा चुकी है। इसमें कभी कोई दो राय नहीं है कि किसी समस्या का निदान कभी बंदूक की नाल से नहीं निकलता। निदान के लिए जरूरी है कि समस्या की जड़ तक जाया जाए, भटके नवयुवा को राहे-रास्ते लाने के लिए उसे रोजगार के अवसर, न्याय, विकास की सीढ़ी उपलब्ध करवाकर मानवता का रास्ता दिखाया जाए लेकिन हमारे राजनीतिक दल स्वार्थवश ऐसा नहीं होने देते। स्वच्छंद नव युवाओं, जिनका विवेक पहले ही मर चुका है, उन्हें जाति पाति, धर्म, क्षेत्रीयता के नाम पर गुमराह कर अपने मतलब के लिए बहकाया,फुसलाया जाता है। 

अवसरवादी और स्वार्थी नेता
वास्तव में स्वार्थी नेताओं व मौकापरस्त शासक दलों की वोट की राजनीति आंतरिक सुरक्षा कायम रखने में एक बाधा बनी हुई है। राजनीतिक हस्तक्षेप सुरक्षा बलों को अक्षम बना रहा है जिस कारण शासक दलों के राजनीतिज्ञों द्वारा अपने निहित स्वार्थों के लिए सेना तथा सुरक्षा बलों पर विपरीत आरोप लगाए जा रहे हैं। वर्ष 1994 तक अकेले जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों के खिलाफ विभिन्न आरोपों की 977 शिकायतें दर्ज करवाई गईं जिसमें से 965 शिकायतों की जांच के बाद 940 आरोप गलत साबित हुए यानी कि 95 प्रतिशत शिकायतें झूठी पाई गईं। 

नेताओं द्वारा अपने स्वार्थ के लिए इस प्रकार की सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर की जाने वाली ऊटपटांग बयानबाजी, बेवजह फैलाए जा रहे जातिवाद व धार्मिक कट्टरवादी टिप्पणियां भी राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न कर रही हैं। सत्ता हासिल करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल नक्सलवादियों के साथ खुला व भूमिगत समझौता करते हैं और समय आने पर अशिक्षित व बेरोजगार आदिवासी युवकों को बहकाकर आतंकी गतिविधियों में धकेल देते हैं। 

राष्ट्र में निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी युवा वर्ग में भविष्य के प्रति असुरक्षा व निराशा की भावना उत्पन्न कर रही है जिस कारण राष्ट्र की युवा शक्ति विकास की अपेक्षा अवन्नति की ओर अग्रसर है जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ राष्ट्र के विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। राष्ट्र के ग्रामीण समाज विशेषकर नक्सलवाद से प्रभावित बिहार, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में बढ़ती हुई बेरोजगारी के साथ-साथ आॢथक विकास का अभाव व भुखमरी भी माओवाद का मुख्य कारण है। वर्ष 2016 में 322 सैनिक और 82 सुरक्षा कर्मी शहीद हुए, 2017 में 342, वर्ष 2018 में 705 तथा 2019 में 347 तथा पुलवामा हमले में 40 सैनिक और सुरक्षा कर्मी वीरगति को प्राप्त हो गए हैं। 

ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने वर्दी की लाज न रखी हो। वतन पर न्यौछावर होने से पूर्व वे अपना राष्ट्र प्रेम का ऋण चुकता कर गए और कृतज्ञ राष्ट्र को अपने आभार से ऋणी कर गए। सरकार ने अब सुरक्षा बलों और सैनिकों को कार्रवाई की खुली छूट भी दे दी है ताकि अधिकारी मौके पर ही उचित कार्रवाई को अंजाम दे सकें। हर बार स्वीकृति के लिए दिल्ली की ओर न झांकें। सरकार ने पाकिस्तान को कई बार ऐसी गतिविधियों से हाथ खींचने पर समझाया है, हर बार सौहार्द का हाथ बढ़ाया है लेकिन बिच्छू अपनी आदत से कभी सुधर नहीं सकता तथा साधु अपने स्वभाव से। 

मुस्लिम समुदाय के मौलाना मसूद अजहर ने हरकत उल मुजाहिद्दीन दहशतगर्द संगठन से वित्तीय पोषण लेकर सोमालिया का दौरा किया और यमन में भर्ती अभियान चलाया तथा 2000 में तालिबान की मदद से जैश-ए-मोहम्मद संगठन खड़ा किया जिसकी पुष्टि संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंध से की। वर्ष 2001 में पाकिस्तान की मदद से भारतीय संसद भ्भवन पर हमला किया लेकिन 2002 में साक्ष्यों के अभाव में छोड़ दिया गया। पाकिस्तान ने इस संगठन को गैर कानूनी बता प्रतिबंधित कर दिया क्योंकि इसने तब राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर दो बार हमला किया। इस संगठन का प्रधान 2013 में कुपवाड़ा में मारा गया जिसके बाद आदिल पठान सरगना बना लेकिन वह अब्दुल हमीद दूसरे दहशतगर्द के साथ 2015 में मारा गया लेकिन संगठन तब तक स्थानीय जड़ें जमा चुका था। 

इसके बाद अलताफ सरगना बना लेकिन जल्द ही सुलटा दिया गया। इसी अवधि में पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय पुलिस के दबाव में अजहर को सीधे बयान देने से मना किया लेकिन कुत्ते की पूंछ कहां सीधी होती है। उसने अपनी गतिविधियां दिल्ली में चंदा उगाही से जारी रखीं। अगस्त 2017 में पुलवामा में जब सुरक्षा कर्मी मारे गए, सुरक्षा बलों ने राजनीतिक पार्टियों के आकाओं की आकांक्षाओं के अनुरूप जब्त बनाए रखा और दहशतगर्दी पर लगाम अपनी शहादतों से कसी जो आधी-अधूरी कार्रवाई ही रही क्योंकि राजनीतिक माहौल अनुरूप न था। 

पुलिस रिकार्ड के अनुसार वैली में 56 दहशतगर्द हैं जिनमें से 33 पाकिस्तानी तथा 23 स्थानीय हैं। उत्तरी कश्मीर में तीन, दक्षिण कश्मीर में 35 जैश संगठन हैं और इनमें से 21 स्थानीय हैं लेकिन श्रीनगर, बडग़ांव, गंदरबल जिलों में कोई नहीं है। इनके पुन: संगठित होने के पीछे पाकिस्तान की गंदी चाल है जो सीधे युद्ध के काबिल नहीं है अपितु छद्म युद्ध में भारत को नुक्सान पहुंचाना चाहता है। आज भी इमरान खान शांति के संदेश बगल में छुरी रखकर दे रहा है। बार-बार उनके दहशतगर्दी में मुदाखलत के सबूत मांग रहा है। वह भूल जाता है कि 26/11 के कसाब हमले का हर सबूत सर्वविदित होने के बावजूद भारत द्वारा हर पहलू का विवरण देने के बावजूद बेशर्मी से मुकर रहा है। 

धारा 370 हटाई जाए
सभी राजनेताओं को एकजुट होकर कश्मीर में धारा 370 हटाने के प्रयास करने चाहिएं ताकि वहां उद्योग-धंधे स्थापित हो सकें और उन्हें रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकें। मदरसों से आधुनिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो तथा मुल्ला-मौलवियों को टीङ्क्षचग शिक्षा अनवार्य हो ताकि वे अपनी जहाल्लत और नासमझी से बच्चों को गुमराह न कर सकें। अफगानिस्तान में तालिबानों ने अपने ही इतिहास और विरासत को ध्वस्त कर दिया। अब उन्हें तो नहीं लेकिन वहां के प्रबुध वर्ग ने जाना कि वे ऐसा नुक्सान कर चुके हैं जिसकी भरपाई कभी नहीं हो पाएगी। अब भारत ने पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस ले लिया है। वहां से आयातित सामान पर 200 प्रतिशत कर लगा दिया है। 

जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन को आतंकी संगठन घोषित कर दिया है, जिसकी ताईद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुई है। इस मुहिम में आतंकियों से लडऩे हेतु विश्व आज एकजुट हो गया है और संयुक्त राष्टï्र संघ ने भी इस पर मुहर लगा दी है जो भारत की बहुत बड़ी विजय का प्रतीक है। स्मरण रहे कि हर बार पाकिस्तान का साथ देने वाले चीन ने भी इस कार्रवाई पर हस्ताक्षर किए हैं ताकि दहशतगर्दी जैसे घिनौने कृत्य पर लगाम कसी जा सके और आस्तीन के सांपों से निपटा जा सके।-डा. एम.एस. मलिक


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