आरक्षण मध्यम वर्ग के लिए है, न कि गरीबों के लिए

punjabkesari.in Thursday, Jan 10, 2019 - 04:06 AM (IST)

केन्द्र में सत्तासीन भाजपा नीत सरकार द्वारा सामान्य वर्ग के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण के अचानक लिए गए निर्णय ने राजनीतिक कथानक बदल दिया है तथा विपक्ष के लिए मुश्किल पैदा कर दी है, जो 5 राज्यों में हालिया विधानसभा चुनावों के बाद उत्साहित था। 

दरअसल लोग उन मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए सरकार द्वारा कुछ बड़े निर्णयों की आशा कर रहे थे, जिन्होंने सरकार को घेर रखा है। यद्यपि बहुत कम लोगों ने सरकार की ओर से ऐसे ‘मास्टर स्ट्रोक’ की आशा की थी तथा विपक्ष के पास संविधान में प्रस्तावित संशोधन का समर्थन करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। कोई हैरानी की बात नहीं कि लोकसभा में सभी विपक्षी दलों के लिए वास्तव में सामान्य वर्ग में आॢथक रूप से पिछड़े वर्गों को नौकरियों तथा शिक्षण संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध करवाने के लिए संवैधानिक (124वां संशोधन) विधेयक 2019 का समर्थन करने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं था। 

दावे का पर्दाफाश
यद्यपि विधेयक की धाराएं स्पष्ट रूप से इस तथ्य को बयां करती हैं कि यह सामान्य वर्ग के वास्तविक गरीबों तथा वंचित सदस्यों के लिए नहीं है। पात्रता की धारा में शामिल प्रति वर्ष 8 लाख रुपए या प्रति माह लगभग 66000 रुपए की आय सीमा इस दावे का पर्दाफाश करती है। यह एक पर्याप्त या संतोषजनक आय है तथा धारा यह स्पष्ट करती है कि आरक्षण को सामान्य वर्ग में गरीबों की बजाय प्रभावशाली मध्यम वर्ग पर लक्षित किया गया है। यहां तक कि 5 एकड़ से कम जमीन, 1000 वर्ग फुट से कम मकान अथवा अधिसूचित नगर पालिकाओं में 100 वर्ग गज से कम आवासीय प्लाट या अन्य नगर पालिकाओं में 200 वर्ग गज से कम आवासीय प्लाट का मालिकाना हक जैसी अन्य धाराएं भी यह स्पष्ट करती हैं कि इसका मनोरथ मध्यम वर्ग को लाभ पहुंचाना है। 

सरकार की ‘गंभीरता’
यदि सरकार सामान्य वर्ग में गरीबों तथा दबे-कुचलों के उत्थान के प्रति गम्भीर होती तो इसे काफी निचले मानदंड निर्धारित करने चाहिए थे जैसे कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा परिभाषित किए गए हैं तथा अमरीका में 2 डालर प्रतिदिन आय वालों के लिए। इसका अर्थ यह होता कि प्रति माह लगभग 5000 रुपए की आय। मगर निश्चित तौर पर इसका उद्देश्य मध्यम वर्ग को खुश करना था, जो भाजपा से दूर होता दिखाई दे रहा था तथा जिसे कांग्रेस तथा अन्य पाॢटयां नजरअंदाज नहीं कर सकती थीं। 

विधेयक एक अनुच्छेद शामिल कर संविधान की धारा 15 में संशोधन करता है, जो ‘नागरिकों के किन्हीं भी आॢथक रूप से कमजोर वर्गों के विकास के लिए विशेष प्रावधानों’ की व्यवस्था करता है। ये प्रावधान ‘अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के अतिरिक्त शैक्षणिक संस्थानों में उनके दाखिले, जिनमें निजी संस्थान भी शामिल हैं, चाहे सरकार से सहायता प्राप्त हों अथवा नहीं’ से संबंधित हैं। सरकार का सदन को विधेयक पेश करने संबंधी सूचित करने के मूल नियम का पालन किए बगैर संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन इसे लाने का निर्णय स्पष्ट तौर पर विपक्ष को हैरान करने के उद्देश्य से था। निश्चित तौर पर कांग्रेस इसका विरोध नहीं कर सकती थी क्योंकि इसकी पूर्ववर्ती नरसिम्हा राव सरकार ऐसा ही विधेयक लाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उसे इस आधार पर खारिज कर दिया था कि संविधान में इसके लिए प्रावधान नहीं है तथा न ही नीति में नरमी लाने के लिए इसमें संशोधन किया गया। 

मानक से भी अधिक आरक्षण
यह एक तथ्य है कि कुछ राज्यों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण है, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय मानक है। 50 प्रतिशत आरक्षण से आगे जाने वाला पहला राज्य तमिलनाडु था। इस कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई लेकिन हैरानी की बात है कि याचिका स्वीकार करने के बावजूद उसने अतिरिक्त आरक्षण पर रोक नहीं लगाई। यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है तथा इस बीच कुछ अन्य राज्यों ने भी आरक्षण में वृद्धि कर दी। इनमें हरियाणा के साथ महाराष्ट्र शामिल है, जहां हाल ही में मराठों के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध करवाया गया है। प्रस्तावित कानून से लाभ प्राप्त करने वाली प्रमुख जातियां हैं ब्राह्मण, राजपूत (ठाकुर), जाट, मराठा, भूमिहर, कई व्यापारिक जातियां तथा अन्य उच्च जातियों के अतिरिक्त कपू व कामा। 

जहां संवैधानिक संशोधन विधेयक को संसद की परीक्षा में गुजरने के साथ-साथ आधे राज्यों की सहमति प्राप्त करनी होगी, वहीं इसे सुप्रीम कोर्ट की कड़ी चुनौती का सामना करना होगा, जहां इसकी सुनवाई अवश्यंभावी है। तब सर्वोच्च अदालत यह निर्णय करेगी कि नया प्रावधान संविधान के अनुकूल है या नहीं क्योंकि उसके पास संविधान के मूलभूत ढांचे की सुरक्षा का अधिकार है। परिणाम जो भी हो, इसकी आने वाले चुनावों में प्रमुख मुद्दों में से एक बनने की सम्भावना है। इससे राफेल सौदे जैसे कुछ अन्य मुद्दे पृष्ठभूमि में चले जाएंगे। इसके साथ ही सरकार आने वाले चुनावों के लिए चर्चा के केन्द्र में मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए कुछ और ऐसी हैरानीजनक कार्रवाइयों के साथ आगे आ सकती है, जैसे कि किसानों के लिए न्यूनतम आय तथा न्यूनतम पैंशन में वृद्धि।-विपिन पब्बी


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