पुलिस व न्यायालयों में प्रचलित उर्दू शब्दों की प्रासंगिकता

punjabkesari.in Sunday, Apr 23, 2023 - 05:28 AM (IST)

भारतीय संस्कृति शिक्षा व भाषा पर विदेशी आक्रमणकारियों का विशेष व विपरीत प्रभाव हमेशा से  रहा है तथा सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रयासों के  बावजूद भी देश के कई विभागों विशेषतय: पुलिस व राजस्व जैसे महत्वपूर्ण विभागों में अभी भी  कई विदेशी शब्दों का ही प्रयोग किया जाता है। यह शब्द पुलिस की जुबान पर तो इस तरह से घर कर गए हैं कि उनसे मोह टूट ही नहीं पा रहा हैं। 

वास्तव में पूर्व औपनिवेशिक भारत की पहचान स्वदेशी शिक्षा प्रणाली ही थी क्योंकि देश गुलाम था तथा सभी हिन्दू व मुस्लिम एक ही भारत देश के निवासी थे तथा स्वाभाविक है कि हिन्दी भाषा के साथ-साथ उर्दू व फारसी भाषा का भी प्रयोग होता रहा है। अंग्रेज लोग तो केवल अपनी पाश्चात्य भाषा इंगलिश को ही बढ़ावा देना चाहते थे मगर वे भारत में पहले से बोली जा रही भाषाओं के बीच में किसी भी प्रकार की लकीर नहीं खींचना चाहते थे। इसके अतिरिक्त यह बात भी सच है कि 17 वीं शताब्दी से पहले भारत में मुस्लिम-मुगल सुल्तानों व राजाओं का ही आधिपत्य था तथा उन्होंने हिन्दी व संस्कृत जैसी भाषाओं को तरजीह न देकर उर्दू व फारसी को ही आगे बढ़ाया तथा स्कूलों-कालेजों में वर्नैकुलर भाषा का ही प्रयोग किया गया। 

इन शासकों ने राजस्व व पुलिस जैसे महत्वपूर्ण विभागों में केवल ऊर्दू का ही प्रयोग किया तथा हिन्दी भाषा का तो नाममात्र प्रयोग ही किया जाता रहा है। यदि देश की स्वतंत्रता से पहले का थानों में रखा हुआ रिकार्ड देखें तो पता चलता है कि पुलिस का सारा काम उर्दू भाषा में ही किया जाता था। देश की आजादी के बाद भले ही हिन्दी भाषा का प्रयोग किया जाने लगा मगर फिर भी पुलिस व राजस्व जैसे विभागों की प्रशासनिक भाषा के रूपांतरण की तरफ उचित ध्यान नहीं दिया गया। 

भारत में हिन्दी को भले ही वर्ष 1950 में प्रशासनिक भाषा का दर्जा दे दिया गया था  मगर प्रथम राजभाषा आयोग, जोकि वर्ष 1955 में बनाया गया था, ने अपना प्रतिवेदन वर्ष 1956 में प्रस्तुत किया। हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं तथा  इसी तरह हिन्दी दिवस 14 सितम्बर व अंतर्राष्ट्रीय  हिन्दी दिवस 10 जनवरी को व्यापक स्तर पर मनाया जाने लगा है। इसके अतिरिक्त कर्मचारियों को भी हिन्दी का प्रयोग करने के लिए कई प्रकार के प्रोत्साहन भी दिए जाने लगे हैं मगर इन सब के बावजूद भी पुलिस विभाग में अनेकों शब्द परम्परागत  ढंग से उर्दू में  ही प्रयोग किए जा रहे हैं। 

पुलिस की कार्य प्रणाली में प्रयुक्त किए जा रहे कुछ शब्दों का विवरण इस प्रकार से है-रोजनामचा (दैनिक कार्रवाई), देहाती नालसी (घटनास्थल), खात्मा (चालान न बनाना), हवाले  साना (पुलिस की रवानगी का विवरण), माल वाजयाफ्ता (जब्त माल का विवरण), मुचलका (बन्ध पत्र),  जमानत (बेल प्रतिभूति),बरी होना (दोष मुक्त), हवालाती इश्तिहार (उद्घोषणा), हिरासत (अभिरक्षा), फरियादी, (शिकायतकत्र्ता), मुलजिम (आरोपी), मुजरिम (दोष सिद्धि), इस्तगासा (केस पंजीकृत किए बिना की गई कार्रवाई), मुल्तवी (स्थगित करना), जिरह (बहस), इजरा अमल करना), तलवी (सूचना प्रेषित), प्यादा (सूचना देने वाला कर्मचारी), मुंशी (क्लर्क), मुंसिफ (न्यायाधीश), दरख्वास्त (निवेदन), पतारथी (अपराध को ज्ञात करने वाला प्रयास), गुनाह (अपराध), हस्वतलविदा  (पूछताछ के लिए बुलाना), तहरीर (आवेदन), दरयाफ्त (पूछताछ), फर्द (ज्ञापन- मैमो),  जैल (गांवों का समूह)  इत्यादि कई ऐसे शब्द हैं जिन्हें आज की  युवा पीढ़ी नहीं समझ पाती है। ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता पाने के लिए व मुस्लिम समुदायों में जागरूकता पैदा करने के लिए मुसलमानों द्वारा इसका व्यापक प्रयोग किया गया था मगर  अब देश आजाद है तथा लोगों का रुझान अन्य भाषाओं  की तरफ बढ़ता जा रहा है। 

इस संबंध में कुछ एक सुझाव इस तरह से हैं :
1. सरकार व उच्चतम न्यायालय की तरफ से संबंधित विभागों को उचित हिदायतें होनी चाहिएं तथा इनकी  पालना भी करवाई जानी चाहिए।
2. प्रशिक्षण संस्थानों में प्रचलित व  सिखाए जा रहे शब्दों में परिवर्तन लाना चाहिए। 
3. पुलिस अधीक्षकों को स्वयं इस संबंध में ध्यान देना चाहिए तथा अवहेलना  करने वाले कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहराना चाहिए।
4. थाना में तैनात मुंशियों व थाना अधिकारियों को प्राथमिकी लिखते समय हिन्दी व क्षेत्रीय शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए उचित दिशा निर्देश दिए जाने चाहिएं।-राजेन्द्र मोहन शर्मा 
डी.आई.जी. (रिटायर्ड)


सबसे ज्यादा पढ़े गए