जम्मू-कश्मीर में हाल की घटनाएं आतंकवाद के बुझते अंगारे हैं

punjabkesari.in Monday, Sep 18, 2023 - 04:30 AM (IST)

आम जनता का मानना है कि 5 अगस्त 2019 के बाद अनुच्छेद 370 में संशोधन के बाद अलगाववादियों के खिलाफ की गई बड़ी कार्रवाई से जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य हो गई है। हालांकि यह कहना गलत होगा कि जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित छदम युद्ध की समस्या पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। पिछले लगभग 6 महीनों में पीर पंजाल रेंज के ठीक उत्तर और दक्षिण क्षेत्र में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों के साथ मुठभेड़ अक्सर होती रहती है। नागरिकों की भौंहें तन गई हैं क्योंकि सेना ने इन घटनाओं में कई बहादुर सैनिकों को खो दिया है जो हाल ही में 13 सितम्बर को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के जंगली कोकरनाग क्षेत्र में हुई थीं। 

यह घटना अधिक असाधारण थी क्योंकि घातक हताहतों में कमांडिंग ऑफिसर (सी.ओ.) एक युवा कंपनी कमांडर थे जिन्होंने अपनी यूनिट 19 राष्ट्रीय राइफल्स द्वारा शुरू किए गए आप्रेशन के लिए सभी खुफिया जानकारी तैयार की थी। एक मुठभेड़ में 3 अधिकारियों का हताहत होना और वह भी कार्रवाई के शुरूआती हिस्से में असामान्य है लेकिन भारतीय सेना ने पहले भी कार्रवाई में अपने सी.ओ. खोए हैं। अप्रैल 2020 में राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर और एक युवा मेजर कार्रवाई में मारे गए। उपरोक्त कथा का संदर्भ महत्वपूर्ण है क्योंकि आम जनता की धारणा है कि 5 अगस्त 2019 के बाद, अनुच्छेद 370 में संशोधन के बाद, अलगाववादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के साथ जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य हो गई है। इस धारणा ने केंद्र, केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन के साथ-साथ सुरक्षा बलों से भी अवास्तविक उम्मीदें बढ़ा दी हैं। इसमें स्पष्टीकरण की जरूरत है। हाल की घटनाएं आतंकवाद के बुझते अंगारे हैं। हालांकि पाकिस्तान उन्हें फिर से मजबूत करने का प्रयास कर रहा है। 

अनुच्छेद 370 में संशोधन के बाद 4 वर्षों में हमने पाकिस्तान के छदम युद्ध नैटवर्क को बेअसर करने, ओवर ग्राऊंड वर्कर्स (ओ.जी.डब्ल्यू.) को लक्षित करने, घुसपैठ को कम करने, स्थानीय भर्ती को कम करने और तेजी से विकास को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करके बहुत कुछ हासिल किया है। हालांकि यह कहना गलत होगा कि जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित छदम युद्ध की समस्या पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। पाकिस्तान ने 30 वर्षों से अधिक समय से छदम युद्ध के संचालन में संसाधन, समय, ऊर्जा और जन शक्ति का निवेश किया है। यह आसानी से हार मानने वाला नहीं है। हालांकि इसे पुन: मूल्यांकन और नए अवसरों की तलाश के लिए छोटे-छोटे ब्रेक लेने पड़ सकते हैं। 

5 अगस्त 2019 के बाद हिंसक घटनाओं में कमी देखी गई जिससे लोगों में यह अवधारणा पैदा हुई कि छद्म युद्ध समाप्त हो गया है। कश्मीर में जुटाए गए मेरे अनुभव से यह बात सामने आई है कि हिंसा की अनुपस्थिति का मतलब सामान्य हालात नहीं हैं। सामान्य हालात के कई अपवाद हैं। जम्मू-कश्मीर के वर्तमान लैफ्टिनैंट गवर्नर की निगरानी में जम्मू-कश्मीर ने कुछ अच्छे कार्य किए हैं जिससे लोगों के सुर बदले हैं। 30 वर्षों से ज्यादा समय के आतंकवाद और छद्म युद्ध ने एल.ओ.सी. के साथ-साथ घाटी और जम्मू क्षेत्र में गुप्त नैटवर्क पैदा किए हैं। सामान्य हालात पाने के लिए अभी कुछ और समय लगेगा और पाकिस्तान अलगाववाद को बढ़ाने का और प्रयास करेगा। 

आतंकवाद को देखने के 2 नजरिए  हैं। पहला पेशेवर सैनिक के नजरिए से इसको देखना और दूसरा है भारतीय नागरिक के नजरिए से इसको देखना जो हमले की प्रकृति से भली-भांति वाकिफ नहीं हैं। घाटी के नागरिक यह भी नहीं जानते कि ऐसी समस्याओं से कैसे पार पाया जाए। भारतीय नागरिकों के लिए घाटी में घटी कोई भी घटना लोगों के मनों में कड़े संदेश भेजती है। लोग भावुक हो उठते हैं और समझते हैं कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई है। पाकिस्तान आधारित आतंकी हमले से निपटने में अयोग्य साबित होने के बारे में भी देश में आलोचना होती है। आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले कारणों में घुसपैठ और स्थानीय भर्ती शामिल है। इन दोनों में कमी देखी गई है। अब कश्मीर घाटी में घुसपैठ रोधी सिस्टम ज्यादा सशक्त है।

यही कारण है कि जम्मू और पंजाब बार्डर की तरफ आतंकियों की कार्रवाइयां शिफ्ट हो गई हैं। जहां नशा तस्करी, हथियार गिराना और अन्य संयंत्रों की तस्करी आम बात बन गई है। पिछले 30 वर्षों में हमने बहुत ज्यादा सीखा है और अब हमें ऐसे सबक नहीं भूलने चाहिएं। जम्मू-कश्मीर में आज के प्रशासन का बहुसंख्यक हिस्सा बिल्कुल नया है। छोटी अवधि में उन्होंने बहुत कुछ पा लिया है।-सैयद अता हसनैन


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