राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को सोचना पड़ेगा

Monday, Jun 06, 2022 - 04:43 AM (IST)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत जी के ताजा बयान का देश के धर्मनिरपेक्षवादियों, वामपंथियों, समाजवादियों व कांग्रेसियों द्वारा भरपूर स्वागत किया जा रहा है। उन्हें खुशी है कि भागवत जी के इस बयान से देश में अमन-चैन पैदा होगा। हिंसा रुकेगी और हिंदू-मुसलमानों के बीच सौहार्द बढ़ेगा। इन विचारधाराओं के वे लोग, जो कल तक सोशल मीडिया पर संघ और भाजपा के कट्टर हिंदूवाद को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे, आज अचानक भागवत जी के बयान की खुलकर प्रशंसा कर रहे हैं।

भागवत जी ने कहा कि अब संघ किसी मंदिर की मुक्ति के लिए आंदोलन नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि मस्जिदों के नीचे शिवलिंगों को खोजना बंद करें। हालांकि ज्ञानवापी मस्जिद व श्री कृष्ण जन्मस्थान मथुरा के विषय में उनके विचार भिन्न थे। भागवत जी के इस बयान ने हिंदू जनमानस को विचलित कर दिया है, सोशल मीडिया में हिंदुओं की तीखी प्रतिक्रियाएं भी आनी शुरू हो गई हैं।

‘सेव टैंपल कैम्पेन’ नामक संगठन, जो 40,000 मस्जिदों से हिंदू मंदिरों को मुक्त कराने की सूची लेकर बैठा है और लगातार उनके विषय में जानकारियां प्रकाशित करता रहता है, उसने तो इस बयान को हिंदुओं के साथ धोखा और ‘अंतर्राष्ट्रीय मुस्लिम संगठनों के साथ करार’ बताया है। देश के हिंदू संत भी इस वक्तव्य से बहुत आहत हैं और इस विषय पर माननीय भागवत जी से गंभीर वार्ता करने की तैयारी कर रहे हैं। वृंदावन के सोहम आश्रम के विरक्त संत त्यागी बाबा का कहना है, ‘‘भागवत जी के इस बयान से तो यह तय हो गया कि अब हिंदू राष्ट्र का हमारा स्वप्न अधूरा रह जाएगा और अब भारत कभी हिंदू राष्ट्र नहीं बन पाएगा।’’ 

यहां यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि भागवत जी को अचानक संघ और भाजपा की धारा के विरुद्ध यह बयान क्यों देना पड़ा? पिछले 32 वर्षों से भाजपा, संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों, जैसे विहिप आदि ने देश भर में हिंदू राष्ट्र बनाने का एक सघन अभियान चलाया हुआ है। 1990 की विहिप की दिल्ली के बोट क्लब पर हुई उस विशाल रैली को याद करें, जिसमें लगभग 10 लाख हिंदू दिन भर मंच से भाजपा व संघ के नेताओं का आह्वान सुनते रहे थे, ‘हिंदू राष्ट्र बनाना हमको, हिंदुस्तान हमारा।’ मशहूर सिने संगीतकार रविंद्र जैन का यह गाना, ‘राम जी की सेना चली’ तो इतना प्रभावी हो गया कि लाखों हाथ अति उत्साह में त्रिशूल और भाले लेकर हवा में लहराने लगे। 

इसके बाद तो देश के हर गली मोहल्ले में संघ परिवार ने घर-घर जाकर हिंदू राष्ट्र बनाने की अलख जगानी शुरू कर दी। उनके ही इस प्रयास का यह परिणाम है कि आज भारत के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री, तीनों संघ परिवार से हैं। आज हिंदुओं का बहुसंख्यक हिस्सा यह तय कर चुका है कि अब भारत हिंदू राष्ट्र बन कर रहेगा। 

पिछले 8 वर्षों में देश में हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए जो सक्रियता संघ और भाजपा ने दिखाई उसका भारी असर पड़ा है। फिर वह चाहे गोरक्षा का मामला हो, मॉब लिंचिंग, मस्जिदों पर भगवा झंडे फहराने की कोशिशों, बॉलीवुड के मुसलमान सितारों की फिल्मों के बहिष्कार, तबलीगी जमात को भारत में कोरोना फैलने के लिए जिम्मेदार ठहराने, सद्गुरु जग्गी वासुदेव का ‘सेव टैंपल कैम्पेन’ के समर्थन में लगातार बयान देना, आर्यन खान को अंतर्राष्ट्रीय ड्रग माफिया का सदस्य बता कर जेल में डालने,‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्म को संघ व भाजपा सरकार द्वारा प्रोत्साहित कर जनता के बीच लोकप्रिय बनाने में सक्रिय भूमिका निभाने या ज्ञानवापी मस्जिद व श्री कृष्ण जन्मभूमि के साथ ही देश भर की मस्जिदों व कुतुब मीनार जैसी इमारतों से हिंदू मंदिरों को मुक्त कराने का मामला हो, इन सब मुद्दों ने हिंदू जनमानस को गहराई तक प्रभावित किया है। 

सबसे ज्यादा असर तो हिंदुओं की युवा पीढ़ी पर पड़ा है, जिसके ज्ञान का स्रोत कुछ चुनिंदा टी.वी. चैनल और सोशल मीडिया है। रोजगार के अभाव में खाली बैठे ये युवा अब इतने उत्तेजित हो चुके हैं कि बात-बात पर हिंसक हो जाते हैं। कानपुर और बरेली के दंगे और पिछले वर्षों में इसी तरह के विषयों पर हुई हिंसक वारदातें इसका परिणाम हैं। ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’ जैसे नारों ने आग में घी का काम किया है। सांप्रदायिक हिंसा के लिए पहले से बदनाम रहे मुसलमानों की भी युवा पीढ़ी इस माहौल में और ज्यादा उत्तेजित और आक्रामक हुई है। आने वाले समय में इस सब से देश की कानून व्यवस्था को बनाए रखना बहुत बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में सरकार चलाना भी मुश्किल हो जाएगा, जिसका भरपूर लाभ विपक्षी दल आने वाले चुनावों में उठाएंगे। इसी खतरे को भांप कर माननीय भागवत जी ने यह बयान दिया है, ताकि भाजपा की सरकारों को बचाया जा सके। 

पहले संघ और भाजपा के बीच सम्मानजनक दूरी रहती थी। संघ की घोषित नीति थी कि उसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। वह केवल सामाजिक संगठन है। पर पिछले कुछ वर्षों में यह अंतर समाप्त हो गया है। अब भाजपा का संघ में विलय हो गया है। भाजपा वही करती है जो संघ चाहता है। इसलिए इस पूरे संघ व भाजपा परिवार के मुखिया होने के नाते माननीय भागवत जी को यह बयान देना पड़ा, ताकि हालात बेकाबू होने से पहले संभल जाएं। पर भाजपा और संघ के शुभचिंतकों, हिंदू संतों और हिंदुओं के बहुसंख्यक हिस्से को इस बयान से भाजपा और संघ के अस्तित्व पर खतरा नजर आ रहा है। इस वर्ग का मानना है कि जिस विचारधारा को लेकर संघ पिछले 100 वर्षों से चला, उसे ही इस तरह शिखर पर पहुंचने के बाद, नकार देने से संघ और भाजपा की सार्थकता क्या रह जाएगी? 

पिछले कुछ वर्षों में विकास के मुद्दों और सामाजिक सुरक्षा के सवालों को उठने से पहले ही संघ की इस विचारधारा ने हमेशा पीछे धकेला। हिंदू गर्व से कहता है कि हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए वह महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याओं को भी भूलने को तैयार है। ऐसे में भागवत जी का यह बयान तपते तवे पर ठंडे पानी की बौछार जैसा है। यहां यह याद रखना असंगत न होगा कि पिछले दशकों में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन चलाने वाले प्रांतीय और राष्ट्रीय नेता जब सत्ता पाने के बाद भ्रष्टाचार को नहीं रोक पाए और उसमें स्वयं भी लिप्त हो गए तो भ्रष्टाचार का मुद्दा ही समाप्त हो गया। इसी तरह इन परिस्थितियों में अब इस बात में कोई संदेह नहीं कि हिंदू राष्ट्र बनाने का मुद्दा भी समाप्त हो जाएगा। इस पर देश में हिंदुओं की क्या प्रतिक्रिया होती है और संघ परिवार उससे कैसे निपटता है, यह तो वक्त ही बताएगा।-विनीत नारायण          
 

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