राम राज्य सब को अपनी मर्यादाओं में रहने का आदेश देता है

Saturday, Jan 20, 2024 - 06:40 AM (IST)

1556 से 2024 तक के पांच सौ वर्षों का इतिहास अयोध्या में राम जन्म भूमि मुक्ति का कार्यकाल रहा है। इस राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में राजा से रंक तक ने अपनी आहूति डाली है। संतों, महंतों, जोगियों, संन्यासियों और बैरागियों ने इसे अपनी श्रद्धा और निष्ठा का प्रश्न माना। इस रामजन्म भूमि मुक्ति संघर्ष में हिंदुओं, सिखों, निहंग सिंहों ने अपने-अपने ढंग से इसमें भाग लिया। इस मुक्ति आंदोलन में कई राम भक्तों ने शहीदियां प्राप्त कीं। 

मैंने अपनी आयु में राम जन्म भूमि आंदोलन को फलते-फूलते और सफल होते देखा। यह मेरा सौभाग्य ही कहिए कि विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने संयुक्त प्रयासों से इस मुक्ति आंदोलन को जन-जन का आंदोलन बना दिया। 1990 और 1992 के जन आंदोलनों में मैं स्वयं साक्षी ही नहीं अपितु मुक्त भोगी रहा हूं। दोनों आंदोलनों में मैंने लखनऊ से अयोध्या तक की पैदल यात्रा की। जनता का भारी उत्साह देखा। सहारनपुर और मेरठ की जेलों में रहा। अयोध्या को आने-जाने वाले सभी मार्गों को बंद होते हुए देखा। मुक्ति आंदोलन में मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या को फौजी-छावनी में तबदील कर रखा था। भारी-भरकम बैरीकेडों द्वारा मंदिर-परिसर को घेर रखा था। परिंदा तक तो पर नहीं मार सकता था। दफा 144 लागू कर रखी थी। फिर भी लाखों कार सेवक मंदिर द्वार तक पहुंचने में सफल हो गए। 

मुलायम सिंह यादव ने निहत्थे कार सेवकों पर गोलियां चलार्ईं। कई शहीद हुए और कई कार सेवक जख्मी हुए परन्तु कार सेवकों का जोश, श्रद्धा और विश्वास अटूट बना रहा। वास्तव में राम जन्म भूमि मुक्ति आंदोलन को जन-जन का आंदोलन बनाने का श्रेय भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री लाल कृष्ण अडवानी की रथ-यात्राओं को देना होगा। लालू प्रसाद यादव द्वारा राम रथ यात्रा को रोकना,श्री लाल कृष्ण अडवानी को गिरफ्तार करना इस आंदोलन में आग में घी डालना सिद्ध हुआ। 

संगठनात्मक दृष्टिकोण से स्वर्गीय अशोक सिंघल का इस मंदिर मुक्ति आंदोलन को अहिंसात्मक बनाए रखने का श्रेय जाता है। वयोवृद्ध भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी कार सेवकों के लिए वंदनीय हैं जिन्होंने कार सेवकों की कठिन परिस्थितियों का नेतृत्व किया। सुश्री ऋतंभरा और उमा भारती का यह नारा कि ‘गली-सड़ी इस बाबरी मस्जिद को एक धक्का और दो’। इन दोनों साध्वियों ने अपने प्रखर भाषणों द्वारा स्थान-स्थान पर राम नाम की आग बरसा दी। 

लखनऊ से अयोध्या तक पैदल रास्तों पर साधारण नर-नारियों द्वारा नाश्ते, दोपहर के खाने और रात भर के ठहरने, खाने के प्रबंध अद्भुत दृश्य थे। रास्ते में पड़ते मंदिरों, मठों और डेरों के प्रमुखों द्वारा कार सेवकों के सोने का प्रबंध अपने-आप में सचमुच अभिनंदनीय था। किसी भी कार सेवक को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेशों की परवाह न थी। 

कार सेवकों ने अपनी मजबूत मुट्ठियों और दृढ़ इरादों से बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। आश्चर्य से मैं उस बाबरी मस्जिद के ध्वस्त दृश्य को देख रहा था। किसी की कोई सुन नहीं रहा था। कार सेवक दौड़ते-हांफते बाबरी मस्जिद में दबे अवशेष निकाल रहे थे। कोई गुम्बद, कोई पत्थरों पर उकेरी गई लिखितों, कोई प्राचीन प्रतिमाओं को इधर से उधर ले जा रहा था। सब तरफ अफरा-तफरी का माहौल था। आश्चर्य यह कि लाखों की संख्या में कार सेवकों का आना-जाना लगा हुआ था। 

ज्यों ही मस्जिद को तोड़ देने की खबर तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव तक पहुंची, उन्होंने उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की भाजपा सरकार को भंग कर दिया कि कल्याण सिंह बतौर मुख्यमंत्री अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी को निभाने में असफल रहे हैं। वैमनस्य बढ़ गया। ङ्क्षहदू-मुस्लिम दंगे हुए। कई मासूम इन दंगों में मारे गए। इसे देश का सौभाग्य कहिए कि देश के सुप्रीमकोर्ट ने सर्वसम्मत राय से यह स्पष्ट कर दिया कि राम मंदिर बनाया जाए जहां भगवान राम का जन्म हुआ था और मुस्लिम समुदाय को किसी अन्य जगह दी जाए जो पांच एकड़ से कम न हो। 

बाबरी मस्जिद के पैरोकारों और राम जन्म भूमि न्यास के अधिकारियों को सहर्ष स्वीकार देशवासियों ने सर्वोच्च न्यायालय के सर्वसम्मत दिए गए निर्णय से सुख की सांस ली। देश के प्रधानमंत्री, यू.पी. के मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के माननीय सर संघचालक ने राम के भव्य मंदिर की मंत्रोच्चारण के बीच आधारशिला रखी। अब 22 जनवरी को इस भव्य मंदिर में राम लला की मूॢत की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यू.पी. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, लाल कृष्ण अडवानी इस अवसर के प्रमुख यजमान होंगे और फिर यह भव्य राम मंदिर जनता को समॢपत कर दिया जाएगा। अब यह भव्य मंदिर सब धर्मों, सब सम्प्रदायों और सर्व साधारण जनता की पूंजी होगी।

आखिर राम में क्या अद्भुत है कि उसके मंदिर की मुक्ति के लिए 500 वर्षों से भी लम्बा संघर्ष चलता रहा? आखिर यह ‘रामराज्य’ है क्या, जिसकी कल्पना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने की? कुछ तो विशेष उस राम में अवश्य होगा। दुनिया राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहती है। बीमारी और अवसाद के क्षणों में मैंने राम के चरित्र का स्थूल रूप से ही ङ्क्षचतन किया है। भला मेरे जैसा मूर्ख उस राम को क्या समझे। सिर्फ ‘नेति-नेति’ ही पुकार सकता हूं। राम शौर्य, सौंदर्य और समता की मूर्ति हैं। क्या हम जैसे तथाकथित नेता ‘राम राज्य’ की कल्पना ही करते रहेंगे? राम ने उत्तर से दक्षिण तक वनवास को 14 वर्षों में भारत को अपने पैरों से नापा। यू.पी., आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश, केरल तक भारत की धरती को नापा। हनुमान जैसे बलशाली सेना नायक को अपना सेवक बनाया। राम हमारे आदर्श हैं और सारे विश्व को ‘राम राज्य’ की कल्पना को साकार करना सभी राजनेताओं का कत्र्तव्य है। प्रभु! उस  राम राज्य की कल्पना को साकार करो। 

राम के राज्य में कोई मूर्ख या अंगहीन नहीं था। सब उदार थे और सच्चे मार्ग के अनुगामी थे। राम राज्य में किसी को सजा देना संन्यासियों के हाथ में था। शेर, हाथी और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते थे। व्यापारी सच का व्यापार करते थे। प्रकृति मर्यादा में चलती थी। वृक्ष रसमय फल और फूल देते थे। नदियां शीतल जल लिए बहती थीं। दरिया कभी अपनी सीमाओं को नहीं तोड़ते थे। यह सब क्यों होता था? क्योंकि राम स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम थे। राम प्रजा के सेवक थे। प्रजा उनसे स्नेह करती थी। राम कत्र्तव्यनिष्ठ थे। संयम राजनीति में उनका गुण था। आज राजा स्वयं मर्यादा में नहीं रहता परिणामस्वरूप प्रजा और प्रकृति भी मर्यादा में नहीं रहते। जैसे राजा, वैसे प्रजा। राम राज्य सब को अपनी मर्यादाओं में रहने का आदेश देता है।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब) 

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