रामनवमी पर हिंसा भयभीत करने वाली

punjabkesari.in Monday, Apr 03, 2023 - 05:12 AM (IST)

देश के अलग-अलग इलाकों से रामनवमी उत्सव से जुड़ी हिंसा किसी भारतीय को भयभीत करने के लिए पर्याप्त है। हिंसा रामनवमी उत्सव के पहले,शोभायात्रा के दौरान और रामनवमी के अगले दिन यानी जुम्मे की नमाज के बाद हुई और कई स्थानों पर इन पंक्तियों के लिखे जाने तक थमी नहीं है। 

लगातार पिछले 3 वर्षों से रामनवमी पर हिंसा की घटनाएं हुई हैं। यह प्रवृत्ति की तरह स्थापित हो रही है तो विचार करना होगा कि आखिर इसके पीछे कौन शक्तियां हैं? महाराष्ट्र के संभाजीनगर (पुराना नाम औरंगाबाद), जलगांव, पश्चिम बंगाल के हावड़ा और इस्लामपुर, गुजरात के वडोदरा तथा बिहार के सासाराम और नालंदा हिंसा की गिरफ्त में आए हैं। बिहार और बंगाल की हिंसा तो सबसे डरावनी है। जिस संभाजीनगर के किराडपुरा के प्रसिद्ध राम मंदिर के पास से हिंसा की पहली खबर आई वहां आग की लपटें ऐसे लग रही थीं जैसे कोई बड़ी आगजनी हो। 

ऐसा ही दृश्य हमें अन्यत्र भी देखने को मिला है। ऐसी धार्मिक यात्राओं की सुरक्षा व्यवस्था स्थानीय पुलिस प्रशासन हर संभव बेहतर करने की कोशिश करती है। यही नहीं उत्सव के पहले और बाद में उत्पाद उपद्रव या हिंसा के खतरों का आकलन करते हुए भी सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है। 

संभाजीनगर के किराडपुरा के प्रसिद्ध राम मंदिर के बारे में सूचना है कि वहां रात में राम कीर्तन हो रहा था जिसे लेकर दूसरे समुदाय के कुछ युवकों ने आपत्ति प्रकट की और वहां उपस्थित दूसरों के साथ उनकी झड़प होने लगी। यह झड़प कैसे हुई इसकी विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। किंतु सैंकड़ों की संख्या में अगर लोग पत्थर, बोतल यहां तक कि बमों से हमले करने लगें तो इसे तात्कालिक झड़प से उत्पन्न गुस्सा नहीं कहा जा सकता। 

पुलिसकर्मियों पर भी पथराव हुए एवं पैट्रोल बम फैंके गए। अनेक पुलिस वाले घायल हो गए। जिस तरह यहां पुलिस की गाडिय़ों से लेकर अन्य वाहन, दुकानें आदि आग के हवाले हुए, क्षतिग्रस्त किए गए और जितनी संख्या में सड़कों पर पत्थर, बोतलें आदि देखीं गईं उनका अर्थ बिल्कुल साफ  है । यानी कुछ लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से हमले के लिए पत्थर आदि इकट्ठे किए थे, लोगों को भी तैयार किया था, संभव है इसीलिए कुछ लोगों ने आरंभ में झंझट किया और फिर उसके बहाने पूरी योजना को अंजाम दे दिया। 

महाराष्ट्र के जलगांव में तो बाद में भी हिंसा की घटनाएं हुईं। हावड़ा में तस्वीर सबसे भयावह रही। पुलिस प्रशासन से बातचीत के आधार पर अलग-अलग रामनवमी शोभायात्रा निकालने की बजाय 42 संगठनों ने एक साथ शोभायात्रा निकाली। इसका मार्ग अवनी मॉल के पास के नरसिंह भगवान मंदिर से प्रारंभ होकर हावड़ा मैदान तक तय था। यात्रा शाम को लगभग 5 बजे प्रारंभ हुई थी और शांतिपूर्ण चलती रही। 

जब हावड़ा मैदान से नजदीक के संध्या बाजार विस्तार में पहुंची तो अचानक भवनों की छतों तथा आसपास की गलियों से ईंट, पत्थर, पैट्रोल व स्पिरिट भरी बोतलों से हमले हुए, बम भी चलाए गए। स्वाभाविक ही अचानक आक्रमण से शोभायात्रा में सम्मिलित लोग इधर-उधर भागने लगे। उसके बाद भी हिंसा व आगजनी जारी रही। भीड़ में घुसकर उपद्रवी तत्वों ने वाहन दुकान सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुक्सान पहुंचाना शुरू किया। 

हमारे देश की पुरानी समस्या है कि जब भी इस तरह की घटनाएं होती हैं एक वर्ग भाजपा, संघ और उनसे जुड़े संगठनों को निशाने पर लेता है। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इस पर फोकस करने से ज्यादा पूरा मामला राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में परिणित हो गया है। सत्य कभी जटिल नहीं होता है। यह खतरनाक स्थिति है। सच्चाई कभी जटिल नहीं होती। हम अपने व्यवहार से उसे जटिल बना देते हैं। इन घटनाओं का कटु सत्य यही है कि रामनवमी के जुलूस पर हमले हुए हैं। पिछले वर्ष भी रामनवमी, हनुमान जयंती एवं नववर्ष की शोभायात्राओं पर हुए हमलों की छानबीन से यही बातें सामने आईं कि तैयारी पहले से की गई थी। 

रामनवमी के पहले ममता बनर्जी का बयान था कि मुस्लिम इलाकों में रामनवमी का जुलूस गया और वहां हंगामा हुआ तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा, ‘मैं रामनवमी जुलूस नहीं रोकूंगी लेकिन याद रखना, हम भी मार्च करेंगे, आप भी। रमजान का महीना भी चल रहा है। अगर तुम किसी मुस्लिम इलाके में जाकर हमला करते हो तो याद रखना, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।’ जरा सोचिए यह बयान किस मानसिकता का प्रतीक है? क्या दूसरी ओर के उपद्रवी तत्वों का हौसला इससे नहीं बढ़ा होगा? क्या उन्हें नहीं लगा होगा कि हमने हमला कर दिया तब भी सरकार उनके ही विरुद्ध कार्रवाई करेगी? 

ऐसा लग रहा है जैसे रामनवमी शोभायात्रा निकालने वाला हिंदू समाज दंगाई और हिंसक हो। हिंसा के बाद भी उनका तेवर यही है। शोभायात्रा निकालने वाले को ही ङ्क्षहसा के लिए दोषी ठहरा रहे हैं। इसमें पुलिस प्रशासन भी निष्पक्षता से छानबीन नहीं कर पाएगा। होना तो यही चाहिए कि मुख्यमंत्री के नाते ममता बनर्जी हमलावरों के विरुद्ध आक्रामक होतीं। बिहार में भी सत्तारूढ़ घटक के प्रवक्ता का बयान है कि बिहार को गोधरा यानी गुजरात नहीं बनने देंगे। इसके तात्पर्य क्या हैं? देश में सभी समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध रहे इसके लिए सजग सक्रिय रहना हम सबका दायित्व है। किंतु यह एकपक्षीय नहीं हो सकता। 

एक भारतीय होने के नाते हम सबकी चाहत होगी कि ऐसी घटनाएं न हों, धार्मिक सद्भाव का वातावरण रहे । इन घटनाओं को देखने के बाद हमारा आपका निष्पक्ष निष्कर्ष क्या होगा? ये कौन है जिन्हें रामनवमी, हनुमान जयंती, नव वर्ष या ऐसी शोभायात्रा या उत्सव सहन नहीं होते? हिंसा पूरी तरह रुके, शांति स्थापित हो इसकी कोशिश सरकार समाज सबको करनी होगी। यह यूं ही नहीं होगा। पता करना होगा कि क्या देशभर की हिंसा के पीछे कोई संबंध है ? कोई केंद्रीय सूत्र भी है? आखिर सारी हिंसा की प्रकृति एक ही है।-अवधेश कुमार
 


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