राहुल को राहत से बदलेगा राजनीतिक परिदृश्य

punjabkesari.in Tuesday, Aug 08, 2023 - 05:30 AM (IST)

राहुल गांधी के मोदी सरनेम संबंधी बयान को आपत्तिजनक मानते हुए भी सुप्रीम कोर्ट ने मान-हानि मामले में उन्हें अधिकतम 2 वर्ष की सजा दिए जाने पर जो सवाल उठाए हैं, उनका कानूनी ही नहीं, राजनीतिक असर भी दूरगामी होगा। निचली अदालतों द्वारा अधिकतम सजा सुनाए जाने का कारण न बताए जाने के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी की दोष सिद्धि और सजा पर रोक लगाते हुए जो राहत दी है, उससे उनकी सांसदी बहाली और अगला लोकसभा चुनाव लडऩे का मार्ग प्रशस्त हो गया है। 

इस राहत को संविधान और लोकतंत्र की जीत बताते हुए कांग्रेस ने जिस तरह भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा है, उससे साफ है कि इस मुद्दे पर राजनीति और गर्माएगी। ध्यान रहे कि मोदी सरनेम संबंधी बयान पर सूरत की अदालत में यह मानहानि मुकद्दमा भाजपा के विधायक एवं पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने दायर किया, जिनके मोदी सरनेम की वास्तविकता पर ही सवाल उठाते हुए राहुल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में यह भी कहा कि यह सरनेम किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं है। मसलन, सोहराब मोदी पारसी थे, सैय्यद मोदी मुसलमान, जबकि ललित मोदी मारवाड़ी समुदाय से आते हैं। 

तकनीकी दृष्टि से यह सही है कि राहुल को सूरत की अदालत ने 2 वर्ष की सजा सुनाई और लोकसभा सचिवालय ने नियमानुसार तत्काल उनकी सदस्यता समाप्त कर दी। उनसे आनन-फानन में ही सांसद वाला बंगला भी खाली करा लिया गया, लेकिन इस पूरे प्रकरण के मूल में राजनीति को देख-समझ पाना मुश्किल भी नहीं। इसलिए राहुल को इस राहत पर कांग्रेस और भी आक्रामक होगी। कांग्रेस राहुल समेत नेहरू परिवार को निशाना बनाए जाने को मुद्दा बनाते हुए मतदाताओं की सहानुभूति हासिल करना चाहेगी, जबकि भाजपा इसे विशुद्ध न्यायिक प्रक्रिया बताते हुए राहुल के विरुद्ध लंबित अन्य मानहानि मामले भी गिनाएगी। 

संकेत साफ है संसद से सड़क तक सत्तापक्ष और विपक्ष में टकराव और बढ़ेगा ही। यह समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि न सिर्फ राहुल, बल्कि कांग्रेस का मनोबल सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत से 7वें आसमान पर है, जिसका असर भाजपा ही नहीं, खुद विपक्षी एकता पर भी पड़ेगा। भाजपा शुरू से ही मोदी बनाम राहुल के चुनावी मुकाबले को अपने अनुकूल बताती रही है, लेकिन कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा के बाद राजनीतिक परिस्थितियां वैसी नहीं रह गई हैं।
भारत जोड़ो यात्रा से न सिर्फ राहुल गांधी की छवि सुधरी है, बल्कि पस्त हाल कांग्रेस संगठन में नए उत्साह का संचार भी हुआ है। हालांकि गुजरात में कांग्रेस का प्रदर्शन शर्मनाक रहा, पर हिमाचल प्रदेश और फिर कर्नाटक में भाजपा से सत्ता छीनने के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी का पुराना आत्मविश्वास लौटता दिख रहा है। 

बिना व्यापक एकता मोदी की भाजपा को न हरा पाने के अहसास के गहराते जाने के बाद विपक्षी एकता की कवायद ने भी गति पकड़ी है। दूसरी ही बैठक में विपक्ष न सिर्फ अपना कुनबा बढ़ाने में कामयाब रहा है, बल्कि अपने गठबंधन का नामकरण भी इंडियन नैशनल डिवैल्पमैंटल इंक्लूसिव एलायंस करने में सफल रहा, जिसका संक्षिप्त नाम इंडिया बनता है। उम्मीद के मुताबिक इस नामकरण को अदालत में चुनौती भी दे दी गई है। अपने खेमे में सेंधमारी के बीच भी विपक्ष एकता की जिस राह पर चल पड़ा है, उसमें कांग्रेस अग्रिम होते हुए भी नेतृत्व की दावेदारी से अभी तक बचती रही है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट से राहत के बाद मीडिया से बातचीत में राहुल ने याद दिलाया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि कांग्रेस का लक्ष्य सत्ता का नेतृत्व करना नहीं, बल्कि देशहित में भाजपा को हराना है, लेकिन राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि राहुल गांधी की सांसदी बहाली और अगला लोकसभा चुनाव लडऩे का मार्ग प्रशस्त हो जाने के बाद नेतृत्व के मुद्दे पर भी समीकरण बदलेंगे। 

कांग्रेस अभी भी 4 राज्यों  राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में सत्तारूढ़ है। अगर वह इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता बरकरार रखते हुए मध्य प्रदेश में भी सत्ता हासिल कर तेलंगाना में बेहतर प्रदर्शन कर पाती है तो विपक्षी गठबंधन में न सिर्फ ज्यादा सीटों के लिए उसका दबाव बढ़ेगा, बल्कि लोकसभा चुनाव के बाद सरकार बनने की स्थिति में नेतृत्व के लिए भी उसके दावे को नजरअंदाज कर पाना आसान नहीं होगा। 

विपक्षी एकता के सूत्रधार के रूप में नीतीश कुमार नेतृत्व की कतार में आगे समझे जा रहे थे, लेकिन बेंगलुरू बैठक के बाद संदेह और सवाल उठने शुरू हो गए हैं। हालांकि महाराष्ट्र में अपनी पार्टी को ही टूटने से नहीं बचा पाए, पर मराठा क्षत्रप शरद पवार को कम नहीं आंका जा सकता। ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल की सत्ता महत्वाकांक्षाएं भी छिपी नहीं हैं। राजनीति में कुछ भी असंभव या अस्वाभाविक नहीं होता, पर भविष्य से भी पहले अपना अस्तित्व बचाने की मजबूरी में एक होने वाला विपक्ष फिर से बिखराव में निहित खतरों का जोखिम उठाना चाहेगा? 

एन.डी.ए. का चेहरा मोदी होंगे तो ‘इंडिया’ के स्टार प्रचारक निश्चय ही राहुल, जो मोदी और भाजपा पर सबसे ज्यादा मुखर आक्रामक हैं। अब राहुल की भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा चरण भी तय माना जा रहा है, जो पोरबंदर से शुरू होकर अगरतला में संपन्न होगी। इस यात्रा के जरिए इस साल के विधानसभा और अगले साल के लोकसभा चुनाव के लिए माहौल बनाते हुए राहुल की राजनीतिक छवि निखारने का काम भी जारी रहेगा।-राज कुमार सिंह


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