‘महागठबंधन’ बनने को लेकर राहुल आशान्वित लेकिन...

Wednesday, Oct 10, 2018 - 04:38 AM (IST)

क्या 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व विपक्ष का महागठबंधन होगा? फिलहाल कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल यह महसूस करते हैं कि यह केवल चुनावों के बाद की एक व्यवस्था हो सकती है। उदाहरण के लिए राकांपा प्रमुख शरद पवार ने हाल ही में एक न्यूज चैनल से कहा था कि चुनावों (लोकसभा) से पूर्व एक महागठबंधन व्यावहारिक नहीं है। 

माकपा ने पांचों चुनावी राज्यों में गठबंधन करने से इंकार कर दिया है और इसके महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि ‘महागठबंधन’ केवल चुनावों के बाद हो सकता है। आम आदमी पार्टी ने 2019 में किसी भी गठबंधन में शामिल न होने का फैसला किया है। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने घोषणा की है कि वे मध्य प्रदेश में गठजोड़ के लिए कांग्रेस का इंतजार करते नहीं रह सकते। हालांकि बसपा प्रमुख मायावती की ओर से अंतिम शब्द आने बाकी हैं। यद्यपि उन्होंने आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं किया है, मगर लोकसभा चुनावों के बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा है। 

ये तेवर 23 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी एकता की ताकत के शानदार प्रदर्शन के बाद हैं। उस समय समारोह में विपक्षी एकता के नारे लगाने वालों में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी व राहुल गांधी, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल व चन्द्रबाबू नायडू, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती, राकांपा अध्यक्ष शरद पवार तथा राष्ट्रीय लोक दल के नेता अजित सिंह शामिल थे। मगर उसके बाद ‘महागठबंधन’ के विचार में फिलहाल खटास आ गई है। इस बीच क्या गलत हुआ? वित्त मंत्री अरुण जेतली ने इसे अराजक मिश्रण बताया है, जिसके जैसे भारत में पहले भी ‘आजमाए जा चुके तथा असफल हो चुके’ हैं। 

वास्तव में इनके बीच बुनियादी अंतर्विरोध है। विपक्षी दल गणित की बजाय कैमिस्ट्री या सामंजस्य पर अधिक ध्यान केन्द्रित करते हैं। तीसरे, कांग्रेस क्या भूमिका निभाएगी? पार्टी, जिसने 70 वर्षों में से 49 वर्षों तक देश पर शासन किया है, अभी भी अपने शक्तिशाली अतीत की यादों को भुला नहीं पा रही और इसे सीटों के बंटवारे के मामले में और अधिक लचीलापन दिखाना होगा। चौथे, कांग्रेस को क्षेत्रीय सहयोगियों को और अधिक जगह देने की जरूरत है, जहां वह मजबूत है। पांचवें, विपक्षी दलों को भी सीटों के बंटवारे की अपनी मांग को लेकर यथार्थवादी होना चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गठबंधनों के दो स्तरों के महत्व पर जोर दिया है-एक राज्य स्तर पर तथा दूसरा और अधिक महत्वपूर्ण, राष्ट्रीय स्तर पर। जैसी कि आशा की जा रही थी, राज्य स्तरीय गठबंधनों के लिए अभी शुरूआत नहीं हुई है। दरअसल आने वाले विधानसभा चुनावों में विपक्ष में काफी अधिक विखंडन है। 

और तो और, विपक्ष कांग्रेस की नेतृत्व क्षमता में भी विश्वास खोता जा रहा है। मायावती का कहना है कि कांग्रेस अभी युद्ध के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस आम आदमी पार्टी को नहीं चाहती, शिवसेना महाराष्ट्र खेमे में स्वीकार्य नहीं है, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का वामदलों के साथ कोई मेल नहीं है तथा द्रमुक व अन्नाद्रमुक दो अलग छोरों पर हैं। मजे की बात यह है कि सपा तथा बसपा एक साथ आ गई हैं। तृणमूल कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति, बीजू जनता दल, सपा तथा बसपा जैसे कुछ क्षेत्रीय दल कांग्रेस को अलग-थलग करके एक तीसरा मोर्चा बनाना चाहेंगे मगर कांग्रेस के बिना कोई महागठबंधन नहीं हो सकता क्योंकि इसका भाजपा को लाभ होगा।

विपक्ष को एक नए नारे के साथ-साथ एक सशक्त नेता की भी जरूरत है जो उसे एकजुट कर सके। एक आजमाई हुई नेता के तौर पर सोनिया गांधी बेहतर चुनाव हैं क्योंकि वह अधिक स्वीकार्य हैं मगर वह पृष्ठभूमि में चली गई हैं और कमान अपने बेटे को सौंप दी है। यदि अभी भी वह विपक्षी एकता के लिए आगे आती हैं तो सम्भवत: वे सफल हो सकें। मजे की बात यह है कि ए.बी.पी. न्यूज-सी वोटर द्वारा हाल ही में करवाए गए एक चुनावी सर्वेक्षण में दावा किया गया था कि राजग अधिकतर राज्यों में ज्यादातर सीटें जीत लेगा, हालांकि यदि विपक्ष एकजुट हो जाता है तो पंजाब, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश जैसे राज्य कुछ प्रतिरोध दिखा सकते हैं। इसमें भविष्यवाणी की गई है कि राजग को 38 प्रतिशत मत हिस्सेदारी मिलेगी जबकि यू.पी.ए. को 25 प्रतिशत तथा अन्य दलों को 37 प्रतिशत हिस्सेदारी मिलेगी। सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि यदि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा तथा बसपा गठजोड़ करती हैं तो भाजपा को भारी नुक्सान उठाना पड़ेगा। 

एक अन्य ए.बी.पी. न्यूज-सी वोटर सर्वेक्षण के बाद कांग्रेस काफी उत्साह में है, जिसमें भविष्यवाणी की गई है कि पार्टी मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में सत्ता में वापसी कर सकती है, जबकि राजस्थान में यह फिर सत्ता में लौटेगी। इन विधानसभा चुनावों में हार-जीत 2019 के लिए एक ड्रैस- रिहर्सल होगी। हालांकि जब तक भाजपा तथा संयुक्त विपक्ष के बीच सीधी लड़ाई नहीं होती तब तक भाजपा को हटा पाना कठिन होगा। यद्यपि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस बात को लेकर आशान्वित हैं कि ‘महागठबंधन’ एक वास्तविकता बनेगा मगर उससे पहले इसमें कई ‘किन्तु-परंतु’ हैं। अंतत:, जब लोग भाजपा से छुटकारा पाना चाहते हैं, वे एक विकल्प की तलाश में हैं। वह विकल्प अभी उभरना है क्योंकि विपक्ष विभाजित है तथा इसमें बड़ी संख्या में महत्वाकांक्षी नेता हैं। फिलहाल मोदी अभी भी लोकप्रिय हैं और ‘टीना फैक्टर’ यानी किसी विकल्प का न होना उन्हें सत्ता में वापसी में मदद कर सकता है। हालांकि राजनीति में एक सप्ताह लम्बा समय माना जाता है और आम चुनावों में कम से कम 6 महीने बाकी हैं।-कल्याणी शंकर

Pardeep

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