राहुल और कांग्रेस अपने व्यवहार पर पुनर्विचार करें

punjabkesari.in Sunday, Mar 26, 2023 - 04:50 AM (IST)

तो राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म हो चुकी है। सूरत सत्र न्यायालय द्वारा आपराधिक मानहानि मामले में 2 वर्ष की सजा मिलने के पश्चात यही होना था। यह कहना मुश्किल है कि राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों को सूरत के सत्र न्यायालय से इस तरह का फैसला आने की उम्मीद थी या नहीं। उनके पक्ष में बड़े-बड़े वकीलों ने बहस की थी। 

ऐसे अधिवक्ता कम ही होंगे जो अपने मुवक्किल, साथी मित्र, नेता को बताएं कि आपको सजा होने वाली है या हो सकती है। सूरत सत्र न्यायालय द्वारा मानहानि मामले में 2 वर्ष की सजा सुनाना सामान्य घटना नहीं है। भारत की राजनीति में इस तरह के उदाहरण ढूंढने पड़ेंगे। शायद इसके पहले मानहानि मामले में इतनी बड़ी सजा राजनीति में इतने शीर्ष स्तर के व्यक्ति को नहीं हुई । भारतीय दंड संहिता की धारा 504 के तहत 2 वर्ष अधिकतम सजा है। न्यायालय ने अगर राहुल गांधी को अधिकतम सजा का दोषी माना है तो उसकी दृष्टि में उनका अपराध नि:संदेह गंभीर है। 

न्यायालय ने राहुल गांधी को आपस में समझौता करने से लेकर क्षमा मांगने तक का भी सुझाव दिया। ऐसे मामलों में न्यायालय की कोशिश रहती है कि फैसला देने की नौबत न आए। राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों के लिए यह विषय क्षमा मांगने का नहीं बल्कि अपनी लड़ाई पर अड़े रहने का था। अब मामला उच्च न्यायालय में जाएगा। वास्तव में अंतत: उच्च न्यायालय और अगर उच्चतम न्यायालय में मामला गया तो वहां के फैसले पर ही इस मुकद्दमे का भविष्य निर्भर करेगा। इसके साथ राहुल गांधी और कांग्रेस की संपूर्ण राजनीति का विषय जुड़ा है। 10 जुलाई, 2013 को उच्चतम न्यायालय ने 2 वर्ष या उससे अधिक की सजा मिलने पर संसद सदस्यों या राज्य विधायकों की  सदस्यता रद्द करने का फैसला दिया था। न्यायालय ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 84 के प्रावधान को खत्म कर नए प्रावधान जोड़ दिए थे। 

पहले मामला उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय में लंबित होने पर सदस्यता नहीं जाती थी। इस फैसले के बाद कुल 11 नेताओं की सदस्यता सजा मिलने के बाद जा चुकी है। इनमें लालू यादव से लेकर जयललिता, राशिद मसूद आदि शामिल हैं। इस नाते  राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों के लिए संयम और सधे हुए तरीके से काम करने की आवश्यकता है। यह आवश्यकता पहले भी थी किंतु वर्तमान कांग्रेस में संयम और धैर्य की ही तलाश करनी पड़ती है। यह दुर्भाग्य है कि असंयत और असंतुलित बयानों को भी राहुल गांधी तथा वर्तमान कांग्रेस के सक्रिय नेता भाजपा, मोदी, आर.एस.एस. से संघर्ष का सैद्धांतिक जामा पहनाते हैं। सजा मिलने और लोकसभा की सदस्यता रद्द होने के बावजूद वे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि राहुल गांधी से गलती हुई। 

राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा है कि मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है, अहिंसा उसे पाने का साधन-महात्मा गांधी। जरा सोचिए, आप यह कहते हैं कि सारे मोदी सरनेम वाले ही चोर क्यों हैं और इसे महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के साथ जोड़ते हैं। देखिए कि उन्होंने क्या कहा था जिसे न्यायालय ने आपराधिक मानहानि माना है। राहुल गांधी ने 13 अप्रैल, 2019 को कर्नाटक के कोलार की रैली में कहा था कि नीरव मोदी, जिसने भारत में सबसे बड़ी चोरी की थी उसका वही सरनेम है जो हमारे प्रधानमंत्री का है। 

राहुल गांधी इसे महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा का संघर्ष बताएं, दूसरे किसी के गले नहीं उतर सकता। क्या महात्मा गांधी कभी किसी व्यक्ति, जाति, समुदाय या सरनेम वाले के लिए इस तरह की भाषा प्रयोग कर सकते थे? महात्मा गांधी ने तो स्वयं लिखने या बोलने से पहले मन को पूरी तरह शांत और संयत करने की बात कही है ताकि किसी के प्रति पूर्वाग्रह या दुराग्रह के शब्द न निकलें। गांधी जी ने हम सबको गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों के लिए भी कभी कटु शब्द का प्रयोग नहीं किया। यह दुर्भाग्य है कि राहुल गांधी इस तरह की गलतियों को जिसे न्यायालय ने अपराध माना है महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा से जुड़ा हुआ बताते हैं। इससे पता चलता है कि वर्तमान कांग्रेसी राजनीति किस तरह विचार और व्यवहार पर दिशाभ्रम का शिकार है। 

वैसे तो न्यायालय का फैसला हमारे संपूर्ण राजनीतिक प्रतिष्ठान के लिए संदेश है। वर्तमान राजनीति में शब्दों की मर्यादाएं अब नहीं रहीं। राजनीति सामान्य प्रतिस्पर्धा या वैचारिक मतभेदों की जगह घृणा और दुश्मनी में परिणत हो रही है । इस कारण नेताओं के मुंह से गुस्से भरे ऐसे शब्द निकलते हैं जो कई बार हम सामान्य व्यवहार में भी प्रयोग नहीं करते। यह बात सही है कि भाजपा, आर.एस.एस. और विशेषकर नरेंद्र मोदी के विरुद्ध सबसे ज्यादा आपत्तिजनक और अस्वीकार्य बयान कांग्रेस की ओर से ही आए हैं। यह अलग बात है कि भाजपा उन सबको न्यायालय में नहीं ले जाती। अगर कांग्रेस को भाजपा नेताओं का कोई बयान मानहानि लगता है तो उसे भी न्यायालय जाना चाहिए। बात-बात पर न्यायालय जाने वाले कांग्रेस के नामी-गिरामी वकील आखिर ऐसा क्यों नहीं करते? 

कांग्रेस यही साबित करना चाहती है कि राहुल निर्दोष हैं और उन्हें जानबूझकर सजा दी जा रही है। कांग्रेस नेताओं के बयान सीधे-सीधे न्यायालय को ही कटघरे में खड़े कर रहे हैं और यह स्पष्ट अवमानना के दायरे में आता है। राफेल मामले पर राहुल गांधी को अपने बयानों के लिए ही उच्चतम न्यायालय से बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी थी। उन्होंने कह दिया था कि अब तो सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया कि चौकीदार चोर है। इसके विरुद्ध याचिका न्यायालय में गई और जो स्थिति थी अगर राहुल क्षमा नहीं मांगते तो उन्हें तब भी सजा मिलती।

राहुल गांधी कांग्रेस के इस समय सक्रिय सबसे बड़े नेता हैं। वह लोकसभा के सदस्य नहीं रहे। कल्पना की जा सकती है कि वर्तमान कांग्रेस का पूरा दारोमदार इस समय उन्हीं राहुल गांधी पर है यह कितना बड़ा झटका है। अगर वे इसी तरह के नासमझ बयानों में अपनी ऊर्जा खत्म करते रहे तो ऐसे और भी फैसले उनके विरुद्ध आएंगे। संभव है उन्हें जेल काटनी पड़े और राजनीति से ज्यादा न्यायालयों के चक्कर लगाना पड़ेगा।-अवधेश कुमार
   


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News