बलात्कारियों के ‘एनकाऊंटर’ पर उठे सवाल

Monday, Dec 09, 2019 - 03:04 AM (IST)

हैदराबाद में नवयुवती पशु चिकित्सक का बलात्कार करने के आरोपी चारों युवाओं को पुलिस ने एनकाऊंटर में मार दिया। इसे लेकर सारे देश में एक उत्साह का वातावरण है। देश का बहुसंख्यक समाज इन पुलिस कर्मियों को बधाई दे रहा है। जबकि कुछ लोग हैं, जो इस एनकाऊंटर की वैधता पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। दरअसल दोनों पक्ष अपनी-अपनी जगह सही हैं, कैसे, इसका हम यहां विवेचन करेंगे। 

लोगों का हर्षोन्माद इसलिए है कि हमारी पुलिस की जांच प्रक्रिया और हमारे देश की न्याय प्रक्रिया इतनी जटिल, लंबी और थका देने वाली होती है कि आम जनता का उस पर से लगभग विश्वास खत्म हो गया है। इसलिए बलात्कार के बाद अभागी लड़की को बेदर्दी से जलाकर मारने वालों को पुलिस ने अगर मार गिराया, तो आम जनता में इस बात का संतोष है कि अपराधियों को उनके किए की सजा मिल गई। अगर ऐसा न होता, तो हो सकता है कि अगले 20 वर्ष भी वे कानूनी प्रक्रिया में ही खिंच रहे होते। बलात्कारी को फांसी देने की मांग भी समाज का एक वर्ग दशकों से करता आ रहा है। इस्लामिक देशों में प्राय: ऐसी सजा देना आम बात होती है। इतना ही नहीं, मार डाले गए अपराधी की लाश को शहर के बीच चौराहे में ऊंचे खंभे पर लटका दिया जाता है ताकि लोगों के मन में यह डर बैठ जाए कि अगर उन्होंने ऐसा अपराध किया तो उनकी भी यही दशा होगी। पर यह मान्यता सही नहीं है। 

फ्रांस का उदाहरण
फ्रांस के एक राजा ने देश में बढ़ती हुई जेबकतरी की समस्या को हल करने के लिए ऐलान करवाया कि हर जेबकतरे को चौराहे पर फांसी दी जाएगी। आश्चर्य की बात यह हुई कि जब एक जेबकतरे को चौराहे पर फांसी दी जा रही थी, तो जो सैंकड़ों तमाशबीन खड़े थे, उनमें से दर्जनों की भीड़ में जेबें कट गईं। इससे स्पष्ट है कि फांसी का खौफ भी जेबकतरे को जेब की चोरी अंजाम देने से रोक नहीं सका। इसीलिए लोगों का मानना है कि चाहे बलात्कारियों को फांसी पर ही क्यों न लटका दिया जाए, इससे भविष्य में बलात्कारों की संख्या गिर जाएगी, ऐसा होता नहीं है। 

बलात्कार करने का आवेग, वह परिस्थिति, व्यक्ति के संस्कार आदि ये सब मिलकर तय करते हैं कि वह व्यक्ति बलात्कार करेगा या अपने पर संयम रख पाएगा। केवल कानून उसे बाध्य नहीं कर पाता। इसलिए मानवाधिकारों की वकालत करने वाले और ईश्वर की कृति (मानव) को मारने का हक किसी इंसान को नहीं है, ऐसा मानने वाले, फांसी की सजा का विरोध करते हैं। उनका एक तर्क यह भी है कि फांसी दे देने से न तो उस अपराधी को अपने किए पर पश्चाताप करने का मौका मिलता है और न ही किसी को उसके उदाहरण से सबक मिलता है। इन लोगों का मानना है कि अगर अपराधी को आजीवन कारावास दे दिया जाए तो न सिर्फ  वह पूरे जीवन अपने अपराध का प्रायश्चित करता है, बल्कि अपने परिवेश में रहने वालों को भी ऐसे अपराधों से बचने की प्रेरणा देता रहेगा। 

एनकाऊंटर के शिकार लोगों के अपराधी होने पर थे सवाल 
यहां एक तर्क यह भी है कि यह आवश्यक नहीं कि जिन्हें पुलिस एनकाऊंटर में मारती है, वह वास्तव में अपराधी ही हों। भारत जैसे देश में जहां पुलिस का जातिवादी होना और उसका राजनीतिकरण होना एक आम बात हो गई है, वहां इस बात की पूरी संभावना होती है कि पुलिस जिन्हें अपराधी बता रही है या उनसे स्वीकारोक्ति करवा रही है, वास्तव में वे अपराधी हैं ही नहीं। अपराध करने वाला प्राय: कोई बहुत धन्ना सेठ का बेटा या किसी राजनेता या अफसर का कपूत भी हो सकता है और ऐसे हाई प्रोफाइल मुजरिम को बचाने के लिए पुलिस मनगढ़ंत कहानी बना कर उस वी.आई.पी. सुपुत्र के सहयोगियों या कुछ निरीह लोगों को पकड़कर उनसे डंडे के जोर पर स्वीकारोक्ति करवा लेती है। फिर इन्हीं लोगों को इसलिए एनकाऊंटर में मार डालती है ताकि कोई सबूत या गवाह न बचे। 

यहां मेरा आशय बिल्कुल नहीं है कि हैदराबाद कांड के चारों आरोपी बलात्कारी थे या नहीं। मुद्दा केवल इतना-सा है कि बिना पूरी तहकीकात किए किसी को इतने जघन्य अपराध का अपराधी घोषित करना नैसर्गिक कानून के विरुद्ध है। हो सकता है कि इन आरोपित चार युवाओं से जांच में इस बलात्कार और हत्या के असली मुजरिम का पता मिल जाता और तब अपराध की सजा उसे ज्यादा मिलती, जिसने इस अपराध को अंजाम दिया। इसलिए किसी अपराधी के खिलाफ मुकद्दमा चलाने की वैधता लगभग सभी आधुनिक राष्ट्र मानते हैं। इसीलिए आज जहां एक तरफ बहुसंख्यक लोग इन बलात्कारियों को मौत के घाट उतारने की मांग करते हैं वहीं दूसरे लोग हर एक व्यक्ति को स्वाभाविक न्याय का हकदार मानते हैं।

बीमार मानसिकता के खिलाफ माहौल बने
जो भी हो इतना तो तय है कि कोई भी अभिभावक ये नहीं चाहेंगे कि उनकी बहु-बेटियां सड़कों पर असुरक्षित रहें। वे इस मामले में प्रशासन की ओर से कड़े कदम उठाने की मांग करेंगे। अब यह संतुलन सरकार को हासिल करना है, जिससे बलात्कार के अपराधियों को सजा भी मिले और निर्दोष को झूठा फंसाया न जाए। बलात्कार को रोकना किसी भी पुलिस विभाग के लिए सरल नहीं है। शहर और गांव के किस कोने, खेत, गोदाम या घर में कौन किसके साथ बलात्कार कर रहा है, पुलिस कैसे जानेगी? जिम्मेदारी तो समाज की भी है कि ऐसी मानसिकता के खिलाफ माहौल तैयार करे।-विनीत नारायण

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