प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक से उठते सवाल

Monday, Jan 10, 2022 - 05:40 AM (IST)

प्रधानमंत्री मोदी के काफिले के साथ जो कुछ फिरोजपुर में हुआ उससे कई सवाल उठते हैं। इस घटना का संज्ञान अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी लिया है। घटना की जांच होगी और पता चलेगा कि चूक कहां हुई। लेकिन इस बीच सोशल मीडिया पर तमाम तरह के विश्लेषण भी आने लग गए हैं।

इसमें ऐसे कई पत्रकार हैं जो काफी समय से गृह मंत्रालय को कवर करते आए हैं। उनका गृह मंत्रालय के उच्च अधिकारियों से अच्छा सम्पर्क होता है। उसी संपर्क के चलते कुछ पत्रकारों ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए गठित स्पैशल प्रोटैक्शन ग्रुप ‘एस.पी.जी.’ की कार्यप्रणाली से संबंधित सवाल भी उठाए हैं। अन्य पंजाब सरकार को ही दोषी बता रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी इस घटना की निंदा करते हुए पंजाब सरकार व केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की है। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि इस घटना को लेकर अभी तक किसी भी तरह की कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई है। 

आरोप प्रत्यारोप के बीच पंजाब के मुख्यमंत्री ने अपनी सफाई भी दे डाली है। आनन-फानन में फिरोजपुर के एस.एस.पी. को सस्पैंड कर दिया गया है। उधर सोशल मीडिया पर कई तरह के वीडियो भी सामने आ रहे हैं, जहां भाजपा का झंडा लिए हुए कुछ लोग ‘मोदी जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं और एस.पी.जी. वाले चुपचाप खड़े हैं। कुछ लोगों का तो यह तक कहना है कि प्रधानमंत्री बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के लाहौर चले गए तो उनकी जान को कोई खतरा नहीं था, लेकिन अचानक उनके रास्ते में एक किलोमीटर आगे किसान आ गए तो उनकी जान को खतरा कैसे हो गया? औपचारिक घोषणा न होने से अटकलों का बाजार गर्म होता जा रहा है। ऐसे में एक गंभीर घटना भी मजाक बन कर रह जाती है। चूक कहां हुई इसकी जानकारी नहीं मिल पा रही। 

वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी जानकारी भी सांझा की जा रही है, जहां पूर्व प्रधानमंत्रियों पर हुए ‘हमले’ के वीडियो भी सामने आए हैं। फिर वह इंदिरा गांधी के साथ हुई भुवनेश्वर की घटना हो या राजीव गांधी पर राजघाट पर हुए हमले की अथवा मनमोहन सिंह पर अहमदाबाद में जूता फैंके जाने की। इनमें से किसी भी घटना में किसी भी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यक्रम रद्द नहीं किया, बल्कि उनकी सुरक्षा में तैनात कमांडो ने बहुत फुर्ती दिखाई। फिरोजपुर की घटना के बाद एक न्यूज एजैंसी के हवाले से ऐसा पता चला है कि प्रधानमंत्री ने एक अधिकारी से कहा कि ‘‘अपने सी.एम. को थैंक्स कहना कि मैं जिंदा लौट पाया।’’ यह अधिकारी कौन है इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हुई है क्योंकि उस अधिकारी द्वारा ऐसा संदेश औपचारिक रूप से नहीं भिजवाया गया। लेकिन घटना के बाद से ही यह लाइन काफी प्राथमिकता से मीडिया में घूमने लग गई, जिससे आम जनता में एक अलग ही तरह का संदेश जा रहा है। 

फरवरी 1967 में जब चुनावी रैली के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भुवनेश्वर पहुंचीं तो वहां उग्र भीड़ में से एक ईंट आकर उनकी नाक पर लगी और खून बहने लगा। इंदिरा ने अपनी नाक से बहते खून को अपनी साड़ी से रोका और अपनी चुनावी सभा पूर्ण की। उस सभा में उन्होंने उपद्रवियों से कहा, ‘‘यह मेरा अपमान नहीं है, बल्कि देश का अपमान है क्योंकि प्रधानमंत्री के नाते मैं देश का प्रतिनिधित्व करती हूं।’’ इस घटना ने भी उनके चुनावी दौरे में परिवर्तन नहीं होने दिया और वह भुवनेश्वर के बाद कोलकाता भी गईं। उन्होंने अपने पर हुए हमले के बाद ऐसा कोई भी बयान नहीं दिया कि ‘मैं जिंदा लौट पाई’, बल्कि एक समझदार राजनीतिज्ञ के नाते उन्होंने इसे एक ‘मामूली घटना’ बताते हुए कहा कि चुनावी सभाओं में ऐसा होता रहता है। 

अब फिरोजपुर की घटना को लें तो प्रधानमंत्री के काफिलेे से काफी आगे किसानों का एक शांतिपूर्ण धरना चल रहा था। प्रधानमंत्री मोदी अपनी गाड़ी में बैठे हुए थे और करीब 20 मिनट तक उन्हें रुकना पड़ा। न तो कोई  प्रदर्शनकारी उनकी गाड़ी तक पहुंचा और न ही उन पर किसी भी प्रकार का हमला हुआ। इतनी देर तक प्रधानमंत्री को एक फ्लाईओवर पर खड़े रहना पड़ा इसकी जवाबदेही तो एस.पी.जी. की है क्योंकि सुरक्षा के जानकारों के मुताबिक प्रधानमंत्री की सुरक्षा की जिम्मेदारी एस.पी.जी. की है न कि किसी राज्य की पुलिस की। प्रधानमंत्री के काफिले में कई गाडिय़ां उनकी गाड़ी से आगे भी चलती हैं। अगर एस.पी.जी. को प्रदर्शन की जानकारी लग गई थी तो प्रधानमंत्री की गाड़ी को आगे तक आने क्यों दिया गया? दिल्ली में जब भी प्रधानमंत्री का काफिला किसी जगह से गुजरता है तो जनता को काफी दूर तक और देर तक रोका जाता है। इसका मतलब एस.पी.जी. सुनिश्चित कर लेती है कि कोई भी प्रधानमंत्री के काफिले के मार्ग में नहीं आएगा। 

यहां एक बात कहना चाहता हूं, जिसे मैंने अपने ट्विटर पर भी प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए लिखा है। अच्छा होता कि प्रधानमंत्री एस.पी.जी. से कह कर प्रदर्शन करने वालों के एक प्रतिनिधि को अपने पास बुलवाते और उससे बात करते। इससे किसानों के बीच एक अच्छा संदेश जाता और आने वाले चुनावों में भी शायद इसका फायदा मिलता। एक साल तक प्रदर्शन करते किसानों से तो आप मिले नहीं। अगर एक छोटे से समूह के प्रतिनिधि से मिल लेते तो सोशल मीडिया पर चल रहे मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा आपके ‘मेरे लिए थोड़ी मरे’ वाले बयान पर थोड़ी मरहम लग जाती। पर देश के प्रधानमंत्री के मुंह से ‘मैं जिंदा बच कर लौट आया’ जैसा बयान किसी के गले नहीं उतर रहा। विपक्ष इसे नौटंकी और सत्ता पक्ष जानलेवा साजिश बता रहा है। यह बयान प्रधानमंत्री के पद की गरिमा के अनुरूप नहीं था।-विनीत नारायण
 

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