‘पंजाबी भाषा’ को समर्पित नहीं पंजाबी यूनिवर्सिटी
punjabkesari.in Friday, Aug 09, 2024 - 05:31 AM (IST)
दुनिया का पहला भाषा-आधारित विश्वविद्यालय हिब्रूविश्वविद्यालय, इसराईल की राजधानी यरूशलम में स्थापित किया गया था। इसके बाद दूसरा भाषा-आधारित विश्वविद्यालय पंजाबी यूनिवॢसटी के नाम से पटियाला में स्थापित किया गया, जिसे भारत के पंजाब प्रांत का शाही शहर भी कहा जाता है। इस विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य पंजाबी भाषा का विकास करना, पंजाबी साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देना, पंजाबी को शिक्षा का माध्यम बनाना और पंजाबी के माध्यम से मानवतावादी और वैज्ञानिक शिक्षा प्रदान करना था।
इस विश्वविद्यालय ने पंजाबी भाषा के विकास के लिए भी कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कीं, लेकिन पिछले कुछ समय से पंजाब के भाषा विशेषज्ञों और विचारकों द्वारा विश्वविद्यालय के कुछ निर्णयों का विरोध किया जा रहा है, जिनमें हाल ही में पंजाबी भाषा विभाग द्वारा लिखा गया पत्र भी शामिल है। पंजाबी भाषा को लेकर कम्प्यूटर साइंस चर्चा का विषय बना हुआ है। पंजाबी यूनिवर्सिटी 1962 में पंजाबी विश्वविद्यालय अधिनियम 1961 के तहत अस्तित्व में आई थी। पंजाबी यूनिवर्सिटी लगभग 600 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है और पंजाबी थिएटर और टैलीविजन में शिक्षण और अनुसंधान के लिए हिमाचल प्रदेश के अंद्रेटा में नौरा रिचर्ड की एक बड़ी संपत्ति की देख-रेख में कर रही है।
वह उत्तराखंड के देहरादून में बलबीर सिंह साहित्य सदन में बलबीर सिंह भाई वीर सिंह और प्रोफैसर पूरन सिंह के साहित्य पर भी शोध कर रही है। विश्वविद्यालय गुरु काशी क्षेत्रीय केंद्र बठिंडा, गुरु काशी परिसर तलवंडी साबो, क्षेत्रीय सूचना प्रौद्योगिकी और प्रबंधन केंद्र, मोहाली और नवाब शेर खान इंस्टीच्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज इन उर्दू, फारसी और अरबी, मालेरकोटला में 4 क्षेत्रीय परिसरों का भी संचालन करती है। पंजाबी यूनिवर्सिटी द्वारा भाई काहन सिंह नाभा के नाम पर एक बड़ा पुस्तकालय स्थापित किया गया है जिसमें लगभग 564000 पुस्तकें हैं। पंजाबी भाषा के विकास के लिए बनाए गए इस विश्वविद्यालय का गीत (एंथम) भी पंजाबी में है और गुरु ग्रंथ साहिब में लिखी गुरु नानक देव जी की बानी, ‘विद्या विचारी तां परोउपकारी’ पर आधारित है। इसके अलावा भी कई अन्य उपलब्धियां हैं। इस पर चर्चा जरूरी है कि पंजाबी ङ्क्षचतक विश्वविद्यालय के प्रदर्शन से नाखुश क्यों हैं।
जून 2023 को पंजाबी यूनिवर्सिटी की अकादमिक परिषद की बैठक में निर्णय लिया गया कि 3 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम, बी.बी.ए., बी.सी.ए., बी. वोक, बी.एम.एम. के लिए पहले वर्ष में केवल पंजाबी भाषा, साहित्य और संस्कृति पढ़ाई जाएगी, बी कॉम और बी.एससी. पाठ्यक्रमों में पहले 2 वर्षों तक पंजाबी पढ़ाई जाएगी और अंतिम वर्ष में नए पाठ्यक्रम बनाकर उन्हें पंजाबी के साथ जोड़ कर पढ़ाया जाएगा और ऐसे ही फैसले वाइस चांसलर, अकादमिक डीन, विभाग के प्रमुख तथा अन्य शिक्षा अधिकारियों ने एक अलग मीटिंग करके किए। पंजाबी भाषा के विशेषज्ञों और विचारकों ने विश्वविद्यालय के इन निर्णयों का कड़ा विरोध किया और आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय प्रासंगिक पाठ्यक्रमों के नाम पर पंजाबी भाषा, साहित्य और संस्कृति की पढ़ाई को हटा रहा है। इसके चलते पंजाबी लेखकों, विचारकों और विशेषज्ञों का एक प्रतिनिधिमंडल यूनिवर्सिटी प्रबंधकों से मिला। इसके बाद यूनिवर्सिटी के कुलपति ने आश्वासन दिया कि 7 जुलाई की बैठक में इन फैसलों पर पुनर्विचार किया जाएगा।
7 जुलाई की बैठक में निर्णय लिया गया कि बी.बी.ए, बी. सी.ए., बी. वोक और बी.एम.एम. कोर्सों के 6 में से 6 समैस्टरों में पंजाबी अनिवार्य विषय के तौर पर पढ़ाई जाएगी। अब 5 साल की कानून की पढ़ाई में 2 की बजाय 3 समैस्टरों में पंजाबी अनिवार्य विषय के तौर पर पढ़ाई जाएगी। बी.टैक. और बी.फार्मेसी के लिए पहले पढ़ाई जाने वाली पंजाबी के अलावा पंजाबी कम्प्यूटिंग को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाएगा। लेकिन अब यूनिवर्सिटी के कम्प्यूटर साइंस विभाग के प्रमुख की ओर से लिखे गए पत्र ने एक बार फिर माहौल गरमा दिया है और पंजाबी लेखक, विचारक और विशेषज्ञ यूनिवर्सिटी पर पंजाबी विरोधी होने का आरोप लगा रहे हैं। पंजाब चेतना मंच के अध्यक्ष लखविंदर जौहल का कहना है कि जब अकादमिक काऊंसिल पहले ही फैसला ले चुकी है तो कम्प्यूटर साइंस विभाग का प्रमुख किस अधिकार से पंजाबियों को कम्प्यूटिंग साइंस की पढ़ाई से हटाने की इजाजत मांग रहा है। इस घटना से ऐसा लगता है कि पंजाबी यूनिवर्सिटी जो पंजाबी के विकास के लिए स्थापित की गई थी, वह आज पंजाबी के प्रति उस दृष्टिकोण और समर्पण से दूर होती जा रही है।-इकबाल सिंह चन्नी(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)