जम्मू-कश्मीर में निवेश का ‘पुणे मॉडल’

punjabkesari.in Sunday, Sep 08, 2019 - 03:07 AM (IST)

जम्मू -कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटाने के पश्चात केन्द्र सरकार ने विभिन्न प्रकार के निवेश के लिए लोगों से अपील की है। इसमें कई लोगों ने निवेश की इच्छा प्रदर्शित भी की है। राज्य के एक वरिष्ठ प्रशासकीय अधिकारी के अनुसार कागज पर अब तक 50 से 75 हजार करोड़ के निवेश प्रस्ताव प्रस्तुत किए जा चुके हैं, किन्तु इनमें से कई लोग इस गलतफहमी में हैं कि अनुच्छेद 370 निकल जाने के बाद वे उस राज्य में जमीनें आसानी से खरीद सकेंगे। 

कई व्यवसायी तो वहां जाकर जमीनें खरीदने तथा उनकी प्लॉटिंग शुरूकरने तक का विचार कर रहे हैं। यह गलतफहमी समाज के विभिन्न वर्गों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी खुलेआम दिखाई दे रही है। जम्मू-कश्मीर अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए विश्वभर के लोगों का आकर्षण बिन्दू रहा है। कुछ अर्से पहले अरबों ने भी यहां जमीनें खरीदने के प्रयास किए थे। अब, जब स्वयं माननीय प्रधानमंत्री जी ने अपील की है तो यह आवश्यक है कि इस कल्पना, उसके दूरगामी परिणाम और उसकी व्यावहारिकता को लेकर गहराई से विचार किया जाए। 

शिक्षा एवं आरोग्य सेवा 
कश्मीर से गत तीन दशकों से जुड़ा होने के नाते मैं यह चेतावनी देना चाहूंगा कि इस समय जब यह राज्य एक कठिन समय से गुजर रहा है, कश्मीरियों की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को नजरअंदाज करने तथा गुलमर्ग, पहलगाम जैसे स्थानों पर जमीन खरीदने एवं वहां की सुन्दर लड़कियों से विवाह करने की अर्थहीन बातें करने के परिणाम बहुत गम्भीर हो सकते हैं। पिछले 30 वर्षों में सरहद संस्था ने कश्मीर की स्थिति, कश्मीरियों के स्वभाव तथा कश्मीर में घटने वाली किसी भी घटना के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पडऩे वाले प्रभाव का नजदीक से अध्ययन किया है और इसके आधार पर कुछ प्राथमिकताएं निश्चित की हैं। इस अभ्यास के अनुसार इस समय जम्मू-कश्मीर में शिक्षा एवं आरोग्य सेवा के क्षेत्रों में प्राथमिक सुविधाओं की सब से अधिक आवश्यकता है। अन्य उद्यम तथा पर्यटन इनके बाद आते हैं। 

1990 के दशक में जब जम्मू-कश्मीर में हिंसा एवं आतंकवाद का विस्फोट हुआ, तब कई कश्मीरी माता-पिता यह चाहने लगे कि उनके बच्चे शिक्षा के लिए राज्य से बाहर चले जाएं। रईस लोग तथा सरकारी अधिकारियों के बच्चों के लिए यह आसान था पर सरहद संस्था ने तब गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के बच्चों की ओर ध्यान दिया। ये बच्चे पढ़ाई के लिए बाहर उतनी आसानी से नहीं जा सकते थे और स्वाभाविक रूप से जेहादी प्रचार के शिकार बन सकते थे। 

फिर हमने जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद और सुशील कुमार शिंदे की सहायता से 104 ऐसे बच्चों को शिक्षा हेतु अपनाया और उन्हें पुणे लाया गया। अब ये बच्चे बड़े होकर अपने राज्य के लिए कार्य करने के सक्षम बन चुके हैं। अनुच्छेद 370 जब लागू था, तब भी हमने पुणे स्थित प्रख्यात शिक्षा संस्थाएं, जैसे फग्र्युसन कॉलेज और सिम्बायोसिस को कश्मीर में अपने शिक्षा उपकेन्द्र्र शुरू करने का सुझाव दिया था और इसके लिए 99 वर्ष की लीज पर राज्य सरकार से जमीन दिलवाने में सहायता करने का आश्वासन भी दिया था। पर वहां की परिस्थितियों को देख उन्होंने असमर्थता जताई थी। 

सम्मान के साथ सहायता
वर्तमान स्थिति में हमने पुणे की सभी प्रमुख शिक्षा संस्थाओं से सम्पर्क किया और उन्हें जम्मू-कश्मीर आने की अपील की। पुणे में पढ़ रहे कश्मीरी  बच्चों के साथ जब हमने इस विषय पर चर्चा की, तो उनमें से कुछ ने कहा कि केवल यहां की जमीनों तथा सरकारी निधि की अभिलाषा से कोई जम्मू-कश्मीर आए तो बात नहीं बनेगी। इस राज्य ने 2000 वर्षों तक देश का बौद्धिक नेतृत्व किया है इसलिए यहां आकर हमें कोई सीख दिलाने का प्रयास करने के बजाय लोग हमें दरपेश कठिन परिस्थिति में सम्मान के साथ सहायता करें तो बेहतर होगा। 

सरहद संस्था ने इस विषय पर पुणे की सभी प्रमुख शिक्षा संस्थाओं तथा उद्यमों के साथ चर्चा की और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इसमें सरहद संस्था ने स्थानीय लोगों को विश्वास में लेकर उनकी भागीदारी के साथ यहां संस्थाएं निर्माण करने की बात की है। इस प्रकार का पहला प्रस्ताव स्वयं सरहद संस्था ने प्रस्तुत किया है, जिसमें हमने कुपवाड़ा जिले के दर्दपोरा गांव तथा पुलवामा और डोडा जिले के कुछ गांवों में स्कूल और कालेज शुरू करने की अनुमति मांगी है। ये तीनों जिले आतंकवाद से ग्रस्त हैं। इसी तरह पुणे के विश्वकर्मा विश्वविद्यालय ने स्थानीयों की सहभागिता से यहां शिक्षा संस्था शुरू करने की इच्छा दर्शाई है। वसंतदादा कालेज ऑफ  आर्किटेक्चर, अरहम, डी.वाई. पाटिल विश्वविद्यालय, के.जे.एस. इंस्टीच्यूट, प्रोग्रैसिव एजुकेशन सोसायटी, एम.आई.टी. और सिम्बायोसिस जैसी राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थाओं ने भी जम्मू-कश्मीर में अपने शिक्षा आवासों के निर्माण में रुचि दर्शाई है। 

रोजगार एवं नेतृत्व के अवसर 
स्थानीय नागरिकों का सम्मान, उनकी प्राचीन संस्कृति तथा भाषा को सुरक्षित रखते हुए उन्हें रोजगार एवं नेतृत्व के अवसर प्रदान करने वाले निवेशों द्वारा जम्मू-कश्मीर का विकास करने के इस मॉडल को ‘पुणे मॉडल’ के नाम से जाना जा रहा है। उपरोक्त  शिक्षा संस्थाओं के अलावा कई अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त आई.टी. कम्पनियां और फल प्रसंस्करण की सुहाना जैसी कम्पनियों ने भी यही ‘पुणे मॉडल’  अपनाया है। पुणे और कश्मीर के बीच एक भावनात्मक संबंध है क्योंकि भारत का पहला देशी सिस्टर सिटी समझौता पुणे और श्रीनगर के महानगर निगमों के बीच ही हुआ है। ऐसे ही जम्मू-कश्मीर जाने वाले पर्यटकों में महाराष्ट्र के पर्यटकों की संख्या सब से अधिक रहती है। ‘पुणे मॉडल’ में कश्मीरियों के साथ भावनात्मक संबंध बनाने और इससे कश्मीर के भारत के साथ भौगोलिक रूप से एकात्म होने को प्राथमिकता दी गई है। जम्मू-कश्मीर प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने अब देश के अन्य भागों से आने वाले निवेशकों को भी ‘पुणे मॉडल’ अपनाने का आग्रह करना शुरू किया है।-संजय नहार


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