वीरभद्र-धूमल खींचतान से हिमाचल के हितों पर चोट

Thursday, May 05, 2016 - 01:36 AM (IST)

(कंवर हरि सिंह): हिमाचल प्रदेश के 2 बड़े राजनीतिक परिवारों में पिछले कुछ सालों से तल्खियां कदम-कदम पर देखने को मिलती आ रही हैं। अभी अधिक समय नहीं बीता, जब प्रदेश में धर्मशाला स्थित एच.पी.सी.ए. मैदान आई.सी.सी. तथा बी.सी.सी.आई. ने टी-20 विश्व कप के कुछ मैच कराए जाने के लिए आबंटन किया था। इनमें से सबसे रोमांचित भारत-पाक के बीच क्रिकेट मुकाबले को लेकर भारत ही नहीं, सारे विश्व के क्रिकेट अनुरागी भारी संख्या में हिस्सा लेने आने वाले थे। 

 
इस सीरीज के लिए एच.पी.सी.ए. अध्यक्ष एवं प्रदेश से लोकसभा सांसद अनुराग ठाकुर ने मुख्यमंत्री से भेंट कर उनकी अनुमति के लिए प्रार्थना भी की थी। बावजूद तमाम तैयारियों के, प्रदेश सरकार ने शहीदों के परिवारों की भावनाओं का हवाला देकर स्पष्ट सुरक्षा भरोसा लिखित रूप से न देकर इस तरह से परिस्थितियों का निर्माण कर दिया, जिससे क्षुब्ध आई.सी.सी. एवं बी.सी.सी.आई. को धर्मशाला के विश्वविख्यात खूबसूरत स्टेडियम से बदलकर इन मुकाबलों को कोलकाता स्थानांतरित करना पड़ा जिससे हजारों क्रिकेट अनुरागी निराश हुए और प्रदेश के पर्यटन को अत्यधिक क्षति हुई।
 
अभी इस प्रकरण को ज्यादा समय नहीं बीता था कि एक बार पुन: प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन को आशा जगी थी कि धर्मशाला के स्टेडियम में 3 आई.पी.एल. मैच प्रस्तावित हुए। एक बार पुन: एच.पी.सी.ए. ने सरकार से लिखित रूप से सुरक्षा का आश्वासन चाहा पर दुर्भाग्यवश यह भी सिरे न चढ़ सका। एच.पी.सी.ए. सचिव ने धर्मशाला में एक संवाददाता सम्मेलन में प्रशासन को इस हेतु लिखे आवेदन की प्रति प्रदçàæüत की लेकिन मुख्यमंत्री ने उसके इस दावे को झुठला दिया। किंग्ज इलैवन पंजाब की मालिक प्रिटी जिंटा इस सिलसिले में स्वयं मुख्यमंत्री से मिली भी थीं तथा उन्हें धर्मशाला में मैच देखने का निमंत्रण भी देकर आई थीं पर स्वीकृति के बाद भी ये मैच फिर से विवादों में आकर प्रदेश से विलुप्त हो मोहाली स्टेडियम चले गए।
 
यह सब पुन: कैसे और किन परिस्थितियों तहत हो गया, कुछ कहना कठिन है। किंग्ज इलैवन की मालिक प्रिटी जिंटा ने एक वक्तव्य में स्पष्ट कहा है कि इस स्थगन के लिए मुख्यमंत्री नहीं बल्कि बी.सी.सी.आई. ही सीधे-सीधे जिम्मेदार है। बहरहाल मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह तथा नेता प्रतिपक्ष प्रो. प्रेम कुमार धूमल के परिवारों के मध्य इस कदर खींचातानी और तल्खियां दुर्भाग्यपूर्ण हैं। खासकर तब जब कि इनका खामियाजा इस शांतमय देवभूमि हिमाचल के वृहद हितों को आहत करने वाला सिद्ध हो।
 
हिमाचल प्रदेश में आदर्श गांव
केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल की शुरूआत में प्रधानमंत्री ने सभी सांसदों से आग्रह किया था कि उनमें से प्रत्येक अपने-अपने संसदीय क्षेत्र से कम से कम एक ऐसे गांव का चयन करें जिसके समग्र विकास के लिए अपनी ऐच्छिक निधि, सरकारी संसाधनों तथा स्थानीय व अपने रसूख से उस क्षेत्र में सक्रिय या सहभागी हो सकने वाली किसी संस्था, कार्पोरेट सैक्टर या स्वैच्छिक संस्था को जोड़कर उस गांव को अन्य नजदीकी गांवों के लिए रोल मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। 
 
देश में शायद ही प्रधानमंत्री के इस मंसूबे को कहीं मूर्तरूप देकर इस दिशा में कोई प्रभावी पग उठाए गए हों, आम लोगों के संज्ञान में कुछ नहीं है। इतने बड़े भागीरथ प्रयास के लिए कौन-कौन से सांसद स्वयं कब-कब उस गांव में गए तथा क्या दिशा- निर्देश दिए या सरकार के स्तर पर तयशुदा कार्यप्रणाली का प्रबोधन किया, कम से कम आम व्यक्ति अनभिज्ञ है। अब इतना समय इस योजना को लांच हुए हो गया है यदि जो लिखा है सत्य न हो तो क्या हमारे माननीय सांसद हमें स्थिति स्पष्ट कर सही करने की अनुकंपा करेंगे?
 
हिमाचल प्रदेश की सियासत
हिमाचल प्रदेश में विगत 3 साल से अधिक समय से प्रदेश में वीरभद्र सिंह सत्ता संभाले आ रहे हैं। निश्चित रूप से इस कद्दावर राजनेता का एक लंबा, परिपक्व राजनीतिक व प्रशासनिक अनुभव है। यही कारण है कि आज कम से कम उनका स्वयं की पार्टी में न तो कोई सानी है और न ही दूसरा विकल्प। 
 
यहां तक कि कांग्रेस उच्च कमान में भी वीरभद्र सिंह की एक विशिष्ट पैठ है। इन सब के परिप्रेक्ष्य में आम लोगों में यह भी चर्चा है कि इस कार्यकाल में वीरभद्र सिंह अपने धुर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष प्रो. प्रेम कुमार धूमल, उनके सांसद बेटे व बी.सी.सी.आई. सचिव अनुराग ठाकुर तथा छोटे बेटे अरुण धूमल के साथ इस कदर विवादों में उलझ गए हैं कि उनका अधिकांश समय तथा ऊर्जा इन्हीं पारिवारिक झगड़ों, आरोपों-प्रत्यारोपों तथा अदालती विवादों, एक-दूसरे की जांच तथा कीचड़ उछाल राजनीति में लगा रहा है और प्रदेश के व्यापक हित बुरी तरह से उपेक्षित हुए हैं।
 
कुल मिलाकर दोनों ही पक्षों में चल रहे इन विवादों से प्रदेश के आम लोग खिन्न हैं। अब तो निकट भविष्य में प्रदेश विधानसभा के चुनाव आने वाले हैं, यदि इन दोनों ने प्रदेश के आम मतदाताओं के मूड को न समझा तो निश्चित रूप से लोग किसी तीसरे विकल्प की उपादेयता पर गम्भीरता से सोच सकते हैं।
 
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