प्रदर्शनकारी किसान और मोदी का रवैया

Friday, Apr 09, 2021 - 03:52 AM (IST)

गुस्साए किसान मोदी सरकार के खिलाफ अपने व्यवहार में बदलाव के किसी भी संकेत के बिना महीनों से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। यह देश का अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन साबित हुआ है। किसानों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो राजनीतिक गठबंधन सहयोगियों को गंवा चुके हैं। उनके कुछ अपने नेताओं ने उन्हें सावधानी बरतने की चेतावनी दी है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी का अपना नजरिया है। उन्होंने अपने कुछ विचार तथा दृष्टांत स्थापित कर लिए हैं जिनके बारे में मैं यह जरूर कहूंगा कि वे जमीनी हकीकतों से दूर हैं। 

हम सभी ऐसे दिल पसीजने वाले दृश्यों से वाकिफ हैं जिनमें राजधानी नई दिल्ली के नजदीक हाईवे पर कैसे हजारों की संख्या में टैंटों में किसान रह रहे हैं। कांटेदार तारों वाले स्टैंडों के साथ पुलिस ने विशाल बैरीकेड खड़े कर रखे हैं। यह व्यवस्था अपने आप में बर्बरतापूर्ण तथा अलोकतांत्रिक दिखाई देती है। कैसे लोकतांत्रिक भारतीय पुलिस इस तरह से देश के अन्नदाता के साथ व्यवहार कर सकती है? 

क्या वे लाल बहादुर शास्त्री के नारे ‘जय जवान जय किसान’ को भूल गए हैं? किसान गत सितम्बर में संसद द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। वे महसूस करते हैं कि ये कानून उनकी रोजी-रोटी के साथ खिलवाड़ है और उन्हें गरीब बना देंगे। किसानों को डर है कि प्रधानमंत्री मोदी का उद्देश्य भारत को ग्लोबल कार्पोरेशन्स की एक हब में बदलने का है। 

किसान यूनियनों के नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी पर अपनी पसंदीदा कार्पोरेट हितैषी नीति अपनाने का आरोप लगाया है। इस तरह से यह मामला और भी पेचीदा तथा राजनीतिक बन गया है। किसानों के लिए इतनी ही परेशान करने वाली बात यह है कि नए प्रावधानों के अंतर्गत वे अपने विवादों को अदालत में नहीं ले जा सकते। उन्हें अपनी शिकायतों के समाधान के लिए नौकरशाहों पर निर्भर होना होगा।

जैसे कि हम सब जानते हैं कि कृषि भारत की 1.30 अरब जनसंख्या के लगभग 58 प्रतिशत की रोजी-रोटी का मुख्य स्रोत है। भारत के किसान मुख्यत: जमीनों के छोटे टुकड़ों के मालिक हैं। उनमें से बड़ी 68 प्रतिशत संख्या के पास एक हैक्टेयर से भी कम जमीन है। कुछ राज्यों में तो किसानों की आय इतनी कम है कि 2 वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं कर सकते। यह अलग बात है कि किसान देश में सबसे बड़ा वोटिंग ब्लॉक बनाते हैं। 

मोदी सरकार का कहना है कि नए कानूनों से किसानों की आय बढ़ेगी तथा कृषि में निजी निवेश आकर्षित होगा। किसान इससे प्रभावित नहीं हैं। उन्होंने मोदी सरकार पर अपने दृष्टिकोण तथा मूलभूत सोच में निष्ठाहीन होने का आरोप लगाया है। वास्तव में चीजें एक ऐसी स्थिति पर पहुंच गईं कि सुप्रीमकोर्ट को दखल देना पड़ा। किसानों की संवेदनाओं तथा भावनाओं को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत ने अस्थायी तौर पर तीन कानूनों पर रोक लगा दी है। समस्या का समाधान करने के लिए उसने तीन सदस्यीय एक पैनल का भी गठन किया है। रिपोर्ट सुप्रीमकोर्ट में दाखिल कर दी गई है। अभी इसकी समीक्षा होनी है। 

इस बीच किसानों ने अपना आंदोलन जारी रखा है और कई राज्यों में रैलियों का आयोजन किया जा रहा है। दरअसल संयुक्त किसान मोर्चा (एस.के.एम.) के नेताओं ने मई के पहले पखवाड़े में पैदल संसद की ओर मार्च करने का निर्णय किया है। उन्होंने कहा है कि उनका मार्च शांतिपूर्ण होगा। उन्होंने अफसोस जताया है कि जनवरी में किसानों के साथ बातचीत समाप्त करने के बाद से सरकार ‘सो रही’ है। महत्वपूर्ण प्रश्र यह है कि क्या भाजपा नीत राजग सरकार के मूलभूत बर्ताव में कोई बदलाव आएगा? इस समय ऐसा दिखाई नहीं देता। प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि उनकी सरकार ने किसानों के साथ बातचीत के दरवाजे अभी बंद नहीं किए हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि यदि कोई खामियां व गलतियां पाई गईं तो कानून में सुधार करके उन्हें ठीक किया जाएगा। 

इसके साथ ही उन्होंने यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि विपक्षी दलों ने सकारात्मक आलोचना अथवा कानूनों में खामियों की ओर संकेत के लिहाज से बहुत कम योगदान दिया है। यहां तक कि उनके कृषि मंत्री ने यह दोहराया है कि किसानों के प्रतिनिधि धारा-दर-धारा इस बात पर चर्चा करने के इच्छुक नहीं हैं कि उनको कानून में किस चीज से परेशानी है? प्रधानमंत्री मोदी ने स्वीकार किया है कि ‘इसमें चुनौतियां हैं।’ मगर उनका कहना है कि ‘हमें यह निर्णय करना है कि हमें समस्या का हिस्सा बनना है या समाधान का माध्यम।’ 

प्रधानमंत्री अपनी वाकपटुता के लिए जाने जाते हैं, मगर परेशान करने वाली बात कृषि कानूनों के अतिरिक्त किसानों के मुद्दों को लेकर उनका लड़ाकू व्यवहार है। मैं यह अवश्य कहूंगा कि लोकतंत्र के गीत गाना सार्वजनिक जीवन में मोदी के स्टाइल का एक हिस्सा है। हालांकि परेशान  रने वाली बात यह है कि लोगों के विरोध जताने के अधिकार को पसंद नहीं करते। विरोध या असहमति लोकतंत्र का एक आवश्यक हिस्सा है। ‘राष्ट्र विरोधी’ बताकर असहमति की ऐसी आवाजों को दबाना उनका काम नहीं है। यह भी अवश्य कहा जाना चाहिए कि किसानों के आंदोलन से निपटने को लेकर कई अंतर्राष्ट्रीय सैलिब्रिटीज द्वारा की गई आलोचना से प्रधानमंत्री मोदी परेशान हैं। 

कोई हैरानी की बात नहीं कि केंद्रीय नेता इसे आमतौर पर मोदी सरकार को नीचा दिखाने के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र’ बताते हैं। मुख्य मुद्दा यह है कि प्रधानमंत्री मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती है। किसानों के मुद्दे से निपटने के लिए एक ठंडे तथा प्रतिबिम्बात्मक मन तथा व्यावहारिक दृष्टिकोण की जरूरत है। मगर ऐसा दिखाई देता है कि वह भटक गए हैं।-हरि जयसिंह             

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