नेताओं के लिए मुनाफे का कारोबार बना नशा

punjabkesari.in Wednesday, Apr 12, 2023 - 05:24 AM (IST)

समाज में नशों का विषय सबसे चर्चित है। कई मां-बाप नशे के कारण मारे गए अपने बेटे के शव पर विलाप करते हुए नजर आते हैं। दूसरी ओर नशे की आपूर्ति के लिए नशे का आदी व्यक्ति कोई भी अपराध करके पैसे का इंतजाम कर रहा होता है। इस खतरनाक व्यवसाय में अब महिलाओं की अच्छी-खासी गिनती शामिल हो गई है। 

निचले स्तर पर रोटी के लिए नशों का छोटा व्यापारी जब कभी पुलिस के डर से अपने पेशे को छोडऩे का यत्न करता है तो स्वार्थ हितों वाली राजनीति तथा प्रबंधकीय मशीनरी उसको ऐसा करने की इजाजत नहीं देती। प्रत्येक सरकार नशे के कारोबार को प्राथमिकता के आधार पर खत्म करने का नारा देकर सत्ता में आती है परन्तु कुछ समय बाद ही आशावादी लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर जाता है क्योंकि नशे का यह धंधा निरन्तर जारी रहता है। 

दो-चार नशा तस्करों को पकड़कर खूब प्रचार किया जाता है कि नशा रोकने के लिए बड़े स्तर पर सरकार कार्रवाई कर रही है परन्तु इसका नतीजा पहले से भी ज्यादा नशों के कारण हुई मौतों तथा नशेड़ी लोगों की गिनती में बढ़ौतरी के रूप में होता है। नशों का सेवन करीब 6 सदियों पहले शुरू हुआ था। कभी इसे ‘सोम रस’ के नाम से जाना जाता था। उस समय नशे के इस्तेमाल, बिक्री और उत्पादन पर कोई प्रतिबंध नहीं था परन्तु नशों का सेवन खतरनाक तथा जानलेवा करीब एक सदी पहले शुरू हुआ, जब भांग, पोस्त इत्यादि नशों को वैज्ञानिक विधि के साथ रासायनिक रूप में ज्यादा घातक और कीमती बना दिया गया है। 

जब अफीम की गुणवत्ता में बढ़ौतरी कर इसे कोकीन का रूप दिया गया है तब यह मानवीय भलाई के लिए दवा के रूप में एक क्रांतिकारी कदम माना गया है परन्तु जैसे ही नशों का कारोबार कमाई का बड़ा साधन बना दिया गया तो इसका अलग ही साम्राज्य बन गया। इस नशा रूपी साम्राज्य को वैश्विक ताकतें पूंजी एकत्रित करने के लिए इसका हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने लग पड़ीं। नशे के विस्तार के लिए युद्ध तथा घातक हथियारों का इस्तेमाल किया जाता था। संसार के दो युद्ध अफीम के नाम पर ही लड़े गए। उस समय  वैश्विक स्तर पर ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कम्पनी ही अफीम का बड़ा कारोबार करती थी। 

1839 से 1842 तक चीन और ब्रिटेन में पहला अफीम युद्ध लड़ा गया क्योंकि अंग्रेजी साम्राज्य अपने लाभ को बढ़ाने के हित में चीन में इस धंधे को और भी बढ़ाना चाहता था जिसका चीनी लोगों ने विरोध किया। दूसरा युद्ध चीन और ब्रिटेन तथा  फ्रांस के सांझे मोर्चे के मध्य 1856 से 1860 तक लड़ा गया। दोनों युद्धों में चीन की हार हुई। चीन 1949 की क्रांति के बाद ही अफीम पर नियंत्रण पाने में सक्षम हो पाया। नशों का कारोबार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लाभ अर्जित करने के लिए किया जा रहा है। किसी भी वस्तु के व्यापार में बढ़ौतरी के लिए नशा सेवन करने वालों के लिए तथा इसको पैदा करने वालों की जरूरत होती है। नशे का सेवन करने वालों की गिनती में बढ़ौतरी करने के लिए बड़े स्तर पर प्रचार का सहारा लिया जाता है ताकि नशे की लत को पूरा करने के लिए नशेड़ी लोगों की संख्या में बढ़ौतरी हो। 

आज विश्व में जितना नशा पैदा होता है उसका 80 प्रतिशत हमारे देश के पूर्वी तथा पश्चिमी क्षेत्रों में पैदा होता है। जिसको क्रमवार ‘गोल्डन क्रैस्ट’ (पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा ईरान) और ‘गोल्डन ट्राइएंगल’ (म्यांमार, थाइलैंड तथा लाओस)कहा जाता है। करीब पौने 4 लाख करोड़ की हैरोइन अफगानिस्तान से दूसरे देशों की ओर जाती है जिसका 80 प्रतिशत हिस्सा ईरान तथा 20 प्रतिशत भारत के रास्ते से तस्करी के माध्यम से होता है। 

भारत के रास्ते से निकलने वाले नशे का 20 प्रतिशत भाग भारत के अंदर ही खपत हो जाता है। जब हम नशों की बेडिय़ों में गिरफ्त नौजवान पीढ़ी का जिक्र करते हैं तो हमें इसके मूल कारणों का पता करने की जरूरत है। बेरोजगारी तथा अनपढ़ता का शिकार नौजवान नशे के धंधे के लिए उपजाऊ जमीन साबित हो रहा है जिसमें हुए मुनाफे का इस्तेमाल हमारे राजनेता, नशा तस्कर तथा अफसरशाही मंडली कर रही है। राजनीतिक नेताओं के लाभ तथा सत्ता की भूख को पूरा करने के लिए चुनावों के दौरान नशा खत्म करने के वायदों पर विराम लग जाता है।

यदि हम यह सोचें कि नशे के ऊपर पाबंदी सख्त कानूनों के द्वारा संभव है तो यह एक बड़ी भूल होगी। अमरीका में 1856 में शराब के ऊपर पाबंदी लगाने से इसका आयात और बढ़ गया है। 65 सालों बाद 1921 में इस पाबंदी को हटाकर पता चला कि शराब को गैर-कानूनी आपूर्ति को बंद करने से अच्छे नतीजों के स्थान पर निराशा ही हाथ लगी। नशों की रोकथाम के लिए सबसे पहले अनपढ़ तथा बेरोजगार लोगों को शिक्षा तथा रोजगार देना होगा। नशा व्यापार की विश्वव्यापी चेन को तोड़कर देश के अंदर इसकी आमद को रोकना होगा। चोर को मारने की जगह चोर की मां को कटघरे में खड़ा कर जनसाधारण को इस रोग की भयावहता के बारे में जागरूक करने की जरूरत है।-मंगत राम पासला


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