सरदार बिशन सिंह समुंदरी एक बहुप्रतिभाशाली शख्सियत
punjabkesari.in Sunday, Feb 26, 2023 - 01:05 PM (IST)

उच्च शिक्षा प्राप्त शख्सियतों में ऐसे लोग विरले ही होते हैं जिनको गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के संस्थापक वाइस चांसलर प्रो. बिशन सिंह समुंदरी जैसा सम्मान तथा प्रसिद्धि हासिल हुई हो। उन्होंने 9 साल के लम्बे अर्से तक यूनिवर्सिटी की बागडोर संभाली और इस दौरान उन्होंने यूनिवर्सिटीको देश की शिक्षण संस्थाओं की पहली कतार में ला खड़ा किया। वह लायलपुर जिले की (वर्तमान फैसलाबाद, पाकिस्तान) समुंदरी तहसील के एक नजदीकी गांव में जट्ट सिख संधू परिवार में जन्मे। उन्हें पिता सरदार तेजा सिंह समुंदरी की शख्सियत विरासत में मिली जो गुरुद्वारा सुधार लहर की उच्च शख्सियत थे जिन्होंने अंग्रेजों के दमन का सामना करते हुए धार्मिक आजादी के हकों के लिए जान दी।
दरबार साहिब के पवित्र परिसर के अंदर बना तेजा सिंह समुंदरी हाल उनकी विशाल कुर्बानी की याद दर्शाता है। प्रो. समुंदरी ने प्राथमिक शिक्षा समुंदरी तहसील के समुंदरी स्कूल से हासिल की थी तथा अपने पुश्तैनी गांव रायबुर्ज के नजदीक गुरु गोबिंद सिंह हाई स्कूल सरहाली से 10वीं पास की। खालसा कालेज अमृतसर से एफ.एससी. (एग्रीकल्चर) की पढ़ाई करने के उपरांत 1937 में पंजाब एग्रीकल्चर कालेज लायलपुर से बी.ए. की।
1948 में एम.एससी. एग्रीकल्चर की पढ़ाई करते हुए कृषि अर्थव्यवस्था को विशेष अध्ययन विषय बना लिया। सन् 1957 में उनको विदेश में पढ़ाई करने के लिए वजीफा मिला तथा एम.एससी. की पढ़ाई अमरीका की आहियो से करते हुए यूनिवर्सिटी एग्रीकल्चर में विशेषज्ञता हासिल की। उनकी धर्मपत्नी जे.के. संधू ने उनके साथ रहते एक और साल लॉ एजुकेशन में पी.एचडी. मुकम्मल की। भारत वापस आकर उन्होंने भी अध्यापन का काम चुना तथा लड़कियों के एस.आर. गवर्नमैंट कालेज अमृतसर से रिटायर हुईं।
प्रो. समुंदरी ने नौकरी की शुरूआत लायलपुर खालसा के एग्रीकल्चर कालेज में रिसर्च असिस्टैंट के तौर पर 1934 में की। इसके उपरांत 1938 में पंजाब एग्रीकल्चर कालेज लाहौर में नियुक्त हुए। देश के विभाजन के बाद जब यह कालेज लुधियाना में दोबारा स्थापित किया गया तो बिशन सिंह समुंदरी को वहां तरक्की देकर 1948 में असिस्टैंट प्रो. नियुक्त किया गया। सन् 1957 में उनको एग्रीकल्चर एक्सटैंशन (कृषि विस्तार) में बाकायदा प्रो. का पद दिया गया। इसके बाद इस विभाग के 1962 में मुखी नियुक्त किए गए। कृषि सैक्टर में उनकी खोज प्रतिभा के मद्देनजर उनको 1963 का अव्वल रिसर्चर घोषित किया गया। अगले ही साल 1964 में उन्होंने सिखों की उच्च संस्था खालसा कालेज अमृतसर के प्रिंसीपल के तौर पर जिम्मेदारी संभाली जो उस समय के बदतर हालात से गुजर रहा था। विद्यार्थियों की बेसब्री, बेचैनी तथा प्रबंधकों की लापरवाही के कारण बुरा असर पड़ने के कारण निचली कक्षाओं तक विद्यार्थियों की गिनती कम होकर 500 रह गई थी।
प्रिंसीपल का पद उस समय ऐसी हालत में कोई फूलों की सेज नहीं थी। समुंदरी साहिब के पारिवारिक सदस्य बताते हैं कि उनकी प्रिंसीपल के तौर पर नियुक्ति के बारे में सुनकर कालेज के टीचरों का एक प्रतिनिधिमंडल उनके पास आया तथा विनम्रता सहित उनको अपील करते हुए सचेत किया कि वह प्रिंसीपल बनकर कैसा खतरा मोल ले रहे हैं। इस तरह उनकी कमाई हुई शौहरत भी मिट्टी में मिल सकती है। इस पर प्रो. समुंदरी ने दो टूक जवाब दिया कि अब वह दरबार साहिब जाकर अकाल पुरख तथा गुरु रामदास जी का आशीर्वाद ले चुके हैं इसलिए पीछे हटने का सवाल ही पैदा नहीं होता। उनकी निडरता, बुलंद हौसले तथा कर्मशीलता ने अपना करिश्मा दिखाया। कालेज के विद्यार्थियों की गिनती उनके प्रिंसीपल के कार्यकाल (8 मार्च 1964 से नवम्बर 1968) में 500 से बढ़कर 3600 हो गई। खालसा कालेज इन सालों में पढ़ाई तथा खेल के क्षेत्र में अग्रणी बन गया।
इसके अलावा उनकी प्रबंधकीय अगुवाई में कई पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स शुरू किए गए जिनमें पॉलीटिकल साइंस, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र की एम.ए. तथा खेती अर्थशास्त्र, बागवानी एम.एससी. शामिल थे। इस कालेज के प्रिंसीपल रहते उनके शानदार प्रबंधकीय गुणों तथा कुशल लीडरशिप को देखते हुए उनको 1969 में गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर नियुक्त किया गया। गुरु नानक देव जी की पांचवीं जन्मशताब्दी समय अस्तित्व में आई इस यूनिवर्सिटी के लिए पहले जमीन हासिल की, पैसा जुटाया, बिल्डिंग का निर्माण करवाया तथा स्टाफ की भर्ती की।
उन्होंने सभी तरफ से उच्च योग्यता प्राप्त अध्यापकों की तलाश की। इतिहास के जाने-माने प्रोफैसर जे.एस. ग्रेवाल को पंजाब यूनिवॢसटी छोड़ कर यहां आने के लिए प्रेरित किया। ऐसे और उच्चकोटि के अध्यापकों जिनमें जे.एस. बैंस (पॉलीटिकल साइंस दिल्ली यूनिवर्सिटी), डा. के.एस. राय अमरीका, डा. कर्म सिंह गिल प्लानिंग कमिशन, डा. रमेश कुंतल (हिंदी), डा. डी.आर. मैनी पंजाब यूनिवर्सिटी, डा. के.आर. बम्बाल कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी तथा के.सी. कपूर को पंजाब के शिक्षा विभाग से लेकर आए। अकादमिक समस्याओं के अलावा प्रो. समुंदरी की खेल के क्षेत्र में उल्लेखनीय देन है। अपने विद्यार्थी समय के दौरान उन्होंने हाकी का प्रतिनिधित्व किया।
1940 से 1956 तक वह पंजाब हाकी एसोसिएशन के मैंबर रहे। पंजाब हाकी अम्पायर एसोसिएशन के पहले 1940 से 1947 तक तथा फिर 1948 से 1956 तक प्रधान रहे। हाकी के कोच तथा अम्पायर के तौर पर उनकी सेवाओं को विशेष तौर पर याद किया जाता है। उनके शर्गिदों में ओलिम्पियन कर्नल ए.आई.एस. दारा (जो पाकिस्तान हाकी एसोसिएशन के प्रधान भी रहे), जफर इकबाल, गुलाम रसूल, गुरचरण सिंह रंधावा, चरणजीत सिंह तथा पृथीपाल सिंह का नाम उल्लेखनीय है।
इधर-उधर, दोनों तरफ से पाकिस्तान तथा भारत की हाकी टीमों के कैप्टन गुलाम रसूल तथा चरणजीत सिंह उनके शार्गिद रहे जिन्होंने खेल को एग्रीकल्चर कालेज लाहौर में रहते हुए तराशा। गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहते हुए वह एसोसिएशन ऑफ कॉमनवैल्थ यूनिवर्सिटी की कार्यकारिणी कमेटी में भी रहे। रिटायरमैंट उपरांत उनको जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी की कार्यकारी कौंसिल के लिए नामजद किया गया तथा इंडियन कौंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च, सैंट्रल आयरलैंड, मछली पालन रिसर्च इंस्टीच्यूट बैरकपुर तथा पटसन टैक्नोलॉजीकल रिसर्च लैबोरेटरी, कलकत्ता की गवर्निंग कौंसिल के मैंबर रहे।
वह बैंक ऑफ पंजाब के बोर्ड ऑफ डायरैक्टर के मैंबर होने के अलावा रोटरी इंटरनैशनल तथा भगत पूरण सिंह के पिंगलवाड़े के साथ जुड़े रहे। अपने सभ्याचारक विचारों तथा संयमी स्वभाव के कारण वह नौजवानों के आदर्श बने रहे। वह ऐसे शख्स थे जिनको सभी लोग आज भी याद करते हैं। उनके चले जाने से पंजाब का वह नामवर सपूत हमारे बीच नहीं रहा जो सारी उम्र पंजाब के नाम को इतिहास में सुनहरी अक्षरों में बनाने के लिए यत्नशील रहा।