वैज्ञानिक सोच और अध्यात्म का संगम थे राष्ट्रपति कलाम

punjabkesari.in Saturday, Jul 27, 2024 - 05:47 AM (IST)

किसी व्यक्ति का साधारण, सीमित साधन और निर्धन परिवार में जन्म लेना उसे महान बनने से नहीं रोक सकता, यह भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व को समझने पर पूरी तरह सही लगता है। 27 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि है, इसलिए इस अवसर पर यह याद आना स्वाभाविक है कि ऐसा क्या था जिससे वे भारत रत्न और प्रेरक व्यक्ति बने? 

विज्ञान और अध्यात्म : उन्होंने हिंदू धर्म की आध्यात्मिक संस्था स्वामी नारायण के तत्कालीन प्रमुख स्वामी महाराज के जीवन, दर्शन और उनके माध्यम से अपने अंदर हुए परिवर्तन को लेकर प्रोफैसर अरुण तिवारी के साथ मिलकर एक ग्रंथ की रचना की। इसमें लिखा गया है कि विज्ञानी होने और वैज्ञानिक सोच रखने का यह अर्थ नहीं है कि धर्म या अध्यात्म नकार कर हम प्रगति कर सकते हैं। उन्होंने हजारों युवाओं और सभी वर्गों से आए श्रोताओं को संबोधित कर एक बार कहा था कि जिसका हृदय निर्मल है, उसका चरित्र सुंदर है, जिस घर में सत्य और सुंदर चरित्र है, वहां सद्भाव रहता है, सद्भावना से राष्ट्र संचालित होता है और विश्व में शांति का सूत्रपात होता है। प्रमुख स्वामी में मैंने हृदय की सत्यता के दर्शन किए और अपार शांति का अनुभव किया। 

डाक्टर कलाम को अपने भारतीय मुस्लिम होने पर गर्व था, उनके पिता एक मस्जिद में इमाम थे जो हर शाम की चाय पर प्रमुख हिंदू मंदिर और ईसाई गिरजाघर के लोगों के साथ स्थानीय समस्याओं को सुलझाने के लिए चर्चा करते थे।  बचपन में इस माहौल में परवरिश पाकर उन्होंने निर्णय किया कि वे विज्ञानी बनेंगे। इसके लिए उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अपने दृढ़ निश्चय और सब धर्मों में समानता को मूल में रखकर भारत के पहले विज्ञानी राष्ट्रपति बने। अपनी मूल भावना से प्रेरित होकर उन्होंने प्रमुख स्वामी को अपना गुरु बनाया और उनके सान्निध्य और मार्गदर्शन में जीवन के अंतिम 14 वर्ष व्यतीत किए। प्रमुख स्वामी जी के साथ हुए अपने आध्यात्मिक अनुभवों पर आधारित पुस्तक के प्रकाशन के बाद युवाओं की एक सभा में भाषण देते हुए अंतिम सांस ली। 

विज्ञान की आत्मा : ऐसा नहीं है कि वे पहले विज्ञानी थे जिन्होंने विज्ञान और अध्यात्म की एकता को सिद्ध और प्रचारित किया बल्कि पायथागोरस, गैलीलियो, आइंस्टाइन, रामानुजम, जगदीश चंद्र बोस, चंद्रशेखर, फ्रांसिस कॉलिन्स जैसे विचारकों और विज्ञानियों ने भी इसी सिद्धांत को स्वीकार किया और इसे मानव जीवन का अनिवार्य अंग माना। इन दोनों तत्वों का संगम ही मानवीयता है। विज्ञान ने हमें बहुत कुछ दिया है लेकिन उसकी आत्मा अध्यात्म है। एक उदाहरण है; जब डाक्टर कलाम अपनी पुस्तक लिखने से पहले उसके 5 अध्यायों की चर्चा स्वामी महाराज से कर रहे थे तो गुरु ने कहा कि इसमें छठा अध्याय ‘ईश्वर में आस्था’ भी शामिल करें, तब ही पुस्तक पूर्ण होगी। विज्ञान और धर्म या अध्यात्म को 2 अलग रूपों में देखना न केवल भूल है बल्कि एक ही सिक्के के 2 पहलू होने को नकारना है। विज्ञान के क्षेत्र में डाक्टर कलाम का योगदान अभूतपूर्व है। उन्हें मिसाइल मैन कहा गया, अंतरिक्ष विज्ञान उनके बिना अधूरा रहता। अग्नि जैसी खोज देश को आत्मनिर्भर और मजबूत राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण है। देश को न्यूक्लियर ऊर्जा के उपयोग से विकास की नई ऊंचाइयों तक ले जाने का संकल्प उनका था। वे सन् 2020 तक भारत को विश्व की 4 आर्थिक महाशक्तियों के रूप में देखना चाहते थे। 

वैज्ञानिक सोच क्या है? : वैज्ञानिक और धार्मिक तथा आध्यात्मिक सोच वाला व्यक्ति कोई भी ऐसा काम करने से पहले 10 बार इस बात का ङ्क्षचतन करेगा कि उससे किसी का अहित तो नहीं हो रहा। इसके उलट जब सोच यह हो कि चाहे मेरा लाभ हो या नहीं, पर दूसरे की हानि अवश्य हो तब उस समाज का भविष्य चाहे भौतिक समृद्धि का दर्शन करा दे लेकिन शांति की स्थापना नहीं हो सकती। एक बार डाक्टर कलाम ने विद्याॢथयों के समक्ष बोलते हुए पूछा कि ‘हमारा शत्रु कौन है’, इस पर अनेक उत्तर मिले लेकिन एक विद्यार्थी स्नेहल ठक्कर ने कहा कि ‘शत्रु केवल गरीबी है’। एक बार उनका हैलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया और चमत्कारिक रूप से सभी बच गए। घायल अवस्था में नींद का इंजैक्शन दिया गया तो स्वप्न में उन्हें विश्व की महान विभूतियां अपने आसपास दिखाई दीं जिन्होंने उन्हें जीवन का भरोसा दिया। 

उन्होंने अपनी पुस्तक में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा कि सपने, सपने और केवल सपने ही उन विचारों को जन्म देते हैं जो हमें अपने लक्ष्य तक ले जा सकते हैं। उनका मानना था कि बुद्धि ही वह शस्त्र है जो विनाश से रक्षा कर सकता है। कोई भी दुश्मन हमें हरा नहीं सकता यदि हम अपनी अक्ल, सूझबूझ का इस्तेमाल कर ऐसा ताना बाना तैयार करें जिसे भेदना असंभव हो। अगर यही बुद्धि भ्रष्ट हो जाए तो भ्रष्टाचारी बनने और नैतिकता का पतन और अंधकार के गर्त में गिरने से कोई नहीं रोक सकता। ईश्वर ही कत्र्ता और नियंता है, इसे नजरअंदाज कर जब हम स्वयं को यह दर्जा देने लगते हैं तब ही हिटलर, मुसोलिनी जैसे लोग निरंकुश होकर अत्याचार करने में सफल हो पाते हैं। भारत की आध्यात्मिकता और सभी धर्र्मों, जातियों, वर्गों, संप्रदायों के प्रति समान भाव रखना ही उसकी पहचान है।-पूरन चंद सरीन    
    


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