प्रशांत किशोर की राह आसान नहीं

punjabkesari.in Monday, Oct 07, 2024 - 05:25 AM (IST)

एक और नया नेता, एक और नई पार्टी। भारतीय राजनीति में ये कोई नई बात नहीं है। अमरीका और यूरोप की तरह भारत में नए बने नेता पुरानी पाॢटयों में अपने लिए जगह बनाने की कोशिश नहीं करते बल्कि सभी पुरानी पाॢटयों को खारिज करके नई पार्टी बना लेते हैं। इसका नतीजा यह है कि चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पाॢटयों की संख्या करीब 60 से ऊपर हो गई है। हर नई पार्टी एक नया सपना दिखाती है। पुरानी पाॢटयों को हर समस्या के लिए जिम्मेदार बताती है और अंतत: उन्हीं पुरानी पाॢटयों के साथ गलबहियां करके सत्ता सुख का आनंद उठाती हैं। 

बिहार का सपना : चुनाव विश्लेषक से नेता बने प्रशांत किशोर बिहार में अपनी नई-नवेली पार्टी के साथ राजनीति के मैदान में उतर आए हैं। ‘जन सुराज पार्टी’ के नाम से बने इस संगठन ने नवंबर में होने वाले विधानसभा के उप-चुनावों के साथ विधिवत चुनावी राजनीति में उतरने का ऐलान भी कर दिया है। प्रशांत 2 अक्तूबर 2022 से बिहार में जन सुराज यात्रा के जरिए नई पार्टी के लिए आधार तैयार करने में जुटे थे और 2 अक्तूबर 2024 को नई  पार्टी की आधारशिला रख दी।

जनता से सीधे और सरल संवाद के लिए प्रशांत किशोर ने सिर्फ 3 मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है। सबसे पहला है शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करना। दूसरा, सबके लिए रोजगार का इंतजाम और तीसरा बुजुर्गों को 2000 रुपए हर माह पैंशन। तीन ही मुद्दों के भीतर युवा से लेकर बुजुर्ग तक सब समेट लिए गए। इनको लागू करने के लिए सरकार को अरबों रुपयों की जरूरत होगी। 
अरविंद केजरीवाल की तरह प्रशांत किशोर भ्रष्टाचार पर कोई घातक मिसाइल छोडऩे की बात नहीं करते हैं।

शायद इसलिए कि जनता के बीच भ्रष्टाचार अब ऐसा मुद्दा नहीं है जिसके हल की उम्मीद वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में की जा सकती हो। यह दीगर बात है कि बिहार में भ्रष्टाचार जिस ऊंचाई तक पहुंच गया है, उसकी तुलना भी किसी अन्य राज्य से नहीं की जा सकती है। अकेले 2024 में बरसात के दौरान बिहार में 12 से ज्यादा छोटे बड़े पुल गिर गए। ये सब 10/15 सालों में बने थे। क्या पुल निर्माण में भ्रष्टाचार इसके लिए जिम्मेदार नहीं है? 

सितारे जमीन पर : जन सुराज पार्टी की घोषणा के लिए आयोजित सम्मेलन में 22 देशों से बिहारी एन.आर.आई. पटना पहुंचे। ये सिर्फ अमरीका और यूरोप से नहीं, बल्कि सिंगापुर, इंडोनेशिया, ओमान जैसे देशों से भी थे। बताया गया कि इनमें से ज्यादातर अपनी कम्पनियां चलाते हैं। एन.आर.आई. संपन्न हैं, इसलिए पार्टी को आर्थिक समर्थन की काफी गुंजाइश दिखाई देती है। आम आदमी पार्टी की मदद के लिए कई एन.आर.आई. अपना काम धंधा छोड़ कर दिल्ली में डेरा जमा चुके थे। जन सुराज पार्टी की मदद के लिए भी कई युवा अपनी शानदार नौकरियां छोडऩे के लिए आतुर दिखाई दे रहे हैं। 
पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष एक रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट मनोज भारती को बनाया गया है जो दलित भी हैं। भारतीय विदेश सेवा में रहते हुए वह 4 देशों में राजदूत भी रहे हैं। 2025 के मार्च में पार्टी का संगठनात्मक चुनाव कराने की घोषणा भी की गई है। 

नई बनने वाली ज्यादातर पाॢटयां व्यक्ति केंद्रित रही हैं, लेकिन प्रशांत इस परंपरा को तोड़ते दिखाई दे रहे हैं। पार्टी में रिटायर्ड आई.ए.एस. और आई.पी.एस. का भी जुटान हो रहा है। पार्टी के संविधान को तैयार करने वाली कमेटी का अध्यक्ष पूर्व पुलिस अधिकारी (आई.पी.एस.) आर.के. मिश्रा को बनाया गया है। यह भी तय किया गया है कि अगर कोई चुना हुआ पार्टी पदाधिकारी कसौटी पर खरा नहीं उतरता तो कार्यकत्र्ताओं को उसे वापस बुलाने का अधिकार (राइट टू रिकाल) भी होगा। पूर्व आई.पी.एस. अरविंद सिंह, पूर्व आई.ए.एस. और पूर्व राज्य सभा सांसद पवन वर्मा, पूर्व सांसद सीताराम यादव और कई अन्य विभूतियां भी सम्मेलन में शामिल थीं।

फायदा- नुकसान : प्रशांत किशोर पर अब एक बड़ा आरोप यह लग रहा है कि वह भाजपा, आर.एस.एस. और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नर्मी बरत रहे हैं जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ कठोर रुख अपना रहे हैं। पार्टी सम्मेलन में प्रशांत ने नीतीश और तेजस्वी की खुलकर आलोचना की लेकिन मोदी पर कोई बड़ा आरोप नहीं लगाया। बिहार की बदहाली के लिए उन्होंने नीतीश और तेजस्वी को जिम्मेदार ठहराया। पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में उन्होंने स्वीकार किया कि उनकी पार्टी में आर.एस.एस. और अल्पसंख्यक दोनों हैं।

आरोप लगाया जा रहा है कि प्रशांत असल में भाजपा का मुखौटा हैं। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के प्रति नर्मी का एक कारण यह भी माना जा रहा है कि वह मोदी समर्थक मतदाताओं को नाराज नहीं करना चाहते हैं।  मोदी पर उन्होंने एक अप्रत्यक्ष आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अगर बिहार में 100 रुपए जमा होते हैं तो उसमें से 60 रुपए गुजरात चले जाते हैं और बिहार में सिर्फ 40 रुपए बचते हैं। लेकिन गुजरात में 100 रुपए जमा होते हैं तो 90 रुपए वहीं खर्च होते हैं और सिर्फ 10 रुपए बाहर जाते हैं। इसलिए गुजरात का विकास होता है और बिहार पिछड़ा ही रह जाता है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी अगर मतदाताओं के रुझान को राजद की तरफ जाने से रोकती है तो उसका फायदा नीतीश और भाजपा को मिल सकता है। प्रशांत किशोर का रास्ता आसान नहीं है। जाति में बंटे बिहार को विकास के लिए गोलबंद करना मुश्किल काम है। -शैलेश कुमार


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